चिंताजनक है सैनिकों में बढ़ता अवसाद

-लक्ष्मन शर्मा/ इसी वर्ष सितंबर महीने में हिसार की सैनिक छावनी की बैरक में केरल निवासी 33 वर्षीय दिलीप कुमार ने फांसी का फंदा लगाकर आत्म हत्या कर ली। हत्या का कारण पहली जांच में परिवार से दूर रहने के कारण उपजा अवसाद बताया गया। भिंड के एसडीएम बीबी अग्निहोत्री के आवास पर तैनात पूर्व सैनिक भूप सिंह भदौरिया ने फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली। 10 मार्च 2015 को होमगार्ड कमांडेंट शिवराज सिंह चौहान की प्रताडऩा से आजिज आकर होमगार्ड सैनिक रामवीर शर्मा ने खुदकुशी कर ली। ये कुछ घटनाएं हैं, जो इस बात को साबित करती हैं कि सेना, अर्ध सैनिक बलों और पुलिस बल में आत्महत्या की घटनाएं दिनोंदिन बढ़ रही हैं। ऐसी घटनाओं का बढऩा, किसी भी सरकार के लिए चिंताजनक हो सकता है। वैसे, ऐसी घटनाएं सिर्फ भारत में ही बढ़ रही हैं, ऐसा भी नहीं है। इंग्लैंड, ईरान, इराक और अमेरिका सहित तमाम यूरोपीय देशों में सैनिक विभिन्न कारणों से आत्महत्या कर रहे हैं।
अगर हम आंकड़ों की बात करें, तो देश में सैनिकों, अर्ध सैनिक बलों और पुलिस कर्मचारियों में दिनोंदिन बढ़ता मानसिक तनाव और अवसाद एक महामारी का रूप लेता जा रहा है। ऐसी सेवाओं में कार्यरत 25.7 फीसदी कर्मचारी वैवाहिक विवाद के चलते आत्महत्या कर लेते हैं। इन वैवाहिक विवादों में परिवार को समय न दे पाना, पति या पत्नी का अवैध संबंध आदि होते हैं। वर्ष 2014 में 24 महिलाओं और 21 पुरुषों की आत्महत्या का कारण शादी न हो पाने, शादी होने के कुछ ही दिनों बाद तलाक हो जाने या पति अथवा पत्नी में से किसी के अवैध संबंध हो जाने जैसी बातें थीं। 10.3 फीसदी आत्महत्या की घटनाएं पारिवारिक विवाद के चलते सामने आती  हैं। परिवार में मां-बाप और पति या पत्नी, भाई-बहन आदि के बीच पैदा होने वाले विवाद इसी श्रेणी में आते हैं। इसके कई कारण भी हो सकते हैं जिनमें संपत्ति का विवाद प्रमुख होता है। सीमा पर सीना तानकर खड़ा सैनिक, अर्ध सैनिक बल का जवान या किसी शहर के इलाके में शांति व्यवस्था को कायम रखने के लिए खड़ा पुलिस का सिपाही, थानेदार अपनी ही नौकरी की चिंता में घुला जा रहा है, यह तब तक पता नहीं चलता, जब तक वह आत्म हत्या नहीं कर लेता है। सेना और पुलिस अधिकारियों का अपने सैनिकों और पुलिस कर्मचारियों के साथ कैसा होता है, यह सिर्फ महसूस किया जा सकता है। इन सेवाओं में कार्यरत 8.6 फीसदी लोग अपनी नौकरी छूटने के तनाव में खुदकुशी कर लेते हैं। मध्य प्रदेश में 45.7 फीसदी, जम्मू-कश्मीर में 20 फीसदी और तेलंगाना में 10.8 फीसदी सैनिक अब तक आत्महत्या कर चुके हैं। आत्महत्या करने वाले राज्यों में इन तीनों का स्थान सबसे ऊपर है। वर्ष 2008 से लेकर 2011 के बीच 228 सीआरपीएफ जवान आत्महत्या कर चुके हैं, वहीं 2009 से 2013 के बीच 597 अर्ध सैनिक बलों के जवान मौत को गले लगा चुके हैं। वैसे, तो पूरे देश में जितने भी अर्ध सैनिक बल के जवान हैं, उनमें सिर्फ 2 फीसदी महिलाएं हैं, लेकिन इन 2 फीसदी महिलाओं में से 40 फीसदी महिलाएं आत्महत्या कर चुकी हैं। इसके पीछे पारिवारिक विवाद, कार्य स्थल पर यौन शोषण, अवैध संबंध, कार्य का अत्यधिक दबाव जैसे कारण प्रमुख रहे हैं। विषम परिस्थितियों, अत्यधिक कार्य का दबाव आदि कारणों के चलते वर्ष 2013 में 4,186 जवान नौकरी छोड़कर जा चुके हैं, वहीं वर्ष 2014 में विभिन्न कारणों से नौकरी छोडऩे वाले जवानों की संख्या 5 हजार से ज्यादा थी।
देश के अशांत इलाकों में तैनात सेना या अर्ध सैनिक बलों के जवानों में आत्महत्या की प्रवृत्ति कुछ अधिक ही देखने में आ रही है। माओवाद, नक्सलवाद या आतंकवाद प्रभावित राज्यों में सैनिकों के खुदकुशी करने या उनके शहीद हो जाने के मामले इधर कई सालों से बढ़ रहे हैं। वर्ष 2009 से  2014 के बीच माओवाद प्रभावित इलाकों में तैनात 1131 अर्ध सैनिक बल अपनी जान गंवा चुके हैं। अगर हम पुलिस कर्मियों की बात करें, तो वर्ष 2009 में 139, वर्ष 2010 में 189, वर्ष 2011 में 162, वर्ष 2012 में 214 और वर्ष 2013 में 235 पुलिस कर्मी आत्महत्या कर चुके हैं।
पिछले दिनों लोकसभा में रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर इस बात को स्वीकार कर चुके हैं कि सेना में सबसे ज्यादा 76 आत्महत्या के मामले सामने आए, जबकि वायु सेना में 23 कर्मियों ने खुदकुशी की। तीनों सैन्य सेवाओं में सबसे बड़ी आर्मी 2011 से सैन्य कर्मियों के आत्महत्या के मामलों में सबसे ऊपर रही है। 2011 में आर्मी के 105, 2012 में 95 और 2013 में 86 सैन्य कर्मियों ने आत्महत्या की थी। पर्रिकर का कहना था कि ऐसे मामलों के पीछे लंबे समय तक लगातार तैनाती, पारिवारिक कलह, घरेलू समस्या, तलाक, व्यक्तिगत मुद्दे, मानसिक मनोदशा, वित्तीय समस्या और तनाव सहने में असमर्थता जैसे कारण सामने आ रहे हैं। इस प्रकार के मामलों को रोकने के लिए सरकार कदम उठा रही है।
इन आंकड़ों पर गौर करने से पता चलता है कि पिछले कुछ सालों से ऐसी घटनाओं में कमी आने के बजाय बढ़ोतरी ही हुई है। ऐसा भी नहीं है कि केंद्र या राज्य सरकारों ने सेना, अर्ध सैनिक बलों या पुलिस कर्मियों की लगातार बढ़ी आत्महत्या की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने का प्रयास नहीं किया है। केंद्र और राज्य सरकारें बराबर प्रयास करती रही हैं कि सीमा की सुरक्षा करने वाले सैनिकों, अर्ध सैनिक बलों और राज्यों में आंतरिक शांति व्यवस्था को कायम रखने वाले पुलिस कर्मचारियों को काम करने के लिए तनाव रहित माहौल मिले। काम और रहने की बेहतर सुविधाओं के साथ-साथ परिवार के साथ रहने की सुविधा अलग से प्रदान करने की कोशिश होती रही है। सैनिकों, अर्ध सैनिक बलों और पुलिस कर्मचारियों को छुट्टियां देने में लचीला रवैया अपनाया जा रहा है। इसके बावजूद अगर आत्महत्या की घटनाओं में बढ़ोतरी हो रही है, तो सरकारों को अपने प्रयास और तेज करने होंगे। 
-लक्ष्मन शर्मा
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