आज़ादी का जश्न अवतरित 3 प्रश्न

-ऋतुपर्ण दवे/ उत्तरी गोलार्ध स्थित, भौगोलिक दृष्टि से दुनिया में सातवें सबसे बड़े और जनसंख्या के लिहाज से दूसरे बड़े देश भारत के 70 वें स्वाधीनता दिवस पर, अभिव्यक्ति की असल स्वतंत्रता पहली बार तीन अलग रंग-रूप में दिखी। एक, किसी प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान को खुलकर मुंहतोड़ जवाब दिया। जवाब भी ऐसा कि पाकिस्तान बचाव की मुद्रा में आ गया। वहीं दूसरी ओर बलूचिस्तान की हालात से परेशान वहां के स्वाधीनप्रिय जिनेवा में बैठ, टीवी पर भारतीय प्रधानमंत्री की तारीफ करते नहीं अघा रहे थे। दो, सर्वोच्च न्यायालय में आयोजित स्वतंत्रता दिवस समारोह में पहली बार किसी मुख्य न्यायाधीश ने खरी-खरी कही। मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर ने कहा “लोकप्रिय प्रधानमंत्री करीब डेढ़ घण्टे तक बोले, कानून मंत्री भी बोले। मैं उम्मीद में था कि दोनों अपने भाषणों में जजों की नियुक्ति के बारे में कुछ कहेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।” तीन, पहली बार जम्मू-कश्मीर के किसी मुख्यमंत्री ने जश्न-ए-आजादी के मौके पर अब तक की सारी केन्द्र सरकारों को मौजूदा हालातों के लिए कोसा। श्रीनगर में जम्मू-कश्मीर की पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने नेहरू से लेकर मौजूदा सरकार तक को कोसा और कहा जम्मू-कश्मीर के लोग बुरे नहीं हैं और न ही भारत।
    मौका कोई भी हो, वैचारिक प्रादुर्भाव न हो, कैसे संभव? हां, प्रधानमंत्री ने बलूचिस्तान का जिस तरह, अपने लालकिले की प्राचीर से दिए तीसरे भाषण में जिक्र किया, पूरा देश खुश हो गया, दुनिया अवाक रह गई। किसी प्रधानमंत्री ने जश्न-ए-आजादी पर पाकिस्तान को  ललकारा, कया यही कम है?  हालांकि इसकी इबारत राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजित डोभाल ने साल 2014 में इस पद पर आसीन होने से पहले पाकिस्तान द्वारा अपनाए जाने वाले युद्ध के गैर-परंपरागत तरीकों से निपटने पर राय रखते हुए इशारों ही इशारों में तभी लिख दी थी। उन्होंने कहा था, मुंबई तो एक ही रहेगी लेकिन कहीं पाकिस्तान, बलूचिस्तान को न खो दे। राजनीतिक पण्डितों का मानना है कि कहीं नरेन्द्र मोदी, इन्दिरा गांधी की, पाकिस्तान को उस खरी-खरी चेतावनी की तरफ तो नहीं लौट रहें जिसमें उन्होंने पाकिस्तानी जनरलों को कहा था कि बंद मुट्ठी से हाथ नहीं मिलाया जाता। कुछ भी हो, प्रधानमंत्री के इस बयान से पाकिस्तान से लेकर उसके आकाओं को हक्का-बक्का होना था, हुए भी। ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री ने एक तीर से कई निशाने साधे। जहां चीन को भी कड़ा संदेश दिया कि तिब्बत-नेपाल के रास्ते कोलकता तक रेल पटरियों के बिछाने के उसके प्रस्ताव को भारत खूब समझता है। वहीं उसी चीन को यह भी अनकहे जतला दिया कि परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) के मसले पर हमें धता बताया। अब व्यापार का लालच दिखा, रेल के रास्ते घुसपैठ का फरेब? भारत को समझ आता है। साथ ही अमेरिका को भी दोस्ताना अंदाज में संदेश दे दिया कि भारत उसके आंतरिक मामलों में दखल बर्दास्त करने वाला नहीं। हो सकता है कि भारत-पाकिस्तान में तल्खी और बढ़े, युध्द के हालात भी बनें। लेकिन यह भी हकीकत है कि ईरान कभी नहीं चाहेगा, भारत बलूच के मामले में दखल दे क्योंकि वह बलूचियों के राष्ट्रवाद और भारत की हैसियत से बखूबी रू-ब-रू है।
स्वतंत्रता दिवस के मौके पर सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर का दर्द कैसे नजर अंदाज हो सकता है जिसस ये फिर साफ हुआ कि न्यायपालिका और सरकार के बीच गतिरोध जारी है। सधे शब्दों में काफी कुछ मुख्य न्यायाधीश ने बोला। उन्होंने कहा “मैने लोकप्रिय प्रधानमंत्री को डेढ़ घण्टे सुना और विधि मंत्री को भी। उम्मीद थी वे न्याय के क्षेत्र और न्यायाधीशों की नियुक्ति के बारे में कुछ कहेंगे। मैं सिर्फ यही कहना चाहता हूं, आप गरीबी हटाएं, रोजगार का सजन करें, योजनाएं लाएं, अच्छी बात है। लेकिन देशवासियों के लिए न्याय के बारे में भी सोंचे। अदालतों का काम कई गुना बढ़ा है। ब्रिटिश जमाने में 10 साल में फैसले हो जाते था। अब मामलों की संख्या भी बढ़ी है और लोगों की अपेक्षाएं भी। बार-बार प्रधानमंत्री से इस पहलू की ओर ध्यान देने का गुजारिश की है। जहां पहुंच चुका हूं उससे आगे की तमन्ना नहीं है।” उन्होंने मिर्जा रफी सौदा की गज़ल की दो पंकितयों को भी कहा “गुल फैंके हैं औरों की तरफ ऐ खानाबर अंदाज-ए-चमन कुछ तो इधर भी” (अर्थात आपने दूसरों को फूल और फल दिए, कुछ हमारी तरफ भी भेजिए)।
स्वाधीनता दिवस के इसी मौके पर जम्मू-कश्मीर में मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की तल्खी के मायने भी खूब निकाले जाएंगे। अपने ही गठबंधन के प्रमुख सहयोगी और केन्द्र में सत्तासीन सरकार को भी जमकर कोसा और नौजवानों का यह कह आव्हान किया कि वे खूबसूरत घाटी को एक और सीरिया या अफगानिस्तान बनने से रोकें और उन निहित स्वार्थियों से भ्रमित न हों जो कश्मीर को हमेशा जलते देखना चाहते हैं।  महबूबा मुफ्ती ने कहा “जवाहर लाल नेहरू से लेकर आज तक के नेतृत्व और पार्टियों की गलतियां हैं। बंदूक चाहे आतंकवादियों की हो या हमारी, मसला हल नहीं होगा। बातचीत के अलावा दूसरा रास्ता नहीं है। ऐसे स्वार्थी तत्वों से सतर्क रहना होगा जो हमेशा कश्मीर को जलते देखना चाहते हैं। जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा छीनने का दुष्प्रचार गलत है। इसकी शिकायत मुझे भी है। यहां की जनता इतने बड़े देश से जुड़ी है तो धर्म के आधार पर नही बल्कि लोकतंत्र के लिए। तो फिर हमारे लोकतंत्र को केवल मतदान तक सीमित कर दिया गया? बातचीत ही लोकतंत्र का अंग है, इसे यहां बढ़ाने में क्यों विफल रहे हैं? गलती कहां हुई?” उनका इशारा किस-किस पर था, सबको पता है।
स्वाधीनता की 70 वीं वर्षगांठ, एक सफल, संपूर्ण लोकतांत्रिक देश, व्यवस्था और व्यवस्थापकों का ऐसा त्रिकोण! शायद यही है हमारे स्वाधीन भारत की असल पहचान जो किसी न किसी रूप में जब-तब अपनी झलक दिखाती है। यह महज एक संयोग या संजोग था जो ऐसा, जश्न-ए-आजादी के मौके पर दिखा तभी तो हम दुनिया में विरले हैं, अकेले हैं और अब ताकतवर भी। अपने अधिकारों के लिए, किसी भी मंच पर बेखौफ बोलते हैं लेकिन सिर्फ देश के लिए। यही हमारी विशेषता है जो ‘भारत गणराज्य’ दुनिया का सबसे बड़ा और अब ताकतवर लोकतंत्र है, रहेगा भी, अब तो आगे विश्व का सिरमौर बनने की ओर भी चल पड़ा है।  
-ऋतुपर्ण दवे
rituparndave@gmail.com
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1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

बेहतरीन विश्लेषण एवं तथ्यों का समावेश भी. इनके आर्टिकल राष्ट्रीय ही नहीं वरन् अतर्राष्ट्रीय स्तर के होते हैं. मेरी बधाई लेखक तक पहुंचाएं.

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