कश्मीर पर नीतिगत फैसलों की जरुरत

-प्रभुनाथ शुक्ल/ कश्मीर घाटी में सेना के बेसकैंप पर रविवार की भोर में हुआ आतंकी हमला और उसमें मारे गए सभी 20 जवानों की शहादत से देश हिल गया है। 10 सालों के बाद यह सबसे बड़ा आतंकी हमला है जिसमें हमारे इतने जवान शहीद हुए हैं। हमला देश की आत्मा पर हुआ है। उरी सेक्टर के जिस स्थान पर पाकिस्तान की तरफ से यह साजिश रची गई वह कोई आम स्थान नहीं है। वह एलओसी का का इलाका है आर्मी बटालियन का मुख्यालय है। हलांकि तीन घंटे से अधिक चली मुठभेंड में हमारे जवानों ने सभी चारों आतंकवादियों को ढेर कर दिया जिनका संबंध जैश-ए-मोहम्मद से बताया जा रहा है, लेकिन हमने बहुत कुछ खो दिया।निश्चित तौर इस आतंकी साजिश के पीछे पाकिस्तान और आतंकियों का बड़ा गेम प्लान था। जिसकी भनक हमारी खुफिया एजेंसियों को शायद नहीं चली। जिस समय हमला हुआ। वह भोर का सयम था। हमले में हैंडग्रेनेड का उपयोग किया गया जिसके कारण कैंप में आग लग गई और हमारे जवान मारे गए।  आतंकियों को इतनी सटीक सूचना कैसे मिली। 
निश्चित तौर पर इस साजिश में जांच के बाद बड़ा खुलासा हो सकता है। सुरक्षा एजेंसियों को घर के विभीषणों पर भी निगरानी करनी होगी।घाटी में बुरहानवानी की मौत के बाद पाकिस्तान लगतार देश के खिलाफ छद्म युद्ध छेड़ रखा है। जिसकी हमें भारी कीमत चुकानी पड़ रही है। हमारे निर्दोष जवान शहीद हो रहे हैं। इस घटना पर पूरे देश उबाल है। गांव की चौपाल पर भी तीखी बहस छिड़ी है लोग सरकार से नीतिगत फैसला लेने की बात कह रहे हैं। सेना भी अब आरपार की लड़ाई में दिखती है लेकिन निर्णय सरकार को लेना है।घाटी में आतंक के सफाए के लिए वृहद रणनीति बनानी होगी। हम मंचीय गर्जनाओं और हमलों के बाद बयानी दहाड़बाजी से पाकिस्तान और आतंकी आकाओं का कुछ नहीं बिगाड़ सकते हैं। एक स्वर में आवाज उठ रही है कि चाहे जितना नुकसान उठाना पड़े लेकिन पाकिस्तान और आतंकियों का सफाया आवश्यक है। सरकार को किसी भी दबाब में नहीं आना चाहिए। हलांकि सरकार ने इस मसले पर नीतिगत फैसला लेने का निर्णया किया है यह अच्छी बात है लेकिन इस पर चरणबद्ध तरीके से ठोस कार्रवाई होनी चाहिए।
हम आणविक युद्ध कके खतरे के भय और आतंकियों की धमकी से कब तक डरते रहेंगे। कश्मीर पर अतंरराष्टीय दबाब की नीति से बचना होगा। दुनिया और मित्र देशों को विश्वास में लेना होगा। उन्हें यह बताना होगा कि पाकिस्तान भारत से सीधे तौर पर मुकाबला नहीं कर सकता, आतंक के जरिए वह अघोषित छद्म युद्ध छेड़ रखा है।अमेरिका और चीन से पाकिस्तान के मसले पर दो टूक बात करने की जरुरत है। पाकिस्तान को लेकर अगर अमेरिका और चीन अपनी नीतियों में बदलाव नहीं लाते हैं तो हम कब तक फुटबाल बनते रहेंगे। अमेरिका एटमाबाद में घूस कर लादेन को मार सकता है फिर उसे पाकिस्तान की गोद में पल रहे आतंकी सरगना हाफिज सईद, सैयद सलाउद्दीन और पाठानकोट हमले का साजिशकर्ता जैश-ए-मोहम्मद का सरगना नहीं दिखता है। अमेरिका को आतंकवाद सफाए के लिए दी जा रही करोड़ों डालर की इमदाद बंद करनी चाहिए। उसने कभी पाकिस्तान से यह सवाल पूछा कि आखिर यह पैसा कहां जा रहा है। 
पाकिस्तान आतंक के सफाए बजाय इस राशि का उपयोग आतंकी फसल उगाने में कर रहा है। चीन अजर मसूद पर वीटों का प्रयोग क्यों किया ? अमेरिका क्यों चुप बैठा रहा। हमें चीन और अमेरिका की चिंता किए बगैर एक वैश्विक कूटनीति तैयार करने की आवश्यकता है। जिससे पाकिस्तान की रीढ़ तोड़ी जाय।सरकार पाकिस्तान को लेकर साफ नीति बनाए। घाटी में आतंकियों के सभी  ठिकानों को नष्ट किया जाए। खुफिया एजेंसियों को और चौकस बनाया जाय। पाकिस्तान से सटी सीमा पर नीतिगत और तकनीकी बदलाव किए जाएं। वैश्विक दबाब की चिंता किए बगैर हमें अपनी नीति पर आगे बढ़ना होगा। भारत पहले खुद पाकिस्तान को आतंकी राष्ट घोषित करे। पोखरण में परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका ने भी भारत पर तमाम तरह के आर्थिक प्रतिबंध लगाए थे लेकिन देश हर स्थिति का मुकाबला किया। वक्त आ गया है जब पाकिस्तान के साथ सभी कूटनीतिक, राजनीतिक संबंध तोड़ लेने चाहिए। पाकिस्तान से व्यापारिक और आर्थिक गतिविधियां भी बंद कर देनी चाहिए। उससे किसी भी प्रकार का संबंध नहीं रखना चाहिए। 
भारत में होनेवाली सभी आतंकी गतिविधियों की रिपोर्ट पाकिस्तान को कई बार सौंपी गई। यहां तक की पठानकोट हमले की जांच करने और तथ्यों से रुबरु होने खुद पाकिस्तानी जांच दल भारत आया लेकिन वापस लौटने के बाद साफ कह दिया गया है कि हमले में पाकिस्तान के शामिल होने के कोई सबूत नहीं मिले हैं। मुंबई हमले में पकड़े जिंदा पकड़े गए आतंकी कसाब को भी अपना नागरिक होने से पाकिस्तान ने इनकार कर दिया था। उरी में जो हमला हुआ उसमें एक कश्मीरी के साथ चार आतंकवादियों में तीन पाकिस्तानी हैं। दुनिया के सामने वह मियामिट्ठू बनना चाहता है लेकिन वहां की सरकार और सेना की नीयति साफ नहीं है। भारत से सीधे लड़ाई करने की उसमें हिम्मत नहीं है उसके पास सिर्फ आतंकवाद का छद्म खेल बचा है। क्योंकि भारत के साथ तीन सीधे युद्ध में उसे मंुह की खानी पड़ी है। वहां की सरकारों का वजूद ही केवल भारत विरोध पर टिका है। हम आतंकवाद को खादपानी देने वाले अलगाववादियों को भी पालपोष रहे हैं। 
यह बात बहुत कम लोगों को मालूम रही की देश की सरकार अलगाववादियों की सुरक्षा और उनकी सुविधाओं पर करोड़ों रुपये खर्च करती है। अब जबकि सच्चाई देश के सामने आ गई है, सरकार को इस पर गंभीरता से सोचना चाहिए। वैसे सरकार ने उनकी सुविधाओं को बंद करने का एलान किया है लेकिन अभी तक इस पर अमल नहीं किया गया है। सरकार को इस पर तत्काल फैसला लेना चाहिए। सरकार जब तक आतंकवाद पर पाकिस्तान के खिलाफ नीतिगत फैसला नहीं लेगी हमारे जवान बेमतलब आतंकी साजिशों का शिकार बनते रहेंगे। पूरा देश सरकार के साथ खड़ा है। जरुरत है सरकार को आगे आने पाकिस्तान को सबक सीखाने की। लोग पीएम मोदी की तरफ बेहद उम्मीद से देख रहा है। अब इंदिरा गांधी याद आने लगी हैं। सोशलमीडिया पर यह बात उठ रही है कि जिस तरह उन्होंने कदम उठाया था इस मोदी सरकार को भी विचार करना चाहिए। जिससे बार-बार देश को होने वाले नुकसान पर विराम लगाया जाय। आखिर सेना में मरनेवाले हमारे जवान आतंक का शिकार क्यों बने। इस पर विचार होना चाहिए। 
लेखकः स्वतंत्र पत्रकार हैं

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