बोआई : शहंशाह आलम

चिड़ियाँ उड़टी हुई आती हैं असँख्य
बैठ जाती हैं बोआई में लगे बैलों की पीठ पर
और बात करती हैं अपने शब्दों वाक्यों में

जब बोआई चल रही है पूरे साहस के साथ
दाने डाले जा रहे हैं खेतों में फलसिद्धि से युक्त

ऐसे में चिड़ियों के झुंड ने क्या बतियाया होगा
बैलों से अपनी बोली में पंखों को फड़फड़ाते

क्या यह कि इस सूखे समय में फलयुक्त फलप्रद
क्या निकलेगा इन बीजों से जो फल की इच्छा लिए
एक स्त्री डाले जा रही है पृथ्वी के गर्भगृह में
 बोआई का आदिम गीत गाते हुए आह्लादित

या यह कि एक कवि बोआई करते हुए
क्या खड़े अनाज के पौधे उगा सकता है

चिड़ियों को यही बताया गया था अब तक
चतुराई से सफ़ाई से रूढ़िवादिता से ग्रसित
कि एक कवि तो बस फर-फर करते शब्द
लहरा सकता है पेड़ों में घुन लगनेवाले इस समय में

लेकिन बोआई में लगे बैलों ने चिड़ियों को बताया
कि धरती का ताप धरती का जीवन
कवियों ने बचाकर रखा है तुम्हारे ही डैनों में

बैलों ने चिड़ियों को यह भी बताया अपनी भाषा में
कि सत्ताधीशों मालदारों को पता नहीं है शायद
कि कवि कई-कई सरकारें गिरा सकते हैं
अपने हिस्से की रोटी अपने हिस्से का नमक
अपने हिस्से की नदी उनसे छीन सकते हैं
तो खेतों की बोआई-कटाई करते हुए
उनकी फाँस से इस समय को मुक्त क्यों नहीं कर सकते
उनके द्वारा बनाए मज़बूत फाँसीघर को ढाते हुए।

- शहंशाह आलम
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