...यही है पितृ दायित्वबोध

-डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी/ बेटी सयानी हो गई- पिता होेने के नाते उनकी चिन्ता बढ़ गई है। पढ़ाया-लिखाया अब शादी करने की फिक्र में हैं। खुद तो कुछ किए नहीं- इधर उधर घूमें- पिछलग्गू बनकर दारू पिया। राजनीति का ज्ञान शून्य फिर भी- ‘दारू’ के लिए राजनीतिक पार्टियों के पदाधिकारियों का बड़ा सम्मान किया। हाथ में जिसने शराब भर का पैसा पकड़ा दिया उसी की डुगडुगी पीटा। अब हालत और हालात यह है कि पैतृक सम्पत्तियाँ बेंचकर पितृ दायित्व की पूर्ति में जी जान से जुट गए हैं।
सुशिक्षित होते तो बात कुछ और होती- अल्प शिक्षित ठकुरसुहाती पसन्द ऊपर से नशेड़ी। बिटिया काहें को पैदा किया- बड़े अजीब हो जब शादी हो गई तो बच्चे तो पैदा ही होंगे-। शादी क्यों किया- यार बाप एवं परिवार के अन्य बुजुर्गों ने अपनी आन-बान-शान के दृष्टिगत जुगाड़ से शादी करवा दिया। खेती-बाड़ी, पशु-प्राणी, ठीक-ठाक हैसियत, पढ़ाई-लिखाई, शक्ल-सूरत गड़बड़- क्या फर्क पड़ता है? हित-मित्र-रिश्तेदार ‘जुगाड़’ से किसी के बेटी का ब्याह करवा सकते हैं। हमारे गाँव में कुत्ता, बिल्ली जैसे जानवरों तक की शादियाँ हो जाया करती हैं हम तो मानव हैं। वह भले ही अशिक्षित।
सयानी बेटी को पढ़ाया लिखाया कि नहीं? क्या बोल रहे हो जी- हमने तो ‘बिटिया’ को हर तरह से छूट दे रखा है। वह बी.ए. है। गाँव से अकेले दूर-दराज किसी के साथ आने जाने की छूट है उसे। घर में तुम्हारी चलती है कि घर वाली की........? क्या बोले बाहर मेरी भीतर घरवाली की कान इधर लावो- समझ लो कि बाहर-भीतर हर जगह बेटी की माँ का ही दबदबा है। मेरा क्या मुझे अच्छा खाना पहनने को कपड़े और पीने के लिए दारू चाहिए। बाकी सब कुछ तो घरैतिन और उसकी औलादों का ही है।
बेटी सयानी- बी.ए. पास- स्वच्छन्द रहने की खुली छूट- तुम शराबी- पत्नी घर परिवार की नियंत्रक तब फिकरमन्द क्यों हो? बेटी को अपनी लाइफ के लिए पार्टनर ढूंढने की छूट दे दिए हो- वह ‘लव मैरिज’ कर ले। सब कुछ बच जाएगा-। यार यही तो रोना है। जिस लड़के से बेटी का अफेयर चल रहा है- उसके माँ-बाप ‘दहेज’ माँग रहे हैं। क्या बोले यह तो लव मैरिज नहीं इसे दहेजी शादी कहेंगे। अब जो भी कुछ कह लो। बेटी और वह लड़का एक दूसरे से मिलते-जुलते हैं।
मैंने सोचा था चलो लड़की ने एक अच्छा काम तो किया अब मुझे दहेज आदि के खर्च से बचा लिया। लेकिन- नहीं- शादी के लिए जब लड़के के बाप से बात किया तो उसने लाखों का बजट बता दिया। अब क्या करोगे-? बेटी की माँ ने कहा- घर की सभी सम्पत्ति बेंच डालो और ब्याह करो क्योंकि ऐसा लड़का चिराग लेकर ढूंढने से भी नहीं मिलने वाला- साथ ही उसका परिवार काफी सम्मानित भी है- जिसके बारे में दूर-दूर तक लोग जानते हैं। फिर---
तब फिर क्या...........अब बेंचना शरू किया है। जमीन-जायदाद बेंचने से जो धन मिलेगा- बीवी जान अपनी बेटी की शादी धूमधाम से करेंगी, तुम क्या करोगें? कान इधर लावो, थोड़ा नजदीक का जावो। लो अब बताओ- सम्पत्ति बेंचने पर जो धन मिलेगा उसका एक चौथाई मैं दारू एवं अपने खर्चे के लिए क्रेता से देने के लिए कह चुका हूँ। यार बड़े चतुर हो- जी ठीक फरमाया- यदि ऐसा न होता तो यह नौबत ही क्यों आती-? खूब भइया वाकई तुम जीनियस और लिविंग लीजेण्ड हो-? क्या कहा- कुछ नहीं डियर जब स्कूल/कालेज की तरफ तुमने देखा ही नही ंतब क्या समझोगे-?
चलो माना कि जमीन जायदाद बेंच-बाँच कर शादी-ब्याह निबटा दोगे- ऐसी स्थिति में एक दिन ऐसा भी आएगा जब भूमिहीन होकर भिखारी बन जावोगे- तब लोग क्या कहेंगे- छोड़ो लोग कहें या न कहें- यह नौबत नहीं आने देना चाहिए। ओय- क्या है- मैंने बात शेयर किया तो तुम मुझे नसीहत देने लगे। छोड़ यार गलती हो गई। मूर्खोपदेश नहीं देना चाहिए। मैं गलत कर रहा था। कुछ भी हो डियर तुम अपने कृत्यों से एक नए इतिहास की नींव डाल रहे हो, आने वाली पीढ़ियाँ तुम्हारे बारे में जान-सुनकर थूकेंगी तुम पर और यदि तुम्हारे अपने खून से संतानें हुईं तो वे गालियाँ देंगी।...............भइया आज ही कौन सी पूजा की जा रही है मेरी.........?
यह तो गाँव के उन लोगों का शुक्रिया अदा करता हूँ जिन्होंने मुझे वक्त-जरूरत पैसा देकर अंगूर की बेटी से मोहब्बत करने का अवसर दिया है। कल किसने देखा है। भइया कहते थे आज खाय जो कल को झंक्खे- उसको गोरख संग न रक्खे। क्या समझे? समझ गया जारी रखो हमें क्या आपत्ति हो सकती है। बस यही सोचता हूँ कि ‘बाढें पूत पिता के धरमे- खेती उपजै अपने करमे। ऊपर वाला तुम्हारी नस्लें-सन्तानों का भला करे।  
 -डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी
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