हालांकि हमारे देश के कुछ राज्यों के कुछ इला$के सूखे जैसी प्राकृतिक विपदा का सामना हमेशा से ही करते रहे हैं। परंतु इस वर्ष देश के कुछ हिस्सों को जिस प्रकार के भीषण सूखे तथा इसके कारण उपजे ऐतिहासिक जल संकट का सामना करना पड़ रहा है वैसी स्थिति भारत में पहले कभी देखने को नहीं मिली। रेल के पहिए पर सवार विशाल टैंकर तेल,गैस व केमिकल्स आदि भरकर इधर-उधर आते-जाते तो देखे जाते थे। रेल टैंकर्स के ऐसे आवागमन को विकास के प्रतीक के रूप में देखा जाता था। परंतु इसी देश में कभी 'जलदूत एक्सप्रेसÓ नाम की टैंकर ट्रेन प्यासों की प्यास बुझाने के लिए देश के एक क्षेत्र से दूसरे सूखाग्रस्त क्षेत्र में पहुंचाई जाएगी, इस बात की तो कभी कल्पना भी नहीं की गई थी। परंतु इन दिनों देश के एक समृद्ध राज्य समझे जाने वाले महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में प्यास की शिद्दत से तड़प रहे लोगों को पानी मुहैया कराने हेतु महाराष्ट्र के ही मिराज नामक स्थान से तथा राजस्थान के कोटा से विशेष जलदूत एक्सप्रेस चलाई गई। निश्चित रूप से यदि यह व्यवस्था न हुई होती तो संभवत: बड़ी संख्या में लोगों को प्यास की शिद्दत का सामना करते हुए गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते थे। इसी क्षेत्र में कुछ ऐसे संपन्न किसान भी हैं जिन्होंने का$फी गहरी बोरिंग कर अपने बोरवेल लगा रखे हैं उन्होंने भी संकट की इस घड़ी में अपने जल स्त्रोत को कृषि हेतु सुरक्षित रखने की परवाह किए बिना प्यासे लोगों की प्यास बुझाने हेतु अपने बोरवेल को चलाना ही ज़रूरी समझा। इसी में एक नाम शेख अब्दुल मतीन नामक एक शिक्षक का भी इन दिनों सु$िर्खयों में रहा जिन्होंने प्रतिदिन सुबह-शाम आठ हज़ार से लेकर दस हज़ार लीटर तक पानी दौ सौ से अधिक परिवारों को प्रतिदिन वितरित किया। वे स्वयं अपना समय निकाल कर आम लोगों को पानी वितरित करते देखे गए।
गौरतलब है कि महाराष्ट्र के कुल 43 हज़ार गांवों में से 27 हज़ार सात सौ तेईस गांव को सूखाग्रस्त घोषित किया गया है। ग्यारह हज़ार नौ सौ बासठ गांव विदर्भ क्षेत्र में सूखाग्रस्त घोषित किए गए हैं। परंतु सबसे अधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र राज्य का मराठबाड़ा क्षेत्र माना जा रहा है जहां मध्य श्रेणी के 75 जलाशयों में से 54 पूरी तरह से सूख चुके हैं। पानी की कमी तथा सूखे के कारण पैदावार के न होने अथवा कम होने के चलते इसी महाराष्ट्र राज्य में 2015 में लगभग 2590 किसानों द्वारा आतमहत्या की जा चुकी है। गत् एक शताब्दी में इस राज्य ने ऐसे भयंकर सूखे का सामना पहले कभी नहीं किया। जहां आम लोगों के दैनिक जीवन में इस्तेमाल करने के लिए अर्थात् पीने,शौचालय जाने, खाना बनाने व कपड़े धोने व नहाने जैसे ज़रूरतों के लिए पानी उपलब्ध न हो वहां कृषि हेतु पानी की उपलब्धता की कल्पना ही कैसे की जा सकती है? महाराष्ट्र के अतिरिक्त देश के और भी कई राज्य इस समय सूखे की चपेट में हैं।
इनमें कर्नाटक,आंध्र प्रदेश,उड़ीसा,गुजरात तथा राजस्थान तथा उत्तरप्रदेश व $खासतौर पर इसके बुंदेलखंड क्षेत्र के नाम उल्लेखनीय हैं। इन राज्यों के अधिकांश किसान चावल की खेती पर निर्भर करते हैं। और इस $फसल को भरपूर पानी की ज़रूरत होती है। इसके अतिरिक्त बिहार,झारखंड, पंजाब तथा हरियाणा के भी कई इला$के बारिश की कमी के चलते सूखे से प्रभावित होने की कगार पर हैं। यदि पंजाव व हरियाणा जैसे कृषि उपजाऊ राज्य महाराष्ट्र के विदर्भ या मराठवाड़ा जैसी स्थिति में पहुंच गए तो देश की आर्थिक स्थिति तथा लोगों के सामान्य जनजीवन पर इसका क्या प्रभाव पड़ सकता है इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि केवल यही दो राज्य देश के कुल गेहूं उत्पादन का 85 प्रतिशत गेहूं तथा पचास प्रतिशत चावल की पैदावार करते हैं।
देश के जो इलाके इस समय भयंकर सूखे का सामना कर रहे हैं खासतौर पर मराठवाड़ा व बुंदेलखंड जैसे क्षेत्र, यहां न केवल भूमिगत् जलस्तर काफी नीचे चला गया है बल्कि इन क्षेत्रों में बहने वाली नदियां,नाले तथा जलाशय भी पूरी तरह सूख चुके हैं। हद तो यह है कि मराठवाड़ा व बुंदेलखंड इला$कों के हज़ारों लोग पानी की कमी के चलते अपने-अपने घरों में ताले बंद कर उन इलाकों की ओर चले गए हैं जहां उन्हें जीवन की यह सर्वाेपयोगी चीज़ अर्थात् पानी प्राप्त हो सके। ऐसे लोग बड़ी ही दयनीय अवस्था में खुले आसमान के नीचे,पार्कों मे, फुटपाथ पर इधर-उधर भटकते देखे जा रहे हैं तो दूसरी ओर इसी जानलेवा संकट का राजनीतिकरण करने वालों की भी कोई कमी नहीं है। जो सरकार या जो राजनैतिक दल सूखे की दस्तक की अदनेखी करते हुए इससे निपटने के उपाय कर पाने में नाकाम रहे या इस समस्या को उन्होंने अपनी प्राथमिकताओं में गिनना ज़रूरी न समझा वही लोग पानी के टैंकर लेकर लातूर पहुंचने वाली ट्रेन के टैंकर्स पर अपनी पार्टी के चुनाव निशान व झंडे चिपकाते देखे गए। जिस मंत्री को सूखे की आहट महसूस होने मात्र से ही सजग हो जाना चाहिए था और इस समस्या से जूझने के उपाय करने चाहिए थे वही मंत्री इस क्षेत्र को पर्यट्न क्षेत्र के रूप में इस्तेमाल करती देखी गई। महाराष्ट्र की मंत्री पंकजा मुंडे इस इलाके में अपनी सेल्फी खींचते व उसे फेसबुक पर पोस्ट कर वाहवाही लूटते नज़र आई।
इसी प्रकार केंद्र से लेकर सूखा प्रभावित राज्यों तक के प्राथमिक एजेंडे भी गोया सूखे के संकट से जूझने के कतई नहीं रहे। बजाए इसके इनका समय अपनी झृठी लोकप्रियता हासिल करने के मुद्दों का उछालने में बीता। कहीं शहरों के नाम बदले गए तो कहीं नए जि़ले गठित किए गए। कहीं सरकारी योजनाओं के नाम बदलकर अपने राजनैतिक प्रतिद्वंद्वियों को मात देने के खेल खेले गए। नेताओं द्वारा पिछले दिनों कुछ राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में एक-दूसरे पर छींटाकशी व आरोप-प्रत्यारोप करने में अपना समय बिताया गया। परंतु सूखा पडऩे से पूर्व तथा जलदूत एक्सप्रेस चलाए जाने की नौबत आने से पहले किसी राष्ट्रभक्त जनहितैषी योजनाकार ने इस बात की कोई रणनीति बनानी ज़रूरी नहीं समझी कि यदि देश के लोगों को प्यासा मरने की नौबत आई तो आ$िखर उसके बचाव में सरकार अग्रिम रूप से कौन-कौन से उपाय कर सकती है। जो कारपोरेट घराने व औद्योगिक इकाईयां जलसंकट को और अधिक गहरा करने तथा देश के स्वच्छ प्रवाहित जल को प्रदूषित करने की सबसे बड़ी जि़म्मेदार हैं वर्तमान सरकार उन्हीं घरानों को खुश करने में अपना का$फी समय व्यतीत कर रही है। हद तो यह है कि जिस सूखाग्रस्त मराठवाड़ा क्षेत्र में एक-एक बंूद पानी के लिए लोग तरस रहे हैं उसी क्षेत्र में जब राज्य के मंत्री महोदय दौरा करते हैं तो उनके हैलीपैड को तैयार करने के लिए प्रशासन द्वारा हज़ारों लीटर पानी बरबाद किया जाता है। आईपीएल जैसे मनोरंजक खेलों के लिए पानी की बरबादी की जाती है। यहां तक कि इसी जलसंकट के चलते इस बार महाराष्ट्र में होने वाले आईपीएल मैच को अन्य राज्यों में स्थानांरित कर दिया गया है। इसमें कोई शक नहीं कि यदि हम सूखे जैसे हालात के लिए प्रकृति को सिर्फ इसलिए दोष देते हैं कि कुदरत ने अपेक्षित बारिश नहीं की या कम बारिश हुई तो इसमें भी कोई दो राय नहीं कि हम और हमारी जीवनशैली तथा हमारे दैनिक जीवन में यहां तक कि खेती-बाड़ी में पानी खर्च करने की हमारी शैली भी इस सकंट को पैदा करने के लिए कम जि़म्मेदार नहीं है।
हम कभी इस विषय पर गंभीर होना ही नहीं चाहते कि भूमिगत जलस्तर के दिन-प्रतिदिन नीचे गिरते जाने का कारण क्या है? हम अपनी उन आदतों को बदलना ही नहीं चाहते जिसके चलते हम पानी को बेतहाशा बरबाद किए जाने के आदी हो चुके हैं। आज महाराष्ट्र और बुंदेलखंड में पानी का अकाल है तो कृषिप्रधान राज्य पंजाब व हरियाणा में भी ज़मीन के नीचे से कीचड़ युक्त व काला पानी निकलना शुरु हो चुका है।
हम पानी की बरबादी तो बड़े शौ$क से करते हैं और भूमिगत जल को अपनी पुश्तैनी संपत्ति या अपना अधिकार समझकर बेतहाशा बरबाद करते हैं परंतु न तो हमारी दिलचस्पी छोटे व मंझले जलाशयों के निर्माण में है न ही हम अपने घरों का निर्माण इस प्रकार करते हैं कि कम से कम घर की छत का बारिश का साफ पानी तो ज़मीन में वापस जा सके। कारों,अन्य वाहनों तथा कोठियों की धुलाई-सफाई व बाग-बगीचों की रौनक बनाए रखने पर हज़ारों लीटर पानी हम बरबाद करते हैं। यहां तक कि पीने के पानी की आपूर्ति करने वाली पानी की टंूटियां खुली छोड़ देना और स्वच्छ जल बरबाद होते देखना भी अधिकांश लोगों की आदत बन चुकी है। आज तो हम पैसों की बदौलत पीने के पानी की बोतल खरीदकर अपनी प्यास बुझा लेते हैं पंरतु आने वाले दिन मराठवाड़ा व बुंदेलखंड की तरह ऐसे भी हो सकते हैं जबकि हमारी जेब में पैसे तो होंगे परंतु $खरीदने के लिए शायद पानी उपलब्ध न हो सके। और यदि पानी की बरबादी रोकने तथा जलसंग्रह के उपाय समय पूर्व न करने की यही प्रवृति जारी रही और सरकारें भी दूसरे $गैरज़रूरी लोकलुभावने विषयों में उलझी रहीं तो कोई आश्चर्य नहीं कि हमारा देश स्थायी रूप से सूखाग्रस्त देश की श्रेणी में तो चला ही जाएगा साथ-साथ इस देश के साथ लगने वाला 'कृषि प्रधान देश का 'टैगÓ भी इतिहास के पन्नों में सिमटकर रह जाएगा।
निर्मल रानी (लेखिका),
1618 महावीर नगर,
अंबाला सिटी 134002,
हरियाणा,
संपर्क क्रमांक:- 9729229728
1618 महावीर नगर,
अंबाला सिटी 134002,
हरियाणा,
संपर्क क्रमांक:- 9729229728
कृषि प्रधान देश में गहराता जल संकट
Reviewed by rainbownewsexpress
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9:22:00 am
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