-संजय कुमार आज़ाद/ “भारत तेरे टुकड़े होंगे.. इंशाअल्लाह इंशाअल्लाह.” “भारत की बर्बादी तक-जंग रहेगी जंग रहेगी”,”केरल मांगे –आजादी” “कश्मीर मांगे-आजादी” “अफज़ल हम शर्मिंदा है-तेरे कातिल जिन्दा है”.”कितने अफज़ल मारोगे- घर घर से अफज़ल निकलेगा”.”पाकिस्तान- जिन्दावाद जिन्दावाद” ये भारत विरोधी नारे पाकिस्तान में नही लग रहा था ,ना ही ये नारा कोई पाकिस्तानी या बंगलादेशी लगा रहा था.ना ये नारा आतंकी हाफ़िज़ सईद लगा रहा था ना उसके जिहादी आतंकी ही लगा रहा था.उपरोक्त नारा भारत की धरती पर, भारत की राजधानी दिल्ली में और वह भी करोड़ों भारतीय लोगो के द्वारा दिए जा रहे गाढ़ी कमाई के पैसे से चलने वाला संस्थान जवाहरलाल नेहरु विश्वविधालय दिल्ली के कैम्पस में वहाँ के शिक्षार्थी लगा रहा था.
ये नारे कोई पागल ,सिरफिरे या अवोध वच्चे नही लगा रहे थे ये नारे लगाने वाले अपने आपको देश के सबसे उच्च शिक्षित और प्रतिष्ठित शोधार्थी और विद्यर्थी मानते हैं वे लगा रहे थे?चौक गये ना.अपनी आदत ही ऐसी है की जब हम बुद्धिजीवी के पद तक पहुचते है तो वास्तव में हम मंद्बुधि हो जाते हैं?क्या कोई स्वाभिमानी देश का नागरिक उपरोक्त नारे को बर्दाश्त कर सकता है ? कदापि नही. इस मानसिकता से पोषित ये तथाकथित विद्यार्थी वहाँ से निकल कर कल भारत के किसी भी सेवा में लगेगे तो क्या ये भारत के लिए घातक नही होगा?इस मानसिकता से पीड़ित व्यक्ति भारत की एकता और संप्रभुता के लिए सबसे खतरनाक है.आखिर भारत की धरती पर भारत को टुकड़े टुकड़े करने की सपना देखने वाला यह गिरोह भारत का भला कर सकता है?
यह वही विश्वविध्यालय है जहां 2010 में जब छतीसगढ़ में अपने 76 सीआरपीएफ के वीर जवान इसी वाम विचारधारा के रक्तपिपासुओ के छुपे बार से शहीद हुए थे तब इसके जश्न इसी विश्वविद्यालय में यही गिरोहों ने मनाया और हमने कुछ नही किया.आतंकी मकबूल भट्ट को फांसी की सजा हुई उसपर यहाँ विरोध हुआ, आतंकी याकुव मेमन की फांसी का यहाँ विरोध मार्च हुआ हमने कुछ भी नही कहा.विगत 09 फरवरी 16 यही गिरोहों ने भारत के संसद पर हमला करने वाला दुर्दांत आतंकी अफज़ल की वर्षी को “न्यायिक हत्या”की संज्ञा देकर जो करने की धृष्टता की वह असहनीय अकल्पनीय थी.हमारी विश्वास को इस कदर से तोड़ी जायेगी वह भी अपने लोगो के द्वरा निंदनीय और चिंतनीय है.
विश्वास करना अच्छी बात है पर साथ में यह भी ध्यान रखने योग्य बात है की विश्वास के पीछे कहीं अविश्वसनीय तत्व नही पनप रहे हों.चोरी की घात तभी लगती है जब घर के लोग बेखबर और निश्चिन्त रहतें है.सतर्कता का अर्थ अविश्वास या आक्षेप नहीं है वरन यह है की अपनी कुशलता जीवित रहे और सामने वालों पर किसी प्रकार का संदेह की गुन्जाईस ही ना रहे. जवाहरलाल नेहरु विश्वविधालय दिल्ली में जो आजकल घटित हो रहा वह इसी का नतीजा है.आपको मोदी से मोदी सरकार से भाजपा से आरएसएस से शिकायत हो सकती है उनके विचार आपसे नही मिलते आप जमकर विरोध कीजिये प्रदर्शन कीजिये जनसभा कीजिये स्वागत है और लोकतंत्र में इसका सम्विधान में इसका पूरा अधिकार है किन्तु देश की बर्बादी की बात करने वाला इस देश का रक्षक नही गद्दार और भक्षक ही है जो भारत की जनता को स्वीकार्य नही है.
यह शिक्षा का प्रमुख केंद्र अपने जन्मकाल से ही वाम विचारों का गढ़ रहा जहां राष्ट्रवाद की अवधारणा थी नहीं .क्योंकि वाम विचारों का जो धारा है वह शोषित और शोषक इस अवधारणा पर अवलम्बित है.जिसके कारण यह शिक्षा केंद्र भारतीय संस्कारों और संस्कृति को सदा सर्वदा हेय दृष्टि से देखने का कुत्सित प्रयास किया ?यह विश्वविद्यालय “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” के नाम पर देश की एकता अखंडता और संप्रभुता से खिलवाड़ करने वालों, भारतीय संस्कृति और संस्कारों के साथ साथ अपने देश के महान सैनिको के अदम्य साहस को हतोत्साहित कर बदनाम करने वालों का आश्रय स्थल रहा है.किन्तु भारत की प्रशाशनिक ब्यवस्था इस विश्वविद्यालय के ऊपर इतना विश्वास रखा की आज यह विश्वविद्यालय अविश्वसनीय गिरोहों का अड्डा बन भारत को टुकड़े-टुकड़े में करने का नारा खुलेआम लगाने लगा..?
जवाहरलाल नेहरु विश्वविधालय दिल्ली के आल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन एशोशियेशन के अध्यक्ष कन्हैया कुमार जो देशद्रोह के आरोप में और उसका गिरोह के कुछ लोग अभी पुलिस हिरासत में है .जहरबुझे देशद्रोह के भाषण और नारे इन गद्दारों की उपस्थिति में इन गद्दारों के द्वारा भी लगी.कल तक इन गद्दारों के गिरोह कुछ भी करता किसी की हिम्मत नही थी की कारवाई हो.पुलिश की क्या औकात जो इन लोगों को छुए.क्योंकि इस विश्वविध्यालय को गांधी नेहरु परिवार के साथ-साथ मैकाले- मार्क्स और मुल्लो का वरदहस्त प्राप्त रहा है और देशविरोधी इस कुकृत्य के बाद भी खुलकर इन देशद्रोही तत्वों के पक्ष में ये लोग छाती कूट रहा है.इन तथाकथित दलों का स्याह चेहरा आज समाज के सामने है .
देशभक्ति का ठेका भारत में आरएसएस या अखिल भारतीय विद्यर्थी परिषद ने नही ले रखा है .कोई भी भारत का नागरिक उपरोक्त देशद्रोही नारे का ना समर्थन कर सकता है और ना उस गद्दारों के समर्थन में खड़ा हो सकता है.फिर इन देशद्रोही तबको के गिरफ्तारी पर इन लोगों के पेट में मरोड़ क्यों हो रही है ? क्यों इन गद्दारों की गिरफ्तारी पर कोहराम मचाया जा रहा है?क्या भारत आतंकियो का, देश्द्रोहिओं का ,गद्दारों का अभ्यारण्य है?
इन गद्दारों के स्पष्ट देशद्रोही सबुत और विडिओ फुटेज पर हुई गिरफ्तारी पर अपने आपको महान इतिहासकार बताने वाले रामचन्द्र गुहा का मानना है की-“सरकार की यह कारवाई सबसे ज्यादा राष्ट्रविरोधी है”. कोंग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का मानना है की –“जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष ने गरीबो,कमजोरों,आदिवासिओ और वंचित तबके पर एक बहुत अच्चा भाषण दिया भाजपा सरकार ने कहा की यह राष्ट्र विरोधी है और उसे गिरफ्तार कर लिया.” उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और वहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो सुश्री मायावती के अनुसार-“कन्हैया की गिरफ्तारी गलत है.बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार का कहना है की-“कन्हैया कुमार जैसे युवा पर देशद्रोह का आरोप मढना इंतिहा है.” इतना ही नही इन लोगों ने कन्हैया और उसके साथी उमर खालिद के देशद्रोही कारनामो को सिरे से खारिज कर इसका सारा दोष आरएसएस पर मढने का घृणित कुकृत्य भी करने का प्रयास किया .
विचारों में बिभिन्नता लोकतंत्र का पोषक है. स्वस्थ और देशहित पर सार्थक वाद-विवाद ही युवायो को दिशा और दृष्टि देती है .विश्वविध्यालय कैम्पस इसका प्रमुख स्थान होना चाहिए. सहमती और असहमति ही नवीन विचारों को जन्म देकर समाज में चेतना लाती है और यही चेतना समानता को स्थापित कर देश की एकता और अखंडता को मजबूत करती है किन्तु जो नारे लगाये गये, जो भाषण वहाँ परोसे गये, क्या वह कोई स्वाभिमानी राष्ट्र का नागरिक सहन या समर्थन कर सकता है?
क्या विश्वविद्यालयों में बीफ फेस्टिवल होना शिक्षार्थियो के प्रगति या उनके वैचारिक क्रान्ति का कारक है.ये विश्वविद्यालय है या कसाई-आलय .यहाँ विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने या कसाई बनने जाते है?सरेआम लड़के लडकियां आजादी के नाम पर विश्वविद्यालयों में चुम्बन प्रतियोगिता, अंत:बस्त्र प्रतियोगिता करते है. क्या ये विश्विद्यालय नहीं वेश्यालय है?ये कैसी आजादी और कैसी पढ़ाई है?
जो लोग जेएनयू में हुए इस कुकृत्य का प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से समर्थन करते है वे देश द्रोही ही हो सकते है.किन्तु भारत की विडम्बना है की आजादी के पूर्व इस्लाम और इसाइयत ने इस देश के संस्कार और संस्कृति को मटियामेट करने का प्रयास किया. आज़ादी के बाद गांधी नेहरु परिवार और उसके गिरोहों ने भी सत्ता सुख के लिए इसी दिशा में बढ़ने की घृणित प्रयास किया जिसका क्रूर चेहरा जेएनयू में देखने को मिल रहा है.
कुछ बुधिजीविओ (मंद्बुधियो) ने तो यहाँ तक कहा की-“..मुख्यधारा से अलग इन तत्वों की परवाह नही करनी चाहिए.” जेएनयू में अफज़ल का फोटो लेकर नारे लगाना बच्चो की नादानी है तो फिर राहुल को काले झंडे दिखाना फांसीवाद कैसे हो जाता है?इन अराजक तत्वों से कड़ाई से पेश आना हर संप्रभु राष्ट्र का उतरदायित्व है और इसका इजाजत हमारी संविधान देता है तो फिर इन गद्दारों पर होने वाली कानूनी कारवाई “दमन” कैसे हो सकता है?
किन्तु जिन गद्दारों को देश की सुप्रीम कोर्ट का निर्णय “जुडिशियल किलिंग”लगता है जो तत्व यह मानता हो की निर्णय यहाँ की जुडिशियल या संविधान के अनुसार नही बल्कि मुट्ठी भर गद्दारों की टोली के विचारों से तय होगी तो यह असहिष्णुता की पराकाष्ठा है. फासीवाद का चरम है .सम्विधान और लोकतंत्र की हत्या है .जो इन तबको के संरक्षण या समर्थन में है वे भारत के दुश्मन ही है और जब वैसे अराजक तत्वों पर कारवाई होती है तब इन तबको के नाज़ुक अंगों पर तीखी मिर्ची लगती है. जेएनयू में हो रहे देशविरोधी कुकृत्यों से देश आहत है.भारत का युवा भगत और सुभाष ,अशफाक और विवेकानंद को अपना आदर्श मानता है और मानता रहेगा .जो लोग अफजलो के फोटो लेकर उसके पदचिन्हों पर चलने का कुकृत्य कर रहा उसका अंजाम देश का सविधान अफज़ल की तरह ही करेगा .
एक प्रचलित दोहा है-सब दिन होत ना एक समाना साधू सब दिन होत ना एक समाना .तो देश में अतिवादिओं और बौद्धिक आतंकियो को या समझना होगा की यह युग गांधी-नेहरु परिवार का युग नही है और ना ही मार्क्स मुल्लों का युग है यह संचार का युग है जहां भारत की एकता संप्रभुता की बात होगी भारत की महान जनता चाहे किसी मत-पंथ –विचार का हो मुट्टी भर देशद्रोही मंद्बुधिजिवियो के झांसे में नही आने वाला है .जेएनयू में इन मंद्बुधिजिवियो के पापों का घड़ा फुट चूका है.इन देशद्रोहियो के कथनी और करनी का फर्क आम देशभक्त नागरिको को समझ में आ चूका है.जेएनयू देभ्क्तों का अड्डा है या देश्द्रोहिओं का यह हमें अपने विवेक से लेने का अधिकार है और समझ भी.
स्मरण हो की दुष्टता का सारा महत्व छद्म पर खड़ा होता है.ये लोग प्राय:नागरिकों के भावनात्मक दुर्वलताओ का पूरा लाभ उठाने में सिद्धहस्त होते है. इसके लिए यह गिरोह पूरी की पूरी तैयारी करते है जैसा की बिहार चुनाव के समय असहिष्णुता के मुद्दे पर देश में जो क्रत्रिम आवरण तैयार किया गया था ,ये तबका यह जानता है की यदि आम नागरिक प्रतिरोध के लिए खड़े हो गये तो इनकी ऐसी की तैसी हो जायेगी जैसा लोकसभा चुनाव में देखने को मिला .पहले यह गिरोह मुसलमानों को हिन्दुओं के नाम पर, डराता रहा और राजनीति करता था अब उसके स्थान पर आरएसएस का बात कर समाज को बरगलाने की धृष्टता कर रहा है.ये तबका निर्दोषिता बताने में गिडगिडाह्ट की नीति अपनाते है जैसा की डी राजा अपनी बेटी अपराजिता के मामले में कर रहा है .
क्षमा और उदारता निसंदेह श्रेष्ठ प्रवृति है किन्तु देश्घाताको के साथ यदि हमने किया तो हमें स्मरण रखना चाहिए की इसी का शिकार पृथ्वीराज चौहान हुए थे .देशद्रोही रूपी बिच्छु पर दया करना देशभक्त बच्चों को मार डालने के समतुल्य है.नीति अनीति के निराकरण का ध्यान रखना है तो इस सन्दर्भ में सिर्फ कठोरता की दंड नीति ही राष्ट्रहित में है.दुष्टता की हिम्मत ना बढे इस निमित देशद्रोही और उसके समर्थक रूपी सियारों की चिल्लाहट को हर दृष्टिकोण से पस्त करना लोक कल्याणकारी राज्य का प्रथम कर्तव्य है.जब अंग्रेजो ने सत्ता सौपी थी तो नेहरु को महात्मा गांधी ने कहा था की अंग्रजो की यह व्यबस्था बाँझ भी है और वेश्या भी अत:हमें भारतीय चिंतन की शाशन प्रणाली लागू करनी चाहिए किन्तु नेहरु की जिद आज देश के युवाओं को इस मुकाम पर ला खड़ा कर दिया है..
-संजय कुमार आज़ाद
जेएनयू की घटना: देशभक्ति या गद्दारी
Reviewed by rainbownewsexpress
on
4:56:00 pm
Rating:
Reviewed by rainbownewsexpress
on
4:56:00 pm
Rating:
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें