-संजय कुमार आज़ाद/ भारत की महान परम्परा में गुरु शिष्य का सम्वन्ध पिता-पुत्र से भी बढ़कर रहा है.यहाँ गुरुकुलो की परम्परा में शिक्षा का जो दीप प्रज्वालित होता था वह शिष्यों में नैतिक, चारित्रिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय मूल्यों को अंतर्मन में ऐसा स्थापित करता जिससे वह शिष्य गुरुकुलों से निकल कर, सीधे समाज को सात्विक राह पर चलाते हुए वसुधैव कुटुम्बकम की नीब पर मार्गदर्शन करने में सक्षम होते रहे है.किन्तु बर्बर इस्लामी आक्रान्ता और उसके बाद अंग्रेजों ने हमारी उस महान परम्परा को ध्वस्त कर जिस शिक्षा का प्रचलन देश में किया वह एक गुलाम का ही निर्माण कर सकता था. जब अंग्रेजो ने भारत से अपना बोरिया विस्तर समेटा तब देश में शिक्षा की भारतीय अवधारणा को लागू होने की आशा जगी.देश का दुर्भाग्य था की सत्ता उस व्यक्ति के हाथो में रही जो अन्दर से विदेशी और बाहर से भारतीय मन की अवधारणा में जीता था.हश्र वही हुआ की जितना क्षति इस देश की शिक्षण प्रणाली में विदेशियो के कारण नही हुआ उससे ज्यादा क्षति इस देश की शिक्षा जगत को नेहरु की नीतिओ के कारण यानी नेहरुवियनो के कारण हुई .
सफेद कालर बाले गिरोहों के सरगना नेहरु ने इस देश की शिक्षा की बुनियाद को गांधीजी के इच्छाओ के विपरीत मैकाले के साथ मार्क्स और मुल्ला के गठजोड़ से आम की पेड़ के जगह बबुल को प्रश्रय दिया जिसका वीभत्स रूप अभी रांची के सफायर इंटरनेशनल स्कुल और दिल्ली के जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय में देखने को मिला. रांची के महगे स्कुलो में शुमार सफायर इंटरनेशनल स्कुल के हिंदी विषय की मुस्लिम शिक्षिका नाजिया हुसैन ने अपने 16 साल के बेटे के सहयोग से उसी स्कुल में वर्ग सातवी का हिन्दू छात्र विनय कुमार को इसलिए वेरह्मी से कत्ल कर दिया क्योंकि विनय उस नाजिया की बेटी जो उसी स्कुल में वर्ग 6 की छात्रा थी के साथ बाल-प्रेम करता था.इस अमानवीय कुकृत्य में अपने नावालिक बेटे को आगे रख जिस तरह की पाशविकता का परिचय नाजिया हुसैन ने दी वह इस्लामी बर्बता का हिसक रूप है.
सफेद कालर बाले गिरोहों के सरगना नेहरु ने इस देश की शिक्षा की बुनियाद को गांधीजी के इच्छाओ के विपरीत मैकाले के साथ मार्क्स और मुल्ला के गठजोड़ से आम की पेड़ के जगह बबुल को प्रश्रय दिया जिसका वीभत्स रूप अभी रांची के सफायर इंटरनेशनल स्कुल और दिल्ली के जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय में देखने को मिला. रांची के महगे स्कुलो में शुमार सफायर इंटरनेशनल स्कुल के हिंदी विषय की मुस्लिम शिक्षिका नाजिया हुसैन ने अपने 16 साल के बेटे के सहयोग से उसी स्कुल में वर्ग सातवी का हिन्दू छात्र विनय कुमार को इसलिए वेरह्मी से कत्ल कर दिया क्योंकि विनय उस नाजिया की बेटी जो उसी स्कुल में वर्ग 6 की छात्रा थी के साथ बाल-प्रेम करता था.इस अमानवीय कुकृत्य में अपने नावालिक बेटे को आगे रख जिस तरह की पाशविकता का परिचय नाजिया हुसैन ने दी वह इस्लामी बर्बता का हिसक रूप है.
इतने पढ़े लिखे होने के बाद भी नाजिया उस इस्लामी बर्बरता से अपने आपको नही दूर रख सकी .इतना ही नही इस बाल-प्रेम को नाजिया विना कत्ल किये भी हल कर सकती थी किन्तु इस्लाम की वह शिक्षा जो काफिरों के प्रति नफरत की भाव पैदा करती है, काफिरों को कत्ल करने का हुक्म देती है, वैसे में काफिर विनय के लिए सहिष्णुता असम्भव है तभी तो इस जघन्य हत्या में नाजिया हुसैन का पति आरिफ हुसैन भी संलिप्त रहा है. नाजिया इस घटना को इस तरह से पेश कर रही है की इस घटना को उसके नावालिक बेटे ने अंजाम दिया जबकि एक और अपने वयान में कहती है-“शोर सुनकर जब उठी तो विनय का सर फटा था”.यदि एक शिक्षिका के नाते उस समय नाजिया चाहती तो भी विनय की जिदगी को बचा सकती थी किन्तु बचाने के बजाय उसने मिलकर विनय को प्रथम तल्ले से निचे फेक साक्ष्यों को मिटाने में लगी रही .शिक्षिका के नाम पर ऐसे रक्त पिपासु महिला, शिक्षिका हो ही नही सकती?
क्या नाजिया हुसैन में मातृत्व की बह भाव नही जागी, वात्सल्य का वह प्रेम नही जाग्रत हुआ, जो इतनी रक्त पिपासु पिशाचनी के रूप में विनय का कत्ल की.यह दो ही दशा में संभव है एक जब स्त्री जानबूझकर अपने स्त्रीत्व को बाज़ार में परोसती है तब उसका नैतिक या सम्वेदना जडशून्य हो जाती है.और दूसरा जब उसके मत-संगत और संस्कार दूषित होते है शायद नाजिया जैसी रक्तपिपासु दोनों प्रवृतियो से पोषित रही है. ऐसे में बाज़ार के महंगे उत्पादक देने बाले स्कुल सफायर इंटरनेशनल स्कुल का प्रवंधन समिति बगैर पारिवारिक और सामाजिक के साथ-साथ विना मनोवैज्ञानिक जांच के न्यूक्ति कैसे लेती है.आज विनय हमारे बीच नही है.एक प्रतिभाशाली हिन्दू छात्र क्रूर इस्लाम से दीक्षित मुस्लिम महिला नाजिया के हाथों क़त्ल कर दिया गया.इस मुस्लिम महिला का कुकृत्य शिक्षा में नेहरु की नीतिओं का वीभत्स रूप है.
नेहरु और उसके पोषको ने सत्ता प्राप्ति के बाद जिस विचार को प्रश्रय दिया वह देश के गद्दारों को अपना हीरो मानता है ?इसका वानगी दिल्ली के जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में समय समय पर देखने को मिलता रहा है. 8308 विद्यार्थियो बाला यह उच्चतर संस्थान जिस पर प्रति वर्ष देश का 244 करोड़ रूपये पानी की तरह बहाया जाता है .यह विश्वविध्यालय नेहरु गांधी परिवार के साथ साथ मार्क्स और मुल्लो के आँखों का तारा रहा है किन्तु इतने सरकारी सुविधाओं के बाद भी यह विश्वविद्यालय विश्व के शीर्षस्थ 200 विश्वविद्यालयों के श्रेणी में कहीं नहीं आ पाया है? जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय सुर्ख़ियों में कभी शोध के लिए नही, देश विरोधी गतिविधिओ के लिए हमेशा सुर्खियो में रही है. शिक्षा के नाम पर स्थापित यह संस्थान देश की एकता अखंडता को बढ़ावा देने के बजाय यहाँ भारत को टुकड़े टुकड़े में बांटने के सपने बेचे जाते है,देश में आतंकवाद, जातिवाद, नक्सलवाद जैसे कुक्र्त्यों को करने के लिए खाद इसी विश्वविद्यालय में तैयार होती रही है .
देश में गद्दारों की युवा टोली के निर्माण के लिए कलंकित यह विश्वविद्यालय में 09 फरवरी 16 को सायं जो हुआ वह देश की संप्रभुता को खुली चुनौती थी.उमर खालिद नामक मुस्लिम ने अपने गिरोहों के साथ विश्वविध्यालय परिसर के सावरमती ढावा में सांस्कृतिक कार्यकर्म के बहाने जो किया वह कोई भी स्वतंत्र देश अपने नागरिको से इसकी कल्पना तक नही कर सकता है.अगर चीन होता तो वहाँ उन देशद्रोहियो को टैंको से कुचलवा अपनी देश की संप्रभुता की रक्षा करता? उस दिन उस परिसर में इन गद्दारों के गिरोह “इंडिया गो बैक”,और “भारत की बर्वादी तक- जंग रहेगी, जंग रहेगी” का नारा लगाता रहा और वहाँ की प्रशाशनिक व्यबस्था गूंगी,बहरी और अंधी होकर चुपचाप सुनती रही. यह देश के लिए डुव मरने की स्थिति है.ऐसे देशद्रोही गद्दारों की टोली से ना समाज का भला है ना देश का और ना उस परिवार का जिसके यहाँ जन्म लेकर अपने माता-पिता को शर्मसार किया है फिर इसे जीने का अधिकार कैसे हो सकता है?
हद तो तब हो गयी जब इन गद्दारों को देश के मिडिया अपनी बात कहने के लिए उसे बुलाती है और हम वेशर्मी से उन देशद्रोहियो की, उन गद्दारों की बात,अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर सुनते है. क्या हम भगत सिंह या नेताजी सुभाष के बजाय जयचंदों की संतान हैं? हमारी रगों में दौड़ता हुआ खून इन गद्दारों की बात सुनने के बजाय इन गद्दारों के सर को धड से अलग करने की प्रेरणा क्यों नही देती है?भारत की बर्वादी की कसम खाने वाला चाहे वह कोई हो उसे इस भूमि पर जीवित रहने का कोई अधिकार नही है .जो हमारे देश की सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को जुडिशियल किलिंग समझता हो वैसे गद्दारों के सांस से हमारे देश की वायु दूषित नही होनी चाहिए?
नेहरु और उसके पोषको ने सत्ता प्राप्ति के बाद जिस विचार को प्रश्रय दिया वह देश के गद्दारों को अपना हीरो मानता है ?इसका वानगी दिल्ली के जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में समय समय पर देखने को मिलता रहा है. 8308 विद्यार्थियो बाला यह उच्चतर संस्थान जिस पर प्रति वर्ष देश का 244 करोड़ रूपये पानी की तरह बहाया जाता है .यह विश्वविध्यालय नेहरु गांधी परिवार के साथ साथ मार्क्स और मुल्लो के आँखों का तारा रहा है किन्तु इतने सरकारी सुविधाओं के बाद भी यह विश्वविद्यालय विश्व के शीर्षस्थ 200 विश्वविद्यालयों के श्रेणी में कहीं नहीं आ पाया है? जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय सुर्ख़ियों में कभी शोध के लिए नही, देश विरोधी गतिविधिओ के लिए हमेशा सुर्खियो में रही है. शिक्षा के नाम पर स्थापित यह संस्थान देश की एकता अखंडता को बढ़ावा देने के बजाय यहाँ भारत को टुकड़े टुकड़े में बांटने के सपने बेचे जाते है,देश में आतंकवाद, जातिवाद, नक्सलवाद जैसे कुक्र्त्यों को करने के लिए खाद इसी विश्वविद्यालय में तैयार होती रही है .
देश में गद्दारों की युवा टोली के निर्माण के लिए कलंकित यह विश्वविद्यालय में 09 फरवरी 16 को सायं जो हुआ वह देश की संप्रभुता को खुली चुनौती थी.उमर खालिद नामक मुस्लिम ने अपने गिरोहों के साथ विश्वविध्यालय परिसर के सावरमती ढावा में सांस्कृतिक कार्यकर्म के बहाने जो किया वह कोई भी स्वतंत्र देश अपने नागरिको से इसकी कल्पना तक नही कर सकता है.अगर चीन होता तो वहाँ उन देशद्रोहियो को टैंको से कुचलवा अपनी देश की संप्रभुता की रक्षा करता? उस दिन उस परिसर में इन गद्दारों के गिरोह “इंडिया गो बैक”,और “भारत की बर्वादी तक- जंग रहेगी, जंग रहेगी” का नारा लगाता रहा और वहाँ की प्रशाशनिक व्यबस्था गूंगी,बहरी और अंधी होकर चुपचाप सुनती रही. यह देश के लिए डुव मरने की स्थिति है.ऐसे देशद्रोही गद्दारों की टोली से ना समाज का भला है ना देश का और ना उस परिवार का जिसके यहाँ जन्म लेकर अपने माता-पिता को शर्मसार किया है फिर इसे जीने का अधिकार कैसे हो सकता है?
हद तो तब हो गयी जब इन गद्दारों को देश के मिडिया अपनी बात कहने के लिए उसे बुलाती है और हम वेशर्मी से उन देशद्रोहियो की, उन गद्दारों की बात,अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर सुनते है. क्या हम भगत सिंह या नेताजी सुभाष के बजाय जयचंदों की संतान हैं? हमारी रगों में दौड़ता हुआ खून इन गद्दारों की बात सुनने के बजाय इन गद्दारों के सर को धड से अलग करने की प्रेरणा क्यों नही देती है?भारत की बर्वादी की कसम खाने वाला चाहे वह कोई हो उसे इस भूमि पर जीवित रहने का कोई अधिकार नही है .जो हमारे देश की सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को जुडिशियल किलिंग समझता हो वैसे गद्दारों के सांस से हमारे देश की वायु दूषित नही होनी चाहिए?
कश्मीर की आजादी की चाहत रखने बाले, पाकिस्तान जिन्दावाद के नारे लगाने बाले और हमारी महान सेना पर अंगुली उठाने बाले ये भटके हुए लोग नही है ये मार्क्स मैकाले और मुल्लो का देशद्रोही गिरोह है.इस गिरोह को नेहरुवियनो के दल्लों ने डालरों के लालच में पालापोषा है. इसे भारत की संप्रभुता से नफरत है और ऐसे गद्दारों की कब्र भी भारत के सरजमीं पर नही होने चाहिए. सफायर स्कुल के छात्र विनय के हत्या के मामले में रांची उच्च न्यायालय ने मौखिक टिप्पणी की कि- “शिक्षक का काम है बच्चों को पढ़ाना उनका विकास करना है यदि शिक्षक ही छात्र की हत्या कर दे तो वह शर्मनाक और दुखद है .सफायर स्कुल में यदि ऐसी घटना हुई है तो स्कुल अविलम्ब बंद कर देना चाहिए.” फिर जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय दिल्ली जिसने अपने 49 साल के सफर में देश को सिर्फ और सिर्फ नफरत दिया वैसे राष्ट्रद्रोही संस्थान को क्यों नही बंद किया जाना चाहिए.
देश की जनता के गाढ़ी कमाई से चुकाया जाने वाला कर से इन संस्थानों में यदि देशद्रोही सपोले पलते है है तो फिर इन बिलों को बंद कर इन सपोलों के फनो को क्यों नही कुचला जाता है? नेहरुवियनो शिक्षा का दंश हमारे देशभक्त युवा क्यों झेले.हमने बहुत समय तक भगवान् शिव की तरह इन सपोलों के विष को कंठ में धारण करता रहा अब समय आ गया है की हमें शिव ताण्डव से ही इन सपोलों से इस भारत भूमि को मुक्त करानी होगी ताकि हमारे युवा भारत के वैभवशाली संस्कार से नये भारत का निर्माण कर सके, जिनके आदर्श याकूब या अफज़ल नही जिनके प्रेरणा पुंज भगत और नेताजी विवेकानंद और सावरकर हों.भारत सरकार यदि देश की संप्रभुता के साथ हो रहे खिलवाड़ पर मौन है तो यह समाज के लिए चिंतनीय है.
-संजय कुमार आज़ाद देश की जनता के गाढ़ी कमाई से चुकाया जाने वाला कर से इन संस्थानों में यदि देशद्रोही सपोले पलते है है तो फिर इन बिलों को बंद कर इन सपोलों के फनो को क्यों नही कुचला जाता है? नेहरुवियनो शिक्षा का दंश हमारे देशभक्त युवा क्यों झेले.हमने बहुत समय तक भगवान् शिव की तरह इन सपोलों के विष को कंठ में धारण करता रहा अब समय आ गया है की हमें शिव ताण्डव से ही इन सपोलों से इस भारत भूमि को मुक्त करानी होगी ताकि हमारे युवा भारत के वैभवशाली संस्कार से नये भारत का निर्माण कर सके, जिनके आदर्श याकूब या अफज़ल नही जिनके प्रेरणा पुंज भगत और नेताजी विवेकानंद और सावरकर हों.भारत सरकार यदि देश की संप्रभुता के साथ हो रहे खिलवाड़ पर मौन है तो यह समाज के लिए चिंतनीय है.
शीतल अपार्टमेंट निवारनपुर रांची-834002
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नेहरूवियन शिक्षा का दंश झेलता भारत
Reviewed by rainbownewsexpress
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5:09:00 pm
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