देश में बढ़ रही विकृत मानसिकता



अवनीश सिंह भदौरिया/ हमारे देश में मानवता को शर्मसार करने वाली घटनाओं में बढ़ोत्तरी होती जा रही है। वहीं, मानवता को शर्मसार करने वाले मामले डराने वाले हैं। आज भी हमारे आजाद भारत में बाल शोषण और उनके साथ बलात्कार जैसे मामले सामने आते रहते हैं। वहीं, इन घिनौने मामलों पर रोक लगाने में सरकार नाकाम रही है और यह एक बहुत बड़ा चिंता का विषय है। देश में इंसानियत के सीने पर एक भारी पत्थर की तरह हमेशा ऐसी घटनाएं चुभती आ रही हैं और मानवीयता के दामन पर काले धब्बे की तरह हमेशा हमें मुंह चिढ़ाती रहती हंै। नाबालिकों की सुरक्षा को लेकर अब डर और बढऩे लगा है। यह ऐसी घटनाएं हर बार हम और आप से एक ही सवाल करती हैं कि तब से अब तक बदला क्या? क्या नाबालिकों की सुरक्षा को लेकर वो डर कम हुआ। वहीं, ये मामले पिछले पांच सालों मे और ज्यादा हो गये हैं क्या उन आशंकाओं में कुछ कमी हुई जो सुबह से लेकर शाम तक उन मां-बाप को घेर लेती हैं जिनके बच्चे घरों से बाहर निकलते हैं, पढ़ते हैं, काम करते हैं। जवाब है नहीं, बिल्कुल नहीं। न माहौल बदला और न आंकड़े।
ऐसे मामलों पर लगातार सवाल उठ रहा है कि आखिर हमारे समाज को हो क्या गया है। आखिर लोगों की मानसिकता इतनी विकृत क्यों होती जा रही है। गर आप नाबालिकों से बलात्कार के आंकड़े जानना चाहते हैं तो आंकडों को जानने के बाद आप का दिल दहल जाएगा। नाबालिकों के साथ बलात्कार जैसा घिनौना अपराध देश पर हावी होते जा रहे हैं। वहीं, जो आंकड़े जारी हुए हैं वो चौंकाने वाले हैं। भारत में पिछले पांच साल में नाबालिकों से बलात्कार के मामलों में 151 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है। नाबालिकों के साथ हुए बलात्कार जैसे अपराध उनकी आने वाली जिंदगी में जहर घोल देते हैं। वहीं, नाबालिकों के साथ हुए बलात्कार जैसे अपराध पर अभी तक कोई ऐसा कानून नहीं बना है जो उनकी जिंदगी में दाग लगाने वालों के खिलाफ कठोर से कठोर कार्रवाई कर सके। हमारे देश में नाबालिकों से बलात्कार के मामलों पर आवाज तो उठी लेकिन वो आज तक सुनी नहीं गई और सायद इसी का नतीजा है कि आज हमारे देश में बाल शोषण और उनके साथ बलात्कार जैसे मामले दिन-प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे हैं और ऐसे मामलों ने देश को झकझोर के रख दिया है।  नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो ने नाबालिकों से बलात्कार के आंकड़ों के अनुसार 2010 में दर्ज 5,484 मामलों से बढ़कर यह संख्या 2014 में 13,766 हो गई है। इसके अलावा बाल यौन शोषण सरंक्षण अधिनियम के तहत देश भर में 8,904 मामले दर्ज किए गए हैं। वहीं, आंकड़े 2010 में 5484 से बढकर 2011 में 7112 और 2012 में ये आंकड़े 80541 पहुंच गये लेकिन यह सिसिला यहीं नहीं रुका और 2013 में 12363 और 2014 में नाबालिकों से बलात्कार के मामले बढकर13766 जा पहुंची। यह आंकड़े जानने के बाद रूह कांप जाती है। शासन से लेकर प्रशासन तक ऐसे मामलों रोकने में अभी तक नाकाम रहे हैं। यही वजह है कि अब बच्चों की सुरक्षा पर सवालिया निशासन लगने लगे हैं। वहीं, सबसे ज्यादा तर ऐसे मामले बड़े-बड़े राज्यों में होते हैं। मध्यप्रदेश में 2325 तो महाराष्ट्र में 1714, उत्तरप्रदेश में 1538, राजधानी दिल्ली 1004 और राजस्थान 825 से अधिक मामले सामने आये हैं। नाबालिकों से बलात्कार के मामलों में सबसे ऊपर मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र हैं। यहां की सरकार बातों के अलावा कुछ नहीं कर सकती। वहीं, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री लगातार तीसरी बार बने शिवराज सिंह चौहान को अगर इन मामलों की जानकारी नहीं है तो हम उन्हें यह जरूर बता दें कि वे ऐसे घिनौने मामलों पर जरूर चिंतन करें और बढ़ते मामलों पर अंकुश लागाने की कोशिश करेंंं। एनसीआरबी के अनुसार बच्चों के साथ बलात्कार के मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 354 के तहत महिला (बच्ची) की लाज भंग करने के इरादे से किए गए हमले के 11,335 मामले दर्ज किए गए हैं।
देश में नाबालिकों से बलात्कार और छेड़छाड़ के मामलों के आंकड़े झकझोर के रखने वाले हैं। वहीं, इंसाफ की चौखट पर आज भी कई मामलों न्याय मांगते खड़े हैं और में कार्रवाई अधूरी रहीं है। उनके आंकड़े भी हैरान करने वाले हैं। आंकड़ों की बात करें तो 6816 मामलों में एफआईआर दर्ज की गई है। 5340 में मामलों में चार्जशीट दर्ज की गई है। 166 मामलों में दोषियों को सजा हुई है। 389 मामलों में अभियुक्त बरी हो गये। संसद में पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार अक्टूबर 2014 तक पोक्सो के तहत दर्ज 6,816 एफआईआर में से सिर्फ 166 में ही सजा हो सकी है। यह 2.4 फीसदी से भी कमजोर दर है। इसी तरह एनसीआरबी के अनुसार 2014 तक पांच साल में दर्ज मामलों में 83फीसदी लंबित थे जिनमें से 95फीसदी पोक्सो के मामले थे और 88फीसदी 'लाज भंगÓ करने के थे। वहीं कुछ दिनों पहले नाबालिकों के साथ बढ़ते बलात्कारों के मामलों को देखते हुए मद्रास हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह बच्चों का बलात्कार करने वालों को सजा के तौर पर नपुंसक बनाने के प्रस्ताव पर गौर करे। मद्रास हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह बच्चों का बलात्कार करने वालों को सजा के तौर पर नपुंसक बनाने के प्रस्ताव पर गौर करे। जारी तल्ख ऑर्डर में कोर्ट ने कहा, 'हम आंखें मूंद कर चुपचाप बैठे नहीं रह सकते। पूरे देश में बच्चों के साथ गैंगरेप की खौफनाक वारदात हो रही हैं। कोर्ट इसे चुपचाच नहीं देख सकता।Ó वहीं, इस प्रस्ताव को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हम ऐसा नहीं कर सकते। वहीं, कुछ दिनों पहले सुप्रीम कोर्ट ने फिर नाबालिकों के साथ बढ़ते विकृत अपराधों पर केंंद्र सरकार से इस मामले पर जोर देते हुए कहा था कि किसी बच्ची से बलात्कार के जुर्म में दोषी को कठोर सजा देने का प्रावधान करने के लिये संसद को कानून में संशोधन पर विचार करना चाहिए और बलात्कार के ऐसे अपराध में 'बालिकाÓ को परिभाषित करना चाहिए। न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति एन वी रमण की पीठ ने महिला वकीलों के संगठन की याचिका पर विचार करने से इंकार करते हुये कहा, 'संसद भारतीय दंड संहिता में ऐसे प्रावधान करने पर विचार कर सकती है और वह बलात्कार के अपराध के संदर्भ में 'बच्चेÓ को परिभाषित करने पर भी विचार कर सकती है।Ó महिला वकीलों का संगठन चाहता था कि बच्चियों से बलात्कार के दोषियों का बंध्यकरण किया जाना चाहिए। न्यायालय ने इस सवाल को विधायिका के विचारार्थ छोड़ दिया। सोचने वानी बात यह है कि हमारे देश में ऐसे घिनौने अपराध होते ही क्यों हैं। और इन्हें राकने के लिए हामरी सरकार को क्या करना चहिए? यह एक चिंता का विषय डरावना है। देश में नाबालिकों की जिंदगी से खेला जा रहा है। हम दुख व्यक्त करने के अलावा कुछ नहीं कर सकते। नाबालिकों की सुरक्षा के लिए ऐसे कानून को बनाने की जरूरत है जो उनकी जिंदगी को महफूज रख सके और उन्हें आजाद भारत होने का एहसास करा सके।
(लेखक अवनीश सिंह भदौरिया दैनिक न्यू ब्राइट स्टार में उप संपादक हैं।)
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