चिता की आग से बुझती है पेट की आग

‘‘बच्चे भूखें सो गए होकर बहुत अधीर।।
चूल्हे पर पकती रही आश्वासन की खीर।।’’
-संजय चाणक्य/ जब भी मै फटे पुराने कपडे और में अर्धनग्न अवस्था में देश के भविष्यों को कूड़ों की ढेर पर दिखता हू तो बरबस मेर मुंह से वर्षो पुरानी वह गीत फूट पड़ती है ‘‘बचपन हर गम से बेगाना होता है।’’ सोचता हू यह बच्चे सचमुच हर गम से बेगाने है या फिर पेट की आग और लाचारी ने इन्हे हर गम से बेगाना बना दिया है। खैर जो भी हो लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि  क्या आजाद भारत का यही भविष्य है? लोहे की जंजीरो में जकड़ी मा भारती को मुक्त करानें से पूर्व बापू और सुभाष चन्द बोस ने इसी आजाद भारत की कल्पना की थी। क्या चन्दशेखर और भगत सिंह ने इसी हिन्दुस्तान का सपना देखा था? जहां सरकार की सभी महत्वाकांक्षी योजनाएं पहुचने से पहले ही दम तोड़ देती है। कूड़ों की ढेर पर अपना भविष्य तलाशनें वाले मासूमों के बारे में ही सोच रहा था कि तकरीबन तीन वर्ष पूर्व काशी विश्वनाथ के गंगा तट के मरघट की वह दृश्य मेरे मन-मतिष्क को झकझोर कर रख देता है। मुझे अच्छी तरह से याद है वह वाक्या जब हम काशी विश्वनाथ के गंगा तट पर पहुचे थे कि एकाएक मेरी नजर मरघट पर जल रही चिताओं पर पडी। यकीन मानिए....! काशी गंगा तट के मरघट पर देश के भविष्य कहे जाने वाले नौनिहालों को चिता पर सजी हुई आंग की लपटों के साथ खेलता हुआ देखकर मै दंग रह गया। इन मासूसों को पहले चिता की आग में अपना भविष्य झोकते हुए फिर उसके बाद चिता की उस राख में अपना भविष्य तलाशते हुए देखा तो मन द्रवित हो उठा। और मै सरकार और सरकार में बैठे माननीयों को कोसने लगा।
‘‘जिसकी खातिर पेट पर सहे लाख आघात।
अब सो जा कल मिलूगी भूख कह गई रात।।’’
  तभी पीछे से किसी के दिल से निकला हुआ कसक भरी वेदना मेरे कानों को छूते हुए निकल गया। ‘‘साहब! क्या देख रहो हो अपनें पेट की आग तो इस चिता की आंग से ही बुझती है।’’ वह उत्साहित था उसके चेहरे के हाव भाव से यह विल्कुल नही लग रहा था कि वह यह नही जानता है कि वह क्या कर रहा है। वह एकदम  विंदास था। उसें इस बात का एहसास भी था कि एक दिन उसें भी यही आना है लेकिन उस समय सजी हुई चिता में धधकती आग को वह नही कोई और बांस की बम्बू से कुदेरेगा। कोई और क्यों उसके अपनें ही उसके चिता की राख में अपना  भविष्य तलाशेगें। फिर भी वह इस काम से खुश था लेकिन उसकी बातों में दर्द के साथ साथ कडुवाहट और सच्चाई भी थी। उसकी उम्र भले ही दस साल की रही हो लेकिन दुनिया की ठोकर ने उसके मासूम दिल और कोमल मन को पत्थर बना दिया है। वह काशी विश्वनाथ के गंगा तट पर स्थित मरघट पर अपने मा-बाप और भाई के साथ  गुजर बसर करने वाला गौरब था। गौरब दस वर्ष के उम्र में ही तकरीबन ढाई सौ लाशों को जला चुका था। जब मैने उससे पूछा कि पढ़ते हो तो तपाक से बोला पढ़ेगें तो खायेगें क्या? मै उसकी बातो को सूनकर अपने माथे पर बल दे ही रहा था कि मेरी नजर अर्ध जल चुकी लाश पर जा टिकी। उस समय मै भौच्चक रह गया जब आठ वर्षीय रोहित चिता के पास बास के बम्बू के सहारें खड़ा था वह मुर्दा जलाने के लिए उत्साहित था और देखते ही देखते नन्हे-नन्हे हाथों के सहारें बासं की बम्बू से चिता की आग को कुरेदने लगा। वह क्या कर रहा है इसकी जानकारी उस मासूम को भलीभाति थी लेकिन यह नही मालूम कि इस देश का प्रधानमत्री कौन है। वह सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री कहता है। अब जरा आप ही सोचिए इस देश के भविष्य का क्या होगा?
   गौतम पन्द्रह साल का है। अब तक वह चार सौ से अधिक शवो को जला चुका है। इसें भी कुछ नही मालूम है। यह तीनों सगें भाई है। इनमें गौतम सबसे बड़ा है। होशियार भी मालूम पड़ता है लेकिन इसें भी देश-दुनिया सें कोई मतलब नही है। वह सिर्फ अपनें पेशें में होशियार है। जब हमने उससें पूछा कि तुम यह सब क्यों करते हो, तो पहले तो वह तल्ख लहजे में कहा मेहनत करके पेट पाल रहे है साहब कोई चोरी थोड़े ही कर रहे है।  जब मैने उससे हमदर्दी जताते हुए पूछा कि दिनभर में कितना कमा लेते हो तो वह थोड़ा नरम हो गया। बोला- साहब! एक मुर्दा जलाने के लिए मुझे दस रूपये और मेरे भाईयों को पाच-पाच रूपयें मिलता है। दिनभर में सब मिलाकर पचास-साठ रूपयें का काम हो जाता है। स्कूल क्यों नही जाते पूछने पर गौतम कहता है पढ़ने का तो बहुत मन करता है लेकिन क्या करे , पढ़ेगें तो घर में चूल्हा कैसे जलेगा और जब चूल्हा नही जलेगा तो अपाहिज मां और शराबी बाप के साथ-साथ हम सभी भाईयों के पेट की आग कैसें बुझेगी। गौतम सरकारी योजनाओं सें पूरी तरह अनभिज्ञ है। वह सरकारी विद्यालयों में निःशुल्क दी जानें वाली शिक्षा के बारें में कुछ नही जानता है।  यहा तक कि पल्स पोलियों की खुराक क्या होती है नही मालूम उसे। कहता है आज तक किसी ने कोई दवा मेरे भाईयों को नही पिलाया, मुझे भी कोइ दवा नही पिलाया गया। जब मैने उससे पूछा कि पढ़ना चाहते हो वह मायूस हो उठा कहा अब मै पढ़कर क्या करूगा। फिर एकाएक उत्साहित होकर बोला साहब! मेरा छोटा भाई रोहित पढ़ेगा।  बहुत तेज है। अभी साला दो सौ मुर्दा जला चुका है। उसका स्कूल में दाखिला करा दों तो वह पढ़ेगा। कह कर गौतम फिर अपने कार्यो में लग गया। कुछ देर तक मेरी टकटकी निगाहे उसे देखती रही और फिर इनके भाविष्य की कल्पना करने लगा। तभी एकाएक जेहन मे ंयह सवाल कौधने लगा कि आखिरकार एयरकंडीशन रूम में बैठे इस देश के भाग्य विधाताओं को देश के भविष्यों की बदत्तर हालत क्यों नही दिखाई दे रही है। सोचता हूं हमारे देश के नीति-नियंताओं को देश के भविष्यो से कोई सरोकार है या फिर अपने भविष्य की चिन्ता।  यहां सिर्फ गौतम, गौरब और रोहित ही नही, इनके जैसे दर्जनों मासूम चिता की राख में अपना भाविष्य तलाश रहे थे और चिता की आग से अपने कुबने की पेट की आग बुझानें में जुटे है। शायद हमारे देश की सरकार गांधीजी के इसी सपने को साकार कर रही है। सोचता हू एक बार फिर कभी काशी विश्नाथ चले शायद गौतम, गौरब और रोहित में से किसी से मुलाकात हो जाए। हो सकता है उनके दिन बदल गए हो, गौरब स्कूल जाता हो, फिर सोचता हू अगर कुछ नही बदला होगा, सब कुछ वैसा का वैसा ही होगा तो फिर उन मासूमों से नजर कैसे मिलाउगा। 
‘‘ मेरे हिन्दुस्तान का फलसफा बड़े अजीब।
  ज्यो-ज्यों आयी योजना त्यो-त्यों बढ़े गरीब।।’’

!!सत्यमेव जयते!! 
संजय चाणक्य
9450468662
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