-अवनीश सिंह भदौरिया/ हमारे देश में गरीबी को दूर करने के लिए कई वायदे कीए गये हैं और उन वायदों पर कोई भी सरकार खरी नहीं उतर पाई है। हमारे देश मे कितनी सरकार आंई और गई उनका सत्ता में आने और जाने को लेकर यह गरीबी अहम मुद्दा रहा है। सबने यही कहा कि गरीबी दूर करना हमारा पहला कर्तव्य है। लेकिन हम सब यह बखूबी जानते हैं कि हमारे देश में कितनी गरीबी दूर हुई है। पर आज गरीबी की असलिय हमें झकझोर कर रखने वाली है। 125 करोड़ देश वासियों ने मोदी सरकार को अपना सार्थी मना और उन्हें उपना रथ हांकने को ेकहा पर आज ऐसा लग रहा है कि रथ गलत दिशा में जा रहा है? हमारे देश की गरीबी हिन्दुस्तान को आगे बढऩे में बहुत बड़ा रोड़ा बन रही है। और ऐसा कहना गलत नहीं होगा।
देश में न जाने आभी कई लोग भंखे पेट साते हैं। देश में अगर गरीबों की तादात देखी जाए तो हम डऱ जाएंगे आज भी 19वीं सदी में भी लागों को खाना नशीब नहीं हो पा रहा है। किसी के पास पैसे हैं तो इतने नहीं कि भर पेट़ खाले अगर आज आप रोड़ पर नकिल जाएं तो गरीबी की सच्चाई से अवगत हो जाएंगे क्योंकि आज रोड़ पर भीख मांगेते बालक और बालिकांए इसका जीता जागता सबूत हैं। वहीं, दूसरी ओर रोड़ों के किनारे सोते लोगों को ही लेलो न तो खाने को पैसे है और न ही रहने को घर बेचारे खाने कूड़े कचरे में से ढ़ूंढ ढ़ांनकर अपना पेट भर रहे हैं। यही आज गरीबी की सच्चाई है। फुटपात पर सोते लोग, सड़कों पर भीख मांगते बच्चे और सड़े कचरे में खाने को ढूंढते लोग अब इससे बड़ी गरीबी की निसानी क्या होगी।
अब सवाल उठता है कि अभी भी गरीबी की समस्या में को भी अंतर नहीं आया है गरीबी के आंकड़े सज के तस हैं। गरीबी को लेकर सियासत हामारे देश में आज भी होती आ रही है। वहीं पूर्व सरकार ने भी देश में गरीबी को दूर करने के लिए कई योजनाओं को लागू कियरा पर गरीबी दूर करने पर हलकी पड़ी और नतीजा आज आप के सामने है। वहीं वर्तमान सरकार का भी यही हाल दिख रहा है। वर्तमान सरकार ने गरीबी को दूर करने के लिए कई योजनाओं पर योजनाओं को लागू पर लागू किया जा रहा है पर दो साल बीत जाने के बात इन योजनाओं को असर फीका दिख रहा है। वहीं मोदी सरकार ने एक और योजना को लागू किया है मोदी सरकार ने मजदूरों की दिहाड़ी 246 रुपये रोजाना से बढ़ाकर 350 रुपये करने की घोषणा की। यह बढ़ोतरी केवल केंद्र सरकार के सार्वजनिक उपक्रमों में काम करने वाले मजदूरों के लिए लागू होगी।
कई हतदतक यह सही है लकिन सवाल अब भी यही उठता है कि इससे क्या गरीबी दूर होगी? वहीं सरकार ने सरकार ने मजदूरों की दिहाड़ी 246 रुपये रोजाना से बढ़ाकर 350 रुपये की है यह एक सरहानिय काम है पर मोदी सरकार को और महनत करने की जरूरत है जिससे गरीबी जैसी भयंकर बीमारी दूर हो सके गरीबी एक एसी बीमारी है कि जिसे एक बार लग गई तो फिर वो इस से बचने के लिए मौत को गले लगा लेता यह है। यह मैं नहीं यह आपके सामने आए दिन होने वाले हादसे कह रहे हैं वहीं दूसरी तरफ खाद्य पदार्थ भी इतने महगे हो गये हैं कि उन्हेंने लेने के लिए पैसे नहीं होते किसानों को खेती में कुछ बच नहीं रहा है। और इसका नतीजा हम सब देख रहे हैं। वहीं, श्रम मंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने कहा, सरकार ने न्यूनतम मजदूरी में 43 फीसदी की वृद्घि करके एक ऐतिहासिक फैसला लिया है।
भारत में ढ़ती महंगाई का असर जितना शहरों में देखने को मिल रहा है उससे भी ज्यादा इसका शिकार ग्रामीण भारत हो रहा है। ग्रामीण भारत की थाली की हालत इतनी चिंताजनक हो चली है कि उसकी थाली में पिछले 40 सालों की सबसे बड़ी गिरावट देखने को मिली है। नेशनल न्यूट्रीशन मॉनीट्रिंग ब्यूरो के एक सर्वे के मुताबिक देश की करीब 70 प्रतिशत आबादी यानी 84 करोड़ लोगों को ज़रुरत से कम भोजन उपलब्ध है। सर्वे के मुताबिक साल 1975-फीसदी 79 के मुकाबले ग्रामीण भारत की थाली से 550 कैलोरीज कम हो गयीं हैं। थाली से 13 ग्राम प्रोटीन, 5 मिलीग्राम आयरन, 250 मिलीग्राम कैल्शियम और 500 मिलीग्राम विटामिन घाट गया है।
बता दें कि तीन साल की उम्र से कम के बच्चों के लिए 300 मिलीलीटर दूध रोजाना की ज़रूरी खुराक है जबकि ग्रामीण भारत में ये सिर्फ 80 मिलीलीटर ही उपलब्ध है। सर्वे में सामने आया है कि ग्रामीण भारत के 35फीसदी पुरुष और महिलाएं कमजोरी के शिकार हैं जबकि 42फीसदी बच्चों का वजन सामान्य से बेहद कम है। गरीब इलाकों में तो ये स्थिति और भी भयानक है। आजीविका ब्यूरो नाम की संस्था के गरीबी रेखा से नीचे की 500 महिलाओं पर कराए एक सर्वे में सामने आया है कि उन्होंने हफ़्तों से दाल, सब्जियां नहीं खायी. उनकी थाली से फल, अंडा और मांस लगभग गायब हो गया है। इन तीन में से एक महिला के बच्चे कुपोषण के शिकार थे।
वर्ल्ड बैंक की साल 2015 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक न्यूट्रीशन की इस कमी का भारत की अर्थव्यवस्था पर काफी बुरा असर पडऩे वाला है। इससे सरकार के महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट जैसे मेक इन इंडिया और स्किल इंडिया बुरी तरह प्रभावित होंगे। ये सिर्फ भारत ही नहीं पूरे दक्षिण एशिया की स्थिति है। इन देशों की हालत न्यूट्रीशन के मामले में सब सहारा देशों से भी बुरी हो गयी है। अगर हालत ऐसे ही रहे तो आने वाले 20 सालों में ग्रामीण भारत की हालत और खऱाब हो जाएगी। जानकारों का मानना है कि इकॉनोमिक ग्रोथ के बढऩे का कुछ ख़ास फायदा नहीं होगा जब देश की एक बड़ी आबादी की थाली से भोजन गायब होता जाएगा।
रिपोर्ट में ये भी सामने आया है कि पिछले 40 सालों में खाद्य महंगाई सबसे तेजी से बढ़ी है। भारत में फि़लहाल कुपोषित बच्चों की सबसे बड़ी आबादी है जबकि ब्राजील और चीन दूसरे और तीसरे नंबर पर हैं। दूसरी और गरीबी बढऩे से कई प्रकार की समस्याएं उत्पन्न होती हैं। लोगों को खाना कम मिलने से बच्चों के विकास ,कुपोषित और अनके मानसिक पूर से कमजोर करती है यही कारण है की आज हमारा देश कई देशों से पीछे है। गरीबी दूर करना एक किसी भी सरकार के लिए जटिल समस्या है। अब यह देखना है कि इस जटिल समस्या को कैसे दूर किया जाता है।
-अवनीश सिंह भदौरिया
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गरीब की थाली से गायब होता खाना
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