एकाकीपन

मुझे
एक भीड़ ने घेर रखा था
क्योंकि-
मैं अपने घर का रास्ता
भूल गया था
मैं
उस भीड़ में
अपने को असहाय
महसूस कर रहा था
मुझे
मात्र अकेलापन
भयाक्रान्त किए था
मैं
अपने एकाकीपन से
शीघ्र छुटकारा पाना चाहता था
इसलिए-
भीड़ पर दृष्टिपात
करता हुआ
अपने
किसी सहायक की खोज में
जुटा था।
मैं
अपनी पहचान बनाने के लिए
याचक भाव से
हरेक पर नजरें घुमाता था
पर भीड़ और
भीड़ के चेहरों में से
किसी ने मेरा साथ
नहीं दिया था
मैं-
अपनी कातर भाव-भंगिमा से
भीड़ को प्रभावित
करने का असफल प्रयास
करता था।
फिर भी भीड़ ने
मेरी आँखों की तरलता
की तरफ
ध्यान नहीं दिया था।
मैं अपने को
खोया-खोया सा महसूस
करने लगा था।
मैं सोचने लगा था कि-
आज हर कोई घर के रास्ते
भूले हुए मेरी तरह
अपनी-अपनी आँखों में
‘याचना’ भाव लिए
खड़ा है
अपने शहर की भीड़ में
अपनी पहचान
बनाने के लिए।

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मैंने देखा........

रात को मैं
शहर की सुनसान सड़क से
गुजर रहा था।
मैंने देखा-
घण्टाघर के पास
जहाँ मूंगफली वाला
बैठा करता है,
वहीं एक कृशकाय लड़का
ठण्डक से बचने के लिए
एक चद्दर ओढ़े
सिमटा हुआ लेटा था।
उसे ठण्ड के कारण
नींद नहीं आ रही थी।
वह ठण्ड से
थरथर कांप रहा था।
विचारों के तानेबाने में उलझा
अपने घर की तरफ
जा रहा था।
मैं रूक गया था,
रात में चांदनी छिटकी हुई थी
तारे टिमटिमाते हुए
शरद ऋतु की रात में
आकाश पर छाये हुए थे।
मुझे चांदनी रात
सुखद लग रही थी- लेकिन
ठण्ड से ठिठुरते लड़के को देखकर
मुझे लगा था कि
यह भाग्य की बेइमानी है।
किसी को शीत ऋतु की
चांदनी अच्छी लगे
और कोई-
वही रात किसी तरह
काटने पर विवश हो।।।
-डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी
Mob. 9454908400
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