विकास के ट्रंप कार्ड की धार को विवादित मुददों से बचाने का पूरा ऐतिहात बरत रहे प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को दादरी कांड के प्रेत के अचानक फिर से जीवित होने से अंदाजा लग गया होगा कि भाजपा से पार पाना कितना मुश्किल है और उसके तरकश में अभी कितने नागपांश जैसे तीर हैं। जिनसे महफूज रखने के लिए उन्हें कितनी मशक्कत करनी होगी। एक समय अखिलेश के पिता और सपा के सुप्रीमों मुलायम सिंह यादव ने राजनीति में बढ़त के लिए विवादित मुददों को अपना प्रमुख औजार बनाया था। रामजन्मभूमि आंदोलन की काट के लिए अपने पहले मुख्यमंत्रित्व काल में जब उन्होंने जगह-जगह सदभावना रैलियों का आयोजन करते हुए मंदिर आंदोलन पर उग्र चोट शुरू की तो जनता दल के उस समय के सारे बड़े नेता उन्हें सावधान कर रहे थे कि वे इस मामले में अतिवाद से बचे वरना पार्टी को बड़ा नुकसान हो सकता है। लेकिन मुलायम सिंह पीछे नही हटे।
30 नवंबर 1990 को उन्होंने अयोध्या में जमे विश्व हिंदू परिषद के कारसेवकों के खिलाफ गोली चलवाकर जो स्टैण्ड लिया उसकी परिणति 1991 के विधानसभा चुनाव में उनके सफाये के रूप में सामने आई। मुलायम सिंह ने इसके बाद 1993 में बसपा से गठबंधन अपने राजनैतिक पुनर्जीवन के लिए किया और इसमें उन्हें बड़ी कामयाबी भी मिली। उस समय लोगों का अंदाजा यह था कि मुलायम सिंह शायद 91 के हश्र से सबक लेकर मुस्लिम परस्ती की राजनीति का दामन छिटक देंगे लेकिन मुलायम सिंह को मुल्ला मुलायम सिंह की अपनी पहचान खोना गंवारा नही हुआ। यह परिस्थितियों का तकाजा भी था क्योंकि राजनैतिक बढ़त के लिए सबसे पहले वे लोग और शक्तियां उनके निशाने पर थीं जो मुसलमानों के बीच उनसे अधिक विश्वसनीय थे। मुलायम सिंह ने अतिवाद से एक-एक करके उन शक्तियों और लोगों को ध्वस्त करके मुसलमानों को विकल्पहीन स्थिति में पहुंचा दिया।
नतीजा यह है कि अपनी पार्टी की सरकार की इस पारी में वे खुद भी बहुत कुछ बदल चुके हैं। मुसलमानों की भावनाओं की परवाह न करते हुए उन्होंने अपने पौत्र तेजू की शादी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अपने घर जिस तरह से स्वागत किया उससे इसका संकेत मिल गया था। फिर भी आजम खां की सरपरस्ती में कोई कमी न आने देकर मुलायम सिंह ने अभी तक यह साबित किया कि उनके बदलने की एक सीमा है। पर विधानसभा के नये चुनाव की आहट मिलते ही जिस तरह से अखिलेश ने पार्टी के सारे फैसलों पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया है उसके बाद से मुलायम सिंह उनके मामले में कम ही दखल दे रहे हैं। अखिलेश का मुख्य जोर इस बात पर है कि वे अपनी सरकार के विकास के दावों और कल्याणकारी योजनाओं की चर्चा मुख्य रूप से करें। इस एजेंडे को उभारने के लिए उन्होंने विवादित मुददों की छाया से पूरी तरह किनारा करने की रणनीति बना रखी।
राजनीतिक प्रेक्षक भी मान रहे है कि अखिलेश की इस रणनीति से उनकी सरकार और समाजवादी पार्टी की नकारात्मक स्थिति पहले से काफी हद तक बदल चुकी है। यहां तक कि उनके प्रतिद्वंदी भी अखिलेश के इस पैतरें की कामयाबी से डरे हुए हैं। इस बीच अमर सिंह की वापसी से आजम खां अपने आप नेपथ्य में चले गये हैं। राज्यसभा के प्रत्याशी तय करने में मुस्लिम प्रतिनिधित्व का काफी जोर समाजवादी पार्टी पर पड़ा लेकिन अंततोगत्वा पार्टी ने इसकी परवाह नही की। स्थितियां भी कुछ ऐसी हैं कि समाजवादी पार्टी यह सोच रही कि मुसलमान आखिर उसे छोड़कर जायेंगे कहा। अखिलेश के चाचा और पार्टी के एक और नीति नियंत्रक सार्वजनिक रूप से गौभक्ति का प्रदर्शन करके हिन्दू भावनाओं को पार्टी की ओर मोड़ने में पहले से ही लगे थे। कुछ-कुछ कांग्रेस स्टाइल में मुसलमानों को खोये बिना हिंदुत्व को साधने का प्रयोग समाजवादी पार्टी भी सफलता पूर्वक कर पा रही थी लेकिन दादरी कांड के नये सिरे से जिंदा हुए प्रेत ने उसकी रणनीति के लिए भारी चुनौती पैदा कर दी है।
मथुरा की वैटनरी विश्व विद्यालय की प्रयोगशाला ने दादरी के विसहड़ा गांव में मारे गये इकलाख के घर से बरामद मांस के नमूने का परीक्षण करके अपनी जो रिपोर्ट दी है वह अखिलेश सरकार के गले में अटक गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह मांस निश्चित रूप से बीफ है। इसके बाद हिंदू संगठनों और बीजेपी नेताओं ने इकलाख के परिवार को दिया गया मुआवजा वापस लेने व गौ वंश वध का उन लोगों के खिलाफ कायम करने के लिए अखिलेश यादव को घेर लिया है। अखिलेश यादव तय नही कर पा रहे कि इस मामले में क्या करें। उन्होंने सफाई दी कि जिस मांस का नमूना प्रयोगशाला में भेजा गया था वह इकलाख के घर से बरामद नही हुआ बल्कि उसके घर के बाहर कूड़े से उठाया गया था। लेकिन दादरी में तैनात उन्ही के सीओ अनूप कुमार सिंह ने कहा मांस की बरामदगी इकलाख के घर से ही हुई थी।
मथुरा की वैटनरी विश्व विद्यालय की प्रयोगशाला ने दादरी के विसहड़ा गांव में मारे गये इकलाख के घर से बरामद मांस के नमूने का परीक्षण करके अपनी जो रिपोर्ट दी है वह अखिलेश सरकार के गले में अटक गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह मांस निश्चित रूप से बीफ है। इसके बाद हिंदू संगठनों और बीजेपी नेताओं ने इकलाख के परिवार को दिया गया मुआवजा वापस लेने व गौ वंश वध का उन लोगों के खिलाफ कायम करने के लिए अखिलेश यादव को घेर लिया है। अखिलेश यादव तय नही कर पा रहे कि इस मामले में क्या करें। उन्होंने सफाई दी कि जिस मांस का नमूना प्रयोगशाला में भेजा गया था वह इकलाख के घर से बरामद नही हुआ बल्कि उसके घर के बाहर कूड़े से उठाया गया था। लेकिन दादरी में तैनात उन्ही के सीओ अनूप कुमार सिंह ने कहा मांस की बरामदगी इकलाख के घर से ही हुई थी।
अखिलेश ने कहा कि कौन क्या पहनता और क्या खाता है यह उसका निजी मामला है लेकिन असल मुददा है कि इकलाख की हत्या हुई है और दुनियां भर में इसके कारण व्यापक चर्चा हुई जिसकी वजह से इकलाख की हत्या में शामिल लोगों को उनके कृत्य के लिए कानूनी अंजाम तक पहुंचाना उनकी सरकार का ध्येय है। जाहिर है कि इस बयान से वे दो घोड़ों की सवारी नही कर सकते। हिंदुत्व संवेदना उनके बयान से आहत हुई है जिससे भाजपा का उददेश्य काफी हद तक सध गया है। अखिलेश भी इसकों समझ रहे हैं। भाजपा के इस पाश और ऐसे ही आने वाले दिनों में फेंके जाने वाले कितने ही और पाशों से बचते हुए वे विधानसभा चुनाव का अपने मुताबिक एजेंडा निर्धारित करने में किस तरह कामयाब होंगें उनके इस कौशल पर प्रेक्षकों की भी और आम लोगों की भी निगाह टिकी है।
भाजपा के पाश में आखिर अखिलेश फंस ही गये
Reviewed by rainbownewsexpress
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12:17:00 pm
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