-संजय कु.आज़ाद/ एनी बेसेंट ने २९ नवम्बर १९२१ को ‘मालाबार एगनी’ शीर्षक से ‘न्यू इंडिया’ में लिखा कि –“अच्छा होगा यदि श्री गांधी को मालाबार ले जाया जा सके जिससे की वह अपनी आँखों से उस भयानकता को देख सकें जो उनके और उनके ‘प्यारे भाइयों’ मुहम्मद और शौकत अली की शिक्षाओं से पैदा हुई है.” ९५ वर्ष पूर्व भारतीय भूमि पर जो कत्लेयाम कांग्रेस और गांधी प्रिय कौम ने धर्म के नाम पर किया था बदस्तूर आज भी जारी है.९५ वर्ष पूर्व इस्लाम के नाम पर मालाबार में हिन्दुओं पर जो कहर बरपाया गया खिलाफत आन्दोलन के दौरान उसकी पुनरावृति इस्लामी आतंकियो ने आज तक पाकिस्तान और बांग्लादेश में करता आया. हिन्दुओ के कत्लेयाम पर ना कल किसी ने प्रतिरोध करने की हिमाकत की और ना आज कोई कर सकता है?
जब गांधी जिन्दा थे तो इन आतंकियो के सबसे बड़े पैरोकार खुद वे थे, जब देश फिरकापरस्त कांग्रेसियो के हाथ गया तो तो इन आतंकियो के सबसे बड़ा मददगार नेहरु-गांधी खानदान और उसके पालकी ढ़ोने बाले सेकुलर ज़मात हुए.पाकिस्तान और बंगलादेश तो छोडिये कटे-फटे भारत के अन्दर ही जहां इस्लाम मतावलम्बियो की संख्या 40 फीसदी से ऊपर है वहाँसे कर रहे हिन्दुओं की पलायन इस्लाम की नियत को दर्शा रही है? किन्तु देश का बहुसंख्यक समाज आज भी शुतुरमुर्ग की भाँती अपने को बनाए है.
बांग्लादेश की राजधानी ढाका के अतिविशिष्ट इलाके के एक बेकरी में इस्लामी आतंकियो ने जो कहर बरपाया वह मालाबार घटना का ही वीभत्स रूप था. संभ्रांत घरो में जन्मे और पढ़े लिखे इन इस्लामी आतंकियो ने उस बेकरी में 40 लोगो को बंधक बनाया.इन आतंकियो ने उन बंधकों से कुरआन की आयत सुनाने को कहा उनमे से १८ लोगों ने कुरआन की आयते सुनाया उसे छोड़ दिया गया. 20 लोगों ने कुरआन की आयते नही सुनाई तो उन काफिरों को चाक़ू से गला रेत कर इन हत्यारों ने कुरआन का आदेश तामिल किया. फिर कुरआन शान्ति का सन्देश कैसे देता है?उन 20 काफिरों में एक भारत की 19 वर्षीय तारिशी जैन जो अमेरिका में पढ़ाई कर रही थी और छुट्टियो में वह बांग्लादेश अपने पिता से मिलने गयी थी की भी हत्या उन इस्लामी आतंकियो ने कर अपनी मर्दानगी का परिचय दिया?
जो कुरान को शान्ति का सन्देश मानते हैं उन्हें इन आयतों पर गौर करना चाहिए— “फिर जब अद्व के महीने बीत जाबें, तो उन मुशरिकों को, जहां पायो कत्ल करो, और उनको गिरफ्तार करो, उनको घेर लो, और हर घात की जगह उनकी ताक में बैठो.फिर अगर वह लोग (कुफ्र और शिर्क से ) तौबा करे और नमाज कायम करे और जकात दें तो उनका रास्ता छोड़ दो, बेशक अल्लाह माफ़ करने वाला बेहद मेहरवान है.( अरवी अनुवाद-फ़ईजन्सलखल अश्हुरुल हुरुम फक्तुलुल मुशरिकीन हैसु वजत्त्मुहुम व् खुजुहुम वह्सुरुहुम वक्य्द लहुम कुल्लमस्र्दीन फहिन ताबु व् अकामुससलात व् आत्वुज्ज्कात फख्ल्लू सबिल्हुमइन्न्ल्लाह गफ्रुरार्हीमून .) {कुरआन शरीफ –शेरवानी संस्करण लखनऊ किताबघर १९८८ पृष्ठ ३१८ एवं ३१९ (सूरा ०९ :०५ )}
अब यदि कुरआन के इस आयत पर गंभीरता से गौर करें तो ढाका में इस्लामी आतंकियो ने इसी आयत का सहारा लिया और कुरानी आदेश पर वीभत्स घटना को अंजाम दिया.उस बेकरी में जिसने कुफ्र और शिर्क से तौबा किया यानी आयत सुना कुरआन में विशवास जताया उसे वापस जाने दिया जीसने ऐसा नही किया उन मुशरिको का क़त्ल कर कुरआन के आदेश का पालन ही तो किया.कुरआन कहता है की हर घात की जगह उनकी ताक़ में बैठो तो वे तालिवानी उसी आदेश का तो पालन कर रहा है.फिर कैसे कुरआन की शिक्षा अमनपसंद हो सकती है?
ढाका हमले पर भी भारत में आज उसी तरह की चर्चा चली जैसा इस्लामी आतंकियो द्वारा मालाबार में हिन्दुओं की नृशंस हत्या करने पर तत्कालीन नेताओं ने की थी. कल भी इस्लाम के इन आतंकी घटनाओं को गांधी चश्मे से देखा जाता था बदस्तूर आज भी हम उसी चश्मे से इन आताताइओ के कुकृत्यों को देख रहे है और हम कुरआन के इन शिक्षाओं को अमनपसंद का सर्टिफिकेट बाँट अपने को सेकुलर बनाने में मशगुल है.जो इतिहास से नही सीखता उसका विनाश निश्चित है.
ढाका या अन्य जगहों पर जिन आतंकियो ने इसतरह के घटना को अंजाम दिया दोष उसका नही है दोष तो उस शिक्षा में जिसे उसने इस्लाम से सीखा है. अब कुरआन के इन आयतों पर ध्यान दीजिये--“ऐ इमानवालों ! तुमको क्या हो गया है की, जब तुमसे कहा जाता है की, अल्लाह की राह में (जिहाद के लिए ) निकलो तो तुम जमीन पर ढेर हुए जाते हो क्या आखिरात छोड़कर दुनिया की जिन्दगी पर रीझे हो ? तो आखिरात के मुकाबले में दुनिया के साज सामान बिलकुल नाचीज है (३८) अगर तुम (बुलाये जाने पर भी जिहाद पर ) न निकलोगे तो (अल्लाह तुमको) बड़ी दुखदाई मार देगा और तुम्हारे सिवाय दुसरे लोगों को (रसूल की पैरवी में )लाकर मौजूद करेगा और तुम उसका कुछ भी नही बिगाड़ सकोगे और अल्लाह हर चीज पर ताकतबर है.(३९) {कुरआन शरीफ –शेरवानी संस्करण लखनऊ किताबघर १९८८ पृष्ठ -३२९ (सूरा १० :३८-३९ )} अब इस तरह के तालीम पाए तालिवान से समाज किस तरह की आशा रखता है? ये तालिवान अपने ईमान के पक्के है जो अपने तालीम का तालिवानी प्रयोग कर जन्न्नत की हूरो के लिए अपने जीवन को विस्फोटकों के हवाले कर इस्लाम के राह में जिहादी बन रहे है?
७११-७१२ इसवी में अल-हज्जाज के दामाद और क्रूर इस्लामी आतंकी मुहम्मद बिन कासिम ने सिंध पर हमला कर भारतीय भूमि पर इस्लामी आतंक का सूत्रपात किया जो अनवरत आज भी जारी है.तबसे लेकर आज तक स्वाभिमानी भारतीयों ने चाहे विजयनगरम के राजा हो या राजस्थान के राजा या बहादुर सिखों के पूज्य गुरु हों सबने इन इस्लामी आतंकी को धुल चटाने का अदम्य साहस का परिचय दिया है, किन्तु हर काल में आज के तथाकथित सेकुलरों के गिरोह के रूप में इसी देश के गद्दारों ने इन आतंकियो का साथ देकर देश के साथ विश्वासघात किया है जो बदस्तूर आज भी ज़ारी है .
प्रसिद्ध पुस्तक जो बी.आर. नंदा द्वारा लिखी गई है “गांन्धी पैन इस्लामिज्म इम्पिरियालिज्म एंड नेशनलिज्म “ के पृष्ठ ११७ पर भारत के भूतपूर्व शिक्षा मंत्री जिसे देश के फिरकापरस्त तंजीम और कांग्रेसी गिरोह महान देशभक्त बताते हुए नही शर्माता उस अबुल कलाम आज़ाद का कथन सोचने को मजबूर करता है-“ भारत जैसे देश को जो एकबार मुसलमानों के शासन में रह चूका है कभी भी त्यागा नही जा सकता है और प्रत्येक मुसलमान का कर्तव्य है की उस खोई हुई मुस्लिम सत्ता को फिर से प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करे.”फिर ओबीसी जैसे खानदानी गद्दार इस देश में आतंकियो का पैरोकार होता है तो गलत क्या?यहाँ तो फिरकापरस्त कांग्रेसी गिरोहों ने देश की संप्रभुता रूपी जड़ में ही मठ्ठा डाल रखा है?
आज का बांग्लादेश जो भारतीय संस्कार और संस्कृति का केन्द्र विन्दु था शक्ति पूजा के अवसर पर ढाका के बजते ढ़ाक कभी भारतीय नौजवानों के रक्त में नया जोश भरता आज वह ढ़ाक की आवाज इस्लामी आतंकियो के क्रूर प्रहार से दम तोडती सिसक रही है.आज वहाँ हिन्दुओं की क्या स्थिति है किसी से छिपा नही है .१९४७ से १९७० तक पाकिस्तानीओ के हाथों वहाँ के हिन्दू मतांतरित होते या कत्ल किये गये १९७० के बाद इसी कुरआन के आयतों को ढाल बना तालिवानियो ने वहाँ के हिन्दुओं को निगलना शुरू किया जो आज भी ज़ारी है क्योंकि हिन्दुओ के मानवाधिकार की बात करना देश में मुसलमानों को बदनाम करने का पाप जो कहलाता है ?
जिस तरह से एनी बेसेंट ने १९२१ में मालाबार में हिन्दुओ के नृशंस हत्या पर वहाँ गांधी जी को ले जाने की बात की थी उसी तरह इस्लामी आतंकियो की घटनाओं को गांधी चश्मे से देखने वाले तथाकथित सेकुलर नपुंसकों को कभी बांग्लादेश या पाकिस्तान के उन इस्लामी गलियारों में ले जाया जाय तब समझ में आये के सेकुलर कौन है ?और इस्लाम का असली स्वरूप क्या है?
एक गौ हत्यारा अखलाख पर असहिष्णुता का राग अलापने वाले तथाकथित बुधिजीविओ का गिरोह आज बांग्लादेश और पाकिस्तान के साथ साथ भारत में हो रहे हिन्दुओं के ऊपर इस्लामी अत्याचार पर अपने घरों की औरतों के पल्लू में मुंह छिपाए क्यों बैठा है .कल तक मानवाधिकार की बात करने वाले सेकुलर दल्ले अखलाख पर अपनी मर्दानगी दिखा मैदान में दहाड़ रहा था इस्लमी आतंकियो की बात आते ही तुरंत नपुंसक कैसे हो जाता है? क्या जीने का अधिकार सिर्फ जिहादी या जिहादी समर्थकों का ही है या जीने का अधिकार शान्ति और वसुधैव कुटुम्बकम में आस्था रखने बालों को भी है.
जिस तरह से विश्व इस्लामी शिक्षा को आधार बना जिहाद की आड़ में मानवता का, संस्कृति का विध्वंस कर रहा है इस विषय पर इस्लाम के पैरोकारों को एकबार गंभीरता पूर्वक विचार करनी चाहिए.कुरआन के उन आयतों जो जिहाद या काफिर जैसे शब्दों के सहारे कत्ल करने की छुट देता है ऐसे शिक्षाओं पर पुनर्विचार करना चाहिए. जिस तरह से पढ़े लिखे मुस्लिम युवा इस्लाम की इन शिक्षाओं को आत्मसात कर जेहादी बन रहा वह इस्लाम के उपर कलंक है. एक ऐसा बदनुमा दाग है जिसे कोई भी इन आयतों के सहारे नही मिटा सकता,मानवता के लिए ऐसी शिक्षा राक्षसी प्रवृति का पैरोकार है जिसके आधार पर कहा जा सकता है की काफिरों का कत्ल या जिहाद के नाम पर मासूमो का, औरतो का क़त्ल करने का आदेश देने वाले मत विश्व में शान्ति सह अस्तित्व को नकार ऐसी शिक्षा हिंसा और अत्याचार के लिए उत्प्रेरक का काम करती है.
-संजय कुमार आजाद,जब गांधी जिन्दा थे तो इन आतंकियो के सबसे बड़े पैरोकार खुद वे थे, जब देश फिरकापरस्त कांग्रेसियो के हाथ गया तो तो इन आतंकियो के सबसे बड़ा मददगार नेहरु-गांधी खानदान और उसके पालकी ढ़ोने बाले सेकुलर ज़मात हुए.पाकिस्तान और बंगलादेश तो छोडिये कटे-फटे भारत के अन्दर ही जहां इस्लाम मतावलम्बियो की संख्या 40 फीसदी से ऊपर है वहाँसे कर रहे हिन्दुओं की पलायन इस्लाम की नियत को दर्शा रही है? किन्तु देश का बहुसंख्यक समाज आज भी शुतुरमुर्ग की भाँती अपने को बनाए है.
बांग्लादेश की राजधानी ढाका के अतिविशिष्ट इलाके के एक बेकरी में इस्लामी आतंकियो ने जो कहर बरपाया वह मालाबार घटना का ही वीभत्स रूप था. संभ्रांत घरो में जन्मे और पढ़े लिखे इन इस्लामी आतंकियो ने उस बेकरी में 40 लोगो को बंधक बनाया.इन आतंकियो ने उन बंधकों से कुरआन की आयत सुनाने को कहा उनमे से १८ लोगों ने कुरआन की आयते सुनाया उसे छोड़ दिया गया. 20 लोगों ने कुरआन की आयते नही सुनाई तो उन काफिरों को चाक़ू से गला रेत कर इन हत्यारों ने कुरआन का आदेश तामिल किया. फिर कुरआन शान्ति का सन्देश कैसे देता है?उन 20 काफिरों में एक भारत की 19 वर्षीय तारिशी जैन जो अमेरिका में पढ़ाई कर रही थी और छुट्टियो में वह बांग्लादेश अपने पिता से मिलने गयी थी की भी हत्या उन इस्लामी आतंकियो ने कर अपनी मर्दानगी का परिचय दिया?
जो कुरान को शान्ति का सन्देश मानते हैं उन्हें इन आयतों पर गौर करना चाहिए— “फिर जब अद्व के महीने बीत जाबें, तो उन मुशरिकों को, जहां पायो कत्ल करो, और उनको गिरफ्तार करो, उनको घेर लो, और हर घात की जगह उनकी ताक में बैठो.फिर अगर वह लोग (कुफ्र और शिर्क से ) तौबा करे और नमाज कायम करे और जकात दें तो उनका रास्ता छोड़ दो, बेशक अल्लाह माफ़ करने वाला बेहद मेहरवान है.( अरवी अनुवाद-फ़ईजन्सलखल अश्हुरुल हुरुम फक्तुलुल मुशरिकीन हैसु वजत्त्मुहुम व् खुजुहुम वह्सुरुहुम वक्य्द लहुम कुल्लमस्र्दीन फहिन ताबु व् अकामुससलात व् आत्वुज्ज्कात फख्ल्लू सबिल्हुमइन्न्ल्लाह गफ्रुरार्हीमून .) {कुरआन शरीफ –शेरवानी संस्करण लखनऊ किताबघर १९८८ पृष्ठ ३१८ एवं ३१९ (सूरा ०९ :०५ )}
अब यदि कुरआन के इस आयत पर गंभीरता से गौर करें तो ढाका में इस्लामी आतंकियो ने इसी आयत का सहारा लिया और कुरानी आदेश पर वीभत्स घटना को अंजाम दिया.उस बेकरी में जिसने कुफ्र और शिर्क से तौबा किया यानी आयत सुना कुरआन में विशवास जताया उसे वापस जाने दिया जीसने ऐसा नही किया उन मुशरिको का क़त्ल कर कुरआन के आदेश का पालन ही तो किया.कुरआन कहता है की हर घात की जगह उनकी ताक़ में बैठो तो वे तालिवानी उसी आदेश का तो पालन कर रहा है.फिर कैसे कुरआन की शिक्षा अमनपसंद हो सकती है?
ढाका हमले पर भी भारत में आज उसी तरह की चर्चा चली जैसा इस्लामी आतंकियो द्वारा मालाबार में हिन्दुओं की नृशंस हत्या करने पर तत्कालीन नेताओं ने की थी. कल भी इस्लाम के इन आतंकी घटनाओं को गांधी चश्मे से देखा जाता था बदस्तूर आज भी हम उसी चश्मे से इन आताताइओ के कुकृत्यों को देख रहे है और हम कुरआन के इन शिक्षाओं को अमनपसंद का सर्टिफिकेट बाँट अपने को सेकुलर बनाने में मशगुल है.जो इतिहास से नही सीखता उसका विनाश निश्चित है.
ढाका या अन्य जगहों पर जिन आतंकियो ने इसतरह के घटना को अंजाम दिया दोष उसका नही है दोष तो उस शिक्षा में जिसे उसने इस्लाम से सीखा है. अब कुरआन के इन आयतों पर ध्यान दीजिये--“ऐ इमानवालों ! तुमको क्या हो गया है की, जब तुमसे कहा जाता है की, अल्लाह की राह में (जिहाद के लिए ) निकलो तो तुम जमीन पर ढेर हुए जाते हो क्या आखिरात छोड़कर दुनिया की जिन्दगी पर रीझे हो ? तो आखिरात के मुकाबले में दुनिया के साज सामान बिलकुल नाचीज है (३८) अगर तुम (बुलाये जाने पर भी जिहाद पर ) न निकलोगे तो (अल्लाह तुमको) बड़ी दुखदाई मार देगा और तुम्हारे सिवाय दुसरे लोगों को (रसूल की पैरवी में )लाकर मौजूद करेगा और तुम उसका कुछ भी नही बिगाड़ सकोगे और अल्लाह हर चीज पर ताकतबर है.(३९) {कुरआन शरीफ –शेरवानी संस्करण लखनऊ किताबघर १९८८ पृष्ठ -३२९ (सूरा १० :३८-३९ )} अब इस तरह के तालीम पाए तालिवान से समाज किस तरह की आशा रखता है? ये तालिवान अपने ईमान के पक्के है जो अपने तालीम का तालिवानी प्रयोग कर जन्न्नत की हूरो के लिए अपने जीवन को विस्फोटकों के हवाले कर इस्लाम के राह में जिहादी बन रहे है?
७११-७१२ इसवी में अल-हज्जाज के दामाद और क्रूर इस्लामी आतंकी मुहम्मद बिन कासिम ने सिंध पर हमला कर भारतीय भूमि पर इस्लामी आतंक का सूत्रपात किया जो अनवरत आज भी जारी है.तबसे लेकर आज तक स्वाभिमानी भारतीयों ने चाहे विजयनगरम के राजा हो या राजस्थान के राजा या बहादुर सिखों के पूज्य गुरु हों सबने इन इस्लामी आतंकी को धुल चटाने का अदम्य साहस का परिचय दिया है, किन्तु हर काल में आज के तथाकथित सेकुलरों के गिरोह के रूप में इसी देश के गद्दारों ने इन आतंकियो का साथ देकर देश के साथ विश्वासघात किया है जो बदस्तूर आज भी ज़ारी है .
प्रसिद्ध पुस्तक जो बी.आर. नंदा द्वारा लिखी गई है “गांन्धी पैन इस्लामिज्म इम्पिरियालिज्म एंड नेशनलिज्म “ के पृष्ठ ११७ पर भारत के भूतपूर्व शिक्षा मंत्री जिसे देश के फिरकापरस्त तंजीम और कांग्रेसी गिरोह महान देशभक्त बताते हुए नही शर्माता उस अबुल कलाम आज़ाद का कथन सोचने को मजबूर करता है-“ भारत जैसे देश को जो एकबार मुसलमानों के शासन में रह चूका है कभी भी त्यागा नही जा सकता है और प्रत्येक मुसलमान का कर्तव्य है की उस खोई हुई मुस्लिम सत्ता को फिर से प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करे.”फिर ओबीसी जैसे खानदानी गद्दार इस देश में आतंकियो का पैरोकार होता है तो गलत क्या?यहाँ तो फिरकापरस्त कांग्रेसी गिरोहों ने देश की संप्रभुता रूपी जड़ में ही मठ्ठा डाल रखा है?
आज का बांग्लादेश जो भारतीय संस्कार और संस्कृति का केन्द्र विन्दु था शक्ति पूजा के अवसर पर ढाका के बजते ढ़ाक कभी भारतीय नौजवानों के रक्त में नया जोश भरता आज वह ढ़ाक की आवाज इस्लामी आतंकियो के क्रूर प्रहार से दम तोडती सिसक रही है.आज वहाँ हिन्दुओं की क्या स्थिति है किसी से छिपा नही है .१९४७ से १९७० तक पाकिस्तानीओ के हाथों वहाँ के हिन्दू मतांतरित होते या कत्ल किये गये १९७० के बाद इसी कुरआन के आयतों को ढाल बना तालिवानियो ने वहाँ के हिन्दुओं को निगलना शुरू किया जो आज भी ज़ारी है क्योंकि हिन्दुओ के मानवाधिकार की बात करना देश में मुसलमानों को बदनाम करने का पाप जो कहलाता है ?
जिस तरह से एनी बेसेंट ने १९२१ में मालाबार में हिन्दुओ के नृशंस हत्या पर वहाँ गांधी जी को ले जाने की बात की थी उसी तरह इस्लामी आतंकियो की घटनाओं को गांधी चश्मे से देखने वाले तथाकथित सेकुलर नपुंसकों को कभी बांग्लादेश या पाकिस्तान के उन इस्लामी गलियारों में ले जाया जाय तब समझ में आये के सेकुलर कौन है ?और इस्लाम का असली स्वरूप क्या है?
एक गौ हत्यारा अखलाख पर असहिष्णुता का राग अलापने वाले तथाकथित बुधिजीविओ का गिरोह आज बांग्लादेश और पाकिस्तान के साथ साथ भारत में हो रहे हिन्दुओं के ऊपर इस्लामी अत्याचार पर अपने घरों की औरतों के पल्लू में मुंह छिपाए क्यों बैठा है .कल तक मानवाधिकार की बात करने वाले सेकुलर दल्ले अखलाख पर अपनी मर्दानगी दिखा मैदान में दहाड़ रहा था इस्लमी आतंकियो की बात आते ही तुरंत नपुंसक कैसे हो जाता है? क्या जीने का अधिकार सिर्फ जिहादी या जिहादी समर्थकों का ही है या जीने का अधिकार शान्ति और वसुधैव कुटुम्बकम में आस्था रखने बालों को भी है.
जिस तरह से विश्व इस्लामी शिक्षा को आधार बना जिहाद की आड़ में मानवता का, संस्कृति का विध्वंस कर रहा है इस विषय पर इस्लाम के पैरोकारों को एकबार गंभीरता पूर्वक विचार करनी चाहिए.कुरआन के उन आयतों जो जिहाद या काफिर जैसे शब्दों के सहारे कत्ल करने की छुट देता है ऐसे शिक्षाओं पर पुनर्विचार करना चाहिए. जिस तरह से पढ़े लिखे मुस्लिम युवा इस्लाम की इन शिक्षाओं को आत्मसात कर जेहादी बन रहा वह इस्लाम के उपर कलंक है. एक ऐसा बदनुमा दाग है जिसे कोई भी इन आयतों के सहारे नही मिटा सकता,मानवता के लिए ऐसी शिक्षा राक्षसी प्रवृति का पैरोकार है जिसके आधार पर कहा जा सकता है की काफिरों का कत्ल या जिहाद के नाम पर मासूमो का, औरतो का क़त्ल करने का आदेश देने वाले मत विश्व में शान्ति सह अस्तित्व को नकार ऐसी शिक्षा हिंसा और अत्याचार के लिए उत्प्रेरक का काम करती है.
शीतल अपार्टमेन्ट, रांची -2
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इस्लामी शिक्षा : जिहाद का उत्प्रेरक ?
Reviewed by rainbownewsexpress
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