कल यूपीएससी के घोषित नतीजों की लिस्ट का सुबह सुबह अध्ययन किया तो पाया कि घोषित 1058 लोगों की सूची में मात्र 37 लोग मुसलमान हैं अर्थात 3.4%। जिज्ञासा हुई ये जानने कि पिछले कुछ वर्षों का क्या परिणाम रहा तो मैं हैरान हुआ देख कर कि पिछले 10 वर्षों का अनुपात लगभग यही है।
-मो. ज़ाहिद
2006 से देखें तो उस साल 2.2 फीसद, 2009 में 3.9 फीसद, 2010 में 2.4 फीसद, 2011 में 3.1 फीसद और 2013 में 3.1 फीसद मुस्लिम नौजवानों ने यूपीएससी में सफलता पाई। सोचा कि यह अनुपात कहीं सरकारी साजिश के कारण तो नहीं है तो इसकी भी छानबीन की तो पता चला कि पिछले 10 वर्षों में यूपीएससी प्री को पास करने वाले मुसलमानों का अनुपात 2 से 3•5% रहा है।
और अंदर घुस कर जानने का प्रयास किया तो पता चला कि यूपीएससी की परीक्षा में पिछले 10 वर्षों में सम्मिलित मुसलमानों का अनुपात ही 3 से 5% रहा है और कम से कम यूपीएससी की परीक्षा में मुसलमानों के शामिल होने की कोई बाध्यता किसी भी सरकारी नियम से नहीं है जब तक कि तकनीकी आधार पर किसी को परिक्षा देने से ना रोका जाए , जो सब धर्म और जातियों के लिए ही एक समान ही है। परिक्षा में शामिल होने से लेकर परिणाम तक मुसलमानों का लगभग एक ही अनुपात बताता है कि सब कमी सरकारों की ही नहीं है बल्कि बहुत कुछ गलतियाँ मुसलमानों की खुद की भी हैं।
इन गलतियों को ढूँढते ढूँढते जब में जस्टिस सच्चर आयोग की रिपोर्ट तक गया तो पाया कि ग्रामीण इलाकों में 54.6 और शहरी इलाकों 60 प्रतिशत मुस्लिम बच्चे कभी स्कूल ही नहीं गए तो इसकी एक वजह स्कूलों का मुस्लिम इलाकों में न होना था , दूसरी वजह गरीबी है , और तीसरी वजह कि मुसलमानों के मज़हबी, समाजी और सियासी रहनुमाओं ने आधुनिक और अंग्रेजी शिक्षा की तरफ ध्यान ही नहीं दिया और जो इस्लामिक शिक्षा भी दी तो उसमें इमान से अधिक महत्वपूर्ण दाढ़ी बन गयी।
हम सभी बखूबी जानते हैं कि किसी भी शैक्षणिक प्रतियोगिता को निकालने के लिए आरंभिक शिक्षा यानी नर्सरी से लेकर 12 वीं तक बहुत अहम रोल अदा करती है। लेकिन मुस्लिम समाज इस लिहाज से काफी पीछे है। सच्चर कमेटी भी इसी तरफ इशारा करती है कि सबसे बुरी हालत प्रारंभिक शिक्षा की है।
सवाल उठता है कि क्या मुसलमानों की वर्तमान शैक्षिक व आर्थिक पिछड़ेपन के लिए क्या सिर्फ और सिर्फ सरकार ही ज़िम्मेदार है? तो मेरा जवाब है, नहीं।
सरकारों से अधिक हम ज़िम्मेदार हैं और अपनी इस ज़िम्मेदारी को हम सरकारों को गाली देकर कोस कर छुपा ले जाते हैं। इससे इंकार नहीं कि सरकार ने मुसलमानों के लिए कुछ नहीं किया पर यह भी सच है कि भारतीय मुसलमानों ने भी अपनी कौम के लिए कुछ नहीं किया और इसी वजह से मुस्लिम बच्चे जन्म के बाद होश संभालते ही माँ और भाई बहनों के पेट की भूख मिटाने के लिए आज भी पंचर बनाने कूड़ा बिनने सूबह होते ही निकल जाते हैं। इसका ही परिणाम है कि पश्चिम बंगाल में 2006 तक मुसलमानों की जनसंख्या 25.5 फीसद है लेकिन सरकारी नौकरियों में मुसलमानों का हिस्सा सिर्फ 2.1 फीसद ही है और लगभग यही हालात दुसरे राज्यों के भी हैं।
केन्द्र सरकार के आंकड़े भी बहुत अच्छी तस्वीर पेश नहीं करते हैं। सच्चर कमेटी रिपोर्ट बताती है कि IAS में सिर्फ 3 फीसद और IFS में 1.6 फीसद ही मुसलमान हैं। यह उस वक़्त के देश भर में मुसलमानों की 13.7 प्रतिशत जनसंख्या के मुकाबले काफी कम है।
-मो. ज़ाहिद/
साभारः- H24
UPSC Exam : इन कारणों से मुसलमान सफल नही होते है
Reviewed by rainbownewsexpress
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1:06:00 pm
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