-संजय कुमार आज़ाद/ भारत का उदात हिन्दू परम्परा सदियो से सहिष्णु और क्षमाशील रहा है.अनेक आक्रान्ताओं ने इस भूमि को इसके बहु बेटियो को लुटा खसोटा फिर भी यह समाज उन गद्दारों को आत्मसात ही किया? इसके धार्मिक आस्थाओं पर प्रहार करनेवाले को भी आजतक इसने बदले की भावना से काम नही किया .अगर किया होता तो करोड़ों हिन्दुओ का आराध्य श्रीराम जन्मस्थान अयोध्या का हो या श्री कृष्ण जन्मस्थान मथुरा या विश्वनाथ मंदिर वाराणसी का हो या सरस्वती मंदिर धार इन स्थलों पर जबरन मंदिर के स्थान पर मस्जिद नही होता.
अगर भारत का हिन्दू समाज असहिष्णु होता तो अमेरिका और व्रिटेन या सऊदी अरब की तरह यहाँ के प्रमुख पदों पर सिर्फ और सिर्फ यहाँ के बहुसंख्यक समुदाय ही आसीन होता.फिर भी विश्व में असहिष्णुता और रंगभेद के पोषकों को भारत का हिन्दू समाज ही असहिष्णु लगता है ?
हाल की घटनाओं पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए भारत में अमेरिका के राजदूत रिचर्ड वर्मा ने कहा कि-“फ्री स्पीच भारत और अमेरिका का सेंट्रल प्रिसीपल है.”जबकि उसी अमेरिका में राष्ट्रपति को धमकी देना और उसके विरुद्ध हिंसा भड़काने का प्रयास करना दंडनीय अपराध है .2007 में अमेरिका ने अपने एक शोधार्थी छात्र को सिर्फ इसलिए सजा दे दी कि उस छात्र ने अमेरिका द्वारा ईराक पर किये गये हमले के लिए वहाँ के राष्ट्रपति की आलोचना की थी.
जवाहरलाल नेहरु विश्वविधालय सहित अनेक स्थानों पर देश के गद्दारों ने नारा लगाया-“अफजल हम शर्मिंदा है तेरे कातिल जिन्दा है.”यानी भारत का संविधान, भारत के न्यायाधीश और भारत के राष्ट्रपति की हत्या करने की बात करना क्या फ्री स्पीच है?यह देश के साथ वगावत है, जिसे कोई भी संप्रभु राष्ट का संविधान बर्दाश्त नही कर सकता है?
क्या रिचर्ड वर्मा, अमेरिकी सरकार अमेरिका की धरती पर “ओसामा या सद्दाम हुसैन हम शर्मिंदा है तेरे कातिल जिन्दा है” के नारे लगाने और उसका शहादत दिवस मनाने देगी? अमेरिकी संविधान राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करने के प्रयासों को अभिव्यक्ति की आजादी नहीं मानता है.फिर भारत के सन्दर्भ में ये दोगलापन क्यों?क्या भारत संप्रभु राष्ट्र है नही है?
फ्रांस की एक पत्रिका में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले से संवन्धित एक कार्टून प्रकाशित हुआ जिसके निचे लिखा था-“हम सबने इसका सपना देखा था ,हमास ने यह कर दिखाया” इस कार्टून पर यूरोपीय मानवाधिकार न्यायालय ने संज्ञान लेते हुए इसे अपराध की श्रेणी में रखा.भारत में एमनेस्टी इंडिया के कार्यकारी निदेशक आकार पटेल ने कहा- वर्ष २०१५ में भारत ने मानवाधिकारों पर कई आघात होते देखे.सरकार ने नागरिक समाज संगठनो पर प्रतिबंधो को तीव्र कर दिया.”डालरों पर विकने वाले ऐसे बौद्धिक लोग आतंकियो से कम घातक नही है. एमनेस्टी का पूरा का पूरा रिपोर्ट भारत सरकार द्वारा गैर सरकारी संगठनो को मिलने वाले डालरों के आयात पर लगे रोक के दर्द से उपजा रिपोर्ट है.
संसद के बजट सत्र में रोहित वेमुला नामक तथाकथित स्कालर के आत्महत्या पर खूब बबाल राजनितिक दलों ने काटा.खासकर बहुजन समाज पार्टी की महारानी कुमारी मायवती का दलित प्रेम जाग उठा ? क्या मायावती जी दलितों के नाम पर रोहित वेमुला के कृत्यों को देखकर आप कह सकती है कि रोहित वेमुला बाबा साहब का अनुयाई है ?वह रोहित वेमुला जो मार्क्सवादियो के बहकावे में आकर बाबा साहब अम्बेडकर के नीतिओ को तारतार कर वामपंथियो के कारण आत्महत्या कर लिया है .
ये वही वेमुला है जिसे शोध के जगह बीफ फेस्टिवल में आनंद आता जिसके लिए याकुव मेनन जैसा आतंकी आदर्श था जिसे भारत की संस्कृति और केसरिया रंग से घृणा थी वह कभी बाबा साहेब का अनुयाई नही हो सकता है.बाबा साहेब ने अपने उपर किये गये हर अत्याचारों का विरोध किया किन्तु भारत की संस्कृति और संप्रभुता से कोई समझौता नही किया.उन्होंने बौद्ध धर्म को स्वीकार किया क्यों?तो उन्होंने स्वयं कहा- “बौद्ध धर्म भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है .मैंने इस बात का ख्याल रखा है कि मेरे धर्म परिवर्तन से इस देश की परम्पराओं, संस्कृति, और इतिहास पर आघात ना पहुंचे.”(अम्बेद्कर्स स्पिच्स वोलुम 11 पेज 495)क्या रोहित वेमुला ने जीते जी बाबा साहब के इस सपने का खून नही किया?जिस वेमुला को हिन्दू शब्द से चिढ थी उसके संदर्भ में बाबा साहब का कहना था –“हिन्दू भी बौद्ध संस्कृति की विरासत के समान भागीदार है.(नवयुग 13 अप्रेल 1947)”फिर संसद में अम्बेडकर जी नाम पर ऐसे लोगो को समर्थन क्यों?
जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में जो कुछ हुआ और जो होता आ रहा था वह अति निंदनीय और देश को शर्मसार करनेवाला है. अफज़ल गैंग के आतंकियो के कब्जे में यह विश्वविद्यालय देश को शर्मसार किया है.9 फरवरी के बाद इस विश्वविद्यालय का कलुषित चेहरा समाज के सामने आया.मार्क्स और मुल्लो की गठजोड़ में यहाँ बाबा साहब के सपनों के साथ वलात्कार हुआ.
जिस बाबा साहेब ने कभी भी मार्क्स और मुल्लो के गठजोड़ को पास फटकने नहीं दिया था उसी बाबा साहब के अनुआइ आज इससे गल्वाहियाँ कर बाबा साहेब के सिध्यांतों का गला घोंट रहा है.प्रसिद्ध विचारक जेलियट के अनुसार अम्बेडकर का मार्क्स के सन्दर्भ में गलत धारणा थी.अम्बेडकर ने मार्क्सवाद पर प्रहार किया है.और बौद्ध धर्म पर बल दिया .उनका मानना था की बुद्ध और मार्क्स के मार्ग अलग अलग है जहां बुद्ध का मार्ग ही सुरक्षित और सुदृढ़ है ना की मार्क्स का..”अम्बेडकर की नवधर्म दीक्षा मार्क्सवाद के विरुद्ध की गयी मोर्चाबंदी थी .(एस पटवर्धन –चेंज अमंग इंडियाज हरिज्न्स पेज 135)ऐसे में मार्क्सवादियो का गिरोह अम्बेडकरवादीओ के साथ है तो सिर्फ और सिर्फ अपनी जान बचाने के लिए.
संसद में जिस संविधान की कसम वामपंथी डी राजा खा कर संसद बने है उनकी अपनी बेटी देश की वर्वादी की बात करती है क्या बाबा साहेब का यही सपना था? जो वामपंथी गरिवो की बात करता है, महिलाओं की बात करता है, दलितों की बात करता है, उसके शीर्ष पदों पर देखे एक भी वैसे लोग नही मिलेंगे जिसके लिए ये लड़ने की बात करता है. महिला की बात होती है तो ये कामरेड अपनी पत्नी को ही शीर्ष पद पर आरुढ़ कर समाज को धोखा देती है .
ये वही वामपंथी है जिसने चीन का समर्थन किया और चीन का सदा साथ दिया जब चीन और रसिया से ये लतियाए गये तो अब अम्बेडकरवादियो के शरण में पनपने का प्रयास किया है .वास्तव में जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय अपने जन्म काल से ही मार्क्स और मुल्लो के इशारों पर नाचने वाले कठपुतलियो का गढ़ रहा है तभी तो यहाँ भारत की सम्प्रभुता पर चोट पहुचानेवालो का प्रिय भाषणस्थल रहा है. जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय में हुए देशद्रोही घटना के बाद भी पुलिस उसके कैम्पस में क्यों पहुची ऐसे प्रश्न करने वाले देश में देशद्रोहियो के समर्थक ही है जिनमे कुछ लोग अपने पुरस्कार वापस कर अपनी वामपंथी प्रतिवध्यता को दर्शाने से भी गुरेज नही करेगा?
जब देश कांग्रेसियो के द्वारा लोकतंत्र की हत्या कर आपत्काल थोपा था उस समय सिर्फ कांग्रेसियो के परिवारों,घरों, दफ्तरों और इसी विश्वविद्यालय में वसंत की बहार थी?आज जेएनयू के मामले में जिस तरह से देश के खिलाफ बोलने वालो का कुछ लोग संसद में समर्थन कर रहे है देश में आपातकाल की बात कर रहे हैं वे लोग भारत के टुकड़ों में बांटने की साजिशकर्ता ही होंगे.ऐसे तत्वों के साथ कठोरता और निर्ममता ही देश की संप्रभुता की रक्षा का मार्ग है.
संसद में जब स्मृति इरानी ने जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में मार्क्स मुल्ला के वह्काबे में आकर महिसासुर का दिवस मनाने और देवी दुर्गा के बारे में इन गिरोहों के आपत्तिजनक पर्चे की बात साक्ष्य सहित उठाई तो संसद में हिन्दू विरोधियो के नाज़ुक अंगों पर तीखी मिर्ची लगी आखिर क्यों?क्या इस देश में सहिष्णुता का ठेका सिर्फ हिन्दुओ ने ले रखा है. समाज के ऐसे घातक गिरोहों के नास्रूरो को प्रोत्साहन देने वाले इस देश के घातक ही है जिन शब्दों का उपयोग देवी दुर्गा के लिए उस विश्वविद्यालय में हुए कार्यक्रमों और पोस्टरों में हुआ वह यदि भारत के बहुसंख्यक समाज के जगह किसी अल्पसंख्यक मत के बारे में कहा होता तो देश के मिडिया और डालरों पे वीके बुधिजीविओ का गिरोह देश और विदेश में छाती कूट रहा होता?
भारत की परम्परा में सहिष्णुता है इसका उपदेश जो लोग देते है वे अपने गिरेवान में झांके .जिस तरह से मार्क्स और मुल्लो की गठजोड़ में भारत के स्रष्टा बाबा साहब के अनुआयी फंसते जा रहे वह देश की एकता और अखंडता के लिए घातक है जो बाबा साहब के महान विचारों को धुलधूसरित कर रहा है .बाबा साहब भारत को पवित्र भूमि पुण्यभूमि मानते रहे है फिर उनके महान अनुआइ बाबा साहब के सपनो को ध्वस्त कैसे कर सकते है. महात्मा बुद्ध जिन्हें बाबा साहब ने अपने जीवन में आत्मसात किया.मार्क्स और मुल्लों के लाख प्रलोभनों के बाद भी बाबा साहब ने भारत के संस्कार और संस्कृति में अपना अटूट विश्वास रहते हुए भगवान बुद्ध के शरण में शरणागत होना स्वीकार किया. उस भगवान बुद्ध के संदर्भ में महान विचारक डॉ.डेविस ने कहा है –“गौतम एक हिन्दू पैदा हुए, हिन्दू के रूप में पले, और हिन्दू ही मरे. उनके उपदेश पूर्णत: भारतीय है.वह हिन्दुओ में महानतम सर्वाधिक विद्वान और सर्वश्रेष्ठ हिन्दू थे .”(डॉ.रहेज डेविड्स –बुद्धिज्म पेज 116-117)”वैसे में मार्क्स मुल्लो के द्वरा भारत की महान संस्कार और संस्कृति से बाबा साहब के अनुआयियो को दूर करने का प्रयास एक सोची समझी कुटिल चाल है और इस चाल से अम्बेडकरवादियो को मुक्त होना देश के लिए आवश्यक है.
-संजय कुमार आज़ादअगर भारत का हिन्दू समाज असहिष्णु होता तो अमेरिका और व्रिटेन या सऊदी अरब की तरह यहाँ के प्रमुख पदों पर सिर्फ और सिर्फ यहाँ के बहुसंख्यक समुदाय ही आसीन होता.फिर भी विश्व में असहिष्णुता और रंगभेद के पोषकों को भारत का हिन्दू समाज ही असहिष्णु लगता है ?
हाल की घटनाओं पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए भारत में अमेरिका के राजदूत रिचर्ड वर्मा ने कहा कि-“फ्री स्पीच भारत और अमेरिका का सेंट्रल प्रिसीपल है.”जबकि उसी अमेरिका में राष्ट्रपति को धमकी देना और उसके विरुद्ध हिंसा भड़काने का प्रयास करना दंडनीय अपराध है .2007 में अमेरिका ने अपने एक शोधार्थी छात्र को सिर्फ इसलिए सजा दे दी कि उस छात्र ने अमेरिका द्वारा ईराक पर किये गये हमले के लिए वहाँ के राष्ट्रपति की आलोचना की थी.
जवाहरलाल नेहरु विश्वविधालय सहित अनेक स्थानों पर देश के गद्दारों ने नारा लगाया-“अफजल हम शर्मिंदा है तेरे कातिल जिन्दा है.”यानी भारत का संविधान, भारत के न्यायाधीश और भारत के राष्ट्रपति की हत्या करने की बात करना क्या फ्री स्पीच है?यह देश के साथ वगावत है, जिसे कोई भी संप्रभु राष्ट का संविधान बर्दाश्त नही कर सकता है?
क्या रिचर्ड वर्मा, अमेरिकी सरकार अमेरिका की धरती पर “ओसामा या सद्दाम हुसैन हम शर्मिंदा है तेरे कातिल जिन्दा है” के नारे लगाने और उसका शहादत दिवस मनाने देगी? अमेरिकी संविधान राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करने के प्रयासों को अभिव्यक्ति की आजादी नहीं मानता है.फिर भारत के सन्दर्भ में ये दोगलापन क्यों?क्या भारत संप्रभु राष्ट्र है नही है?
फ्रांस की एक पत्रिका में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले से संवन्धित एक कार्टून प्रकाशित हुआ जिसके निचे लिखा था-“हम सबने इसका सपना देखा था ,हमास ने यह कर दिखाया” इस कार्टून पर यूरोपीय मानवाधिकार न्यायालय ने संज्ञान लेते हुए इसे अपराध की श्रेणी में रखा.भारत में एमनेस्टी इंडिया के कार्यकारी निदेशक आकार पटेल ने कहा- वर्ष २०१५ में भारत ने मानवाधिकारों पर कई आघात होते देखे.सरकार ने नागरिक समाज संगठनो पर प्रतिबंधो को तीव्र कर दिया.”डालरों पर विकने वाले ऐसे बौद्धिक लोग आतंकियो से कम घातक नही है. एमनेस्टी का पूरा का पूरा रिपोर्ट भारत सरकार द्वारा गैर सरकारी संगठनो को मिलने वाले डालरों के आयात पर लगे रोक के दर्द से उपजा रिपोर्ट है.
संसद के बजट सत्र में रोहित वेमुला नामक तथाकथित स्कालर के आत्महत्या पर खूब बबाल राजनितिक दलों ने काटा.खासकर बहुजन समाज पार्टी की महारानी कुमारी मायवती का दलित प्रेम जाग उठा ? क्या मायावती जी दलितों के नाम पर रोहित वेमुला के कृत्यों को देखकर आप कह सकती है कि रोहित वेमुला बाबा साहब का अनुयाई है ?वह रोहित वेमुला जो मार्क्सवादियो के बहकावे में आकर बाबा साहब अम्बेडकर के नीतिओ को तारतार कर वामपंथियो के कारण आत्महत्या कर लिया है .
ये वही वेमुला है जिसे शोध के जगह बीफ फेस्टिवल में आनंद आता जिसके लिए याकुव मेनन जैसा आतंकी आदर्श था जिसे भारत की संस्कृति और केसरिया रंग से घृणा थी वह कभी बाबा साहेब का अनुयाई नही हो सकता है.बाबा साहेब ने अपने उपर किये गये हर अत्याचारों का विरोध किया किन्तु भारत की संस्कृति और संप्रभुता से कोई समझौता नही किया.उन्होंने बौद्ध धर्म को स्वीकार किया क्यों?तो उन्होंने स्वयं कहा- “बौद्ध धर्म भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है .मैंने इस बात का ख्याल रखा है कि मेरे धर्म परिवर्तन से इस देश की परम्पराओं, संस्कृति, और इतिहास पर आघात ना पहुंचे.”(अम्बेद्कर्स स्पिच्स वोलुम 11 पेज 495)क्या रोहित वेमुला ने जीते जी बाबा साहब के इस सपने का खून नही किया?जिस वेमुला को हिन्दू शब्द से चिढ थी उसके संदर्भ में बाबा साहब का कहना था –“हिन्दू भी बौद्ध संस्कृति की विरासत के समान भागीदार है.(नवयुग 13 अप्रेल 1947)”फिर संसद में अम्बेडकर जी नाम पर ऐसे लोगो को समर्थन क्यों?
जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में जो कुछ हुआ और जो होता आ रहा था वह अति निंदनीय और देश को शर्मसार करनेवाला है. अफज़ल गैंग के आतंकियो के कब्जे में यह विश्वविद्यालय देश को शर्मसार किया है.9 फरवरी के बाद इस विश्वविद्यालय का कलुषित चेहरा समाज के सामने आया.मार्क्स और मुल्लो की गठजोड़ में यहाँ बाबा साहब के सपनों के साथ वलात्कार हुआ.
जिस बाबा साहेब ने कभी भी मार्क्स और मुल्लो के गठजोड़ को पास फटकने नहीं दिया था उसी बाबा साहब के अनुआइ आज इससे गल्वाहियाँ कर बाबा साहेब के सिध्यांतों का गला घोंट रहा है.प्रसिद्ध विचारक जेलियट के अनुसार अम्बेडकर का मार्क्स के सन्दर्भ में गलत धारणा थी.अम्बेडकर ने मार्क्सवाद पर प्रहार किया है.और बौद्ध धर्म पर बल दिया .उनका मानना था की बुद्ध और मार्क्स के मार्ग अलग अलग है जहां बुद्ध का मार्ग ही सुरक्षित और सुदृढ़ है ना की मार्क्स का..”अम्बेडकर की नवधर्म दीक्षा मार्क्सवाद के विरुद्ध की गयी मोर्चाबंदी थी .(एस पटवर्धन –चेंज अमंग इंडियाज हरिज्न्स पेज 135)ऐसे में मार्क्सवादियो का गिरोह अम्बेडकरवादीओ के साथ है तो सिर्फ और सिर्फ अपनी जान बचाने के लिए.
संसद में जिस संविधान की कसम वामपंथी डी राजा खा कर संसद बने है उनकी अपनी बेटी देश की वर्वादी की बात करती है क्या बाबा साहेब का यही सपना था? जो वामपंथी गरिवो की बात करता है, महिलाओं की बात करता है, दलितों की बात करता है, उसके शीर्ष पदों पर देखे एक भी वैसे लोग नही मिलेंगे जिसके लिए ये लड़ने की बात करता है. महिला की बात होती है तो ये कामरेड अपनी पत्नी को ही शीर्ष पद पर आरुढ़ कर समाज को धोखा देती है .
ये वही वामपंथी है जिसने चीन का समर्थन किया और चीन का सदा साथ दिया जब चीन और रसिया से ये लतियाए गये तो अब अम्बेडकरवादियो के शरण में पनपने का प्रयास किया है .वास्तव में जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय अपने जन्म काल से ही मार्क्स और मुल्लो के इशारों पर नाचने वाले कठपुतलियो का गढ़ रहा है तभी तो यहाँ भारत की सम्प्रभुता पर चोट पहुचानेवालो का प्रिय भाषणस्थल रहा है. जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय में हुए देशद्रोही घटना के बाद भी पुलिस उसके कैम्पस में क्यों पहुची ऐसे प्रश्न करने वाले देश में देशद्रोहियो के समर्थक ही है जिनमे कुछ लोग अपने पुरस्कार वापस कर अपनी वामपंथी प्रतिवध्यता को दर्शाने से भी गुरेज नही करेगा?
जब देश कांग्रेसियो के द्वारा लोकतंत्र की हत्या कर आपत्काल थोपा था उस समय सिर्फ कांग्रेसियो के परिवारों,घरों, दफ्तरों और इसी विश्वविद्यालय में वसंत की बहार थी?आज जेएनयू के मामले में जिस तरह से देश के खिलाफ बोलने वालो का कुछ लोग संसद में समर्थन कर रहे है देश में आपातकाल की बात कर रहे हैं वे लोग भारत के टुकड़ों में बांटने की साजिशकर्ता ही होंगे.ऐसे तत्वों के साथ कठोरता और निर्ममता ही देश की संप्रभुता की रक्षा का मार्ग है.
संसद में जब स्मृति इरानी ने जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में मार्क्स मुल्ला के वह्काबे में आकर महिसासुर का दिवस मनाने और देवी दुर्गा के बारे में इन गिरोहों के आपत्तिजनक पर्चे की बात साक्ष्य सहित उठाई तो संसद में हिन्दू विरोधियो के नाज़ुक अंगों पर तीखी मिर्ची लगी आखिर क्यों?क्या इस देश में सहिष्णुता का ठेका सिर्फ हिन्दुओ ने ले रखा है. समाज के ऐसे घातक गिरोहों के नास्रूरो को प्रोत्साहन देने वाले इस देश के घातक ही है जिन शब्दों का उपयोग देवी दुर्गा के लिए उस विश्वविद्यालय में हुए कार्यक्रमों और पोस्टरों में हुआ वह यदि भारत के बहुसंख्यक समाज के जगह किसी अल्पसंख्यक मत के बारे में कहा होता तो देश के मिडिया और डालरों पे वीके बुधिजीविओ का गिरोह देश और विदेश में छाती कूट रहा होता?
भारत की परम्परा में सहिष्णुता है इसका उपदेश जो लोग देते है वे अपने गिरेवान में झांके .जिस तरह से मार्क्स और मुल्लो की गठजोड़ में भारत के स्रष्टा बाबा साहब के अनुआयी फंसते जा रहे वह देश की एकता और अखंडता के लिए घातक है जो बाबा साहब के महान विचारों को धुलधूसरित कर रहा है .बाबा साहब भारत को पवित्र भूमि पुण्यभूमि मानते रहे है फिर उनके महान अनुआइ बाबा साहब के सपनो को ध्वस्त कैसे कर सकते है. महात्मा बुद्ध जिन्हें बाबा साहब ने अपने जीवन में आत्मसात किया.मार्क्स और मुल्लों के लाख प्रलोभनों के बाद भी बाबा साहब ने भारत के संस्कार और संस्कृति में अपना अटूट विश्वास रहते हुए भगवान बुद्ध के शरण में शरणागत होना स्वीकार किया. उस भगवान बुद्ध के संदर्भ में महान विचारक डॉ.डेविस ने कहा है –“गौतम एक हिन्दू पैदा हुए, हिन्दू के रूप में पले, और हिन्दू ही मरे. उनके उपदेश पूर्णत: भारतीय है.वह हिन्दुओ में महानतम सर्वाधिक विद्वान और सर्वश्रेष्ठ हिन्दू थे .”(डॉ.रहेज डेविड्स –बुद्धिज्म पेज 116-117)”वैसे में मार्क्स मुल्लो के द्वरा भारत की महान संस्कार और संस्कृति से बाबा साहब के अनुआयियो को दूर करने का प्रयास एक सोची समझी कुटिल चाल है और इस चाल से अम्बेडकरवादियो को मुक्त होना देश के लिए आवश्यक है.
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वामपंथ के जाल में फंसता अम्बेडकरवाद
Reviewed by rainbownewsexpress
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3:56:00 pm
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