रियो ओलंपिक खेल समाप्त होने के बाद एक बार फिर हमारे देश में इस विषय पर चर्चा तेज़ हो गई है कि दुनिया में आबादी के लिहाज़ से दूसरे नंबर पर आने वाले इस विशाल देश में आ$िखर ओलंपिक खेलों में पदक जीतने वाले खिलाडिय़ों की सं या न के बराबर क्यों रहती है? और अमेरिका,ब्रिटेन या चीन जैसे देश पदक जीतने की स्पर्धा में सबसे आगे क्यों निकल जाते हैं। रियो ओलंपिक 2016 में अमेरिका ने कुल 121 पदक जीते जिसमें 40 स्वर्ण पदक,37 रजत तथा 38 कांस्य पदक थे। जबकि ब्रिटेन ने 27 स्वर्ण,23 रजत तथा 17 कांस्य पदक जीतकर कुल 67 पदक प्राप्त करने में सफलता हासिल की। इसी प्रकार हमारे पड़ोसी देश चीन ने कुल 70 पदक अर्जित किए जिनमें 26 स्वर्ण,18 सिल्वर और 26 कांस्य पदक शामिल हैं। ब्राज़ील,स्पेन, कीनिया,जमैका तथा क्रोएशिया,क्यूबा तथा न्यूज़ीलैंड जैसे छोटे देशों ने भी कई-कई स्वर्ण,रजत और कांस्य पदक जीते। परंतु भारता का नाम दुर्भाग्यवश उन बदनसीब देशों की सूची में शामिल हुआ जिसने केवल एक रजत व एक कांस्य पदक जीते। ओलंपिक खेलों में भारत की तुलना मंगोलिया जैसे छोटे देश से इसलिए की जा सकती है क्योंकि मंगोलिया ने भी एक रजत व एक कांस्य पदक ही हासिल किया है। इससे ाी अहम एक इत्ते$फा$क यह भी है कि भारत में आए यह दोनों पदक हमारे देश की बेटियों द्वारा जीते गए हैं। अब सवाल यह है कि रियो ओलंपिक जिसमें 205 देशों के ग्यारह हज़ार एक सौ अ_हत्तर खिलाडिय़ों ने भाग लिया हो और जहां दो हज़ार एक सौ दो पदकों की बौछार हुई हो वहां आ$िखर भाारत जैसा विशाल देश केवल दो ही पदक मात्र क्यों जीत सका? और इसके पूर्व भी कभी भी भारत का प्रदर्शन ओलंपिक खेलों में ऐसा नहीं रहा जो भारत के लिए गर्व का विषय बन सके।
ऐसे में एक सवाल तो यह उठता है कि क्या हमारे देश के नीति निर्माताओं की दिलचस्पी इस बात में $कतई नहीं है कि हमारे देश के एथलीट व खिलाड़ी विश्व में अपने शानदार प्रदर्शन व प्रतिभा का झंडा लहराएं या फिर ओलंपिक जैसी अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धा वाले खेलों में अपने खिलाड़ी भेजने के लिए हमारे पास नीतियों व तैयारियों की कमी का यह नतीजा है? हालांकि कुछ विश£ेषकों का यह भी मानना है कि भारत के नीति निर्माता इज़राईल की तरह खेल-कूद में ज़्यादा दिलचस्पी नहीं लेना चाहते। इसी लिए इसकी तैयारी की ओर वेे गंभीरतापूर्वक अपना ध्यान नहीं देते। परंतु ऐसा कहने वालों के तर्क के पीछे खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे वाली कहावत के ही दर्शन होते हैं। वास्तव में तो भारत सरकार तथा विभिन्न राज्य सरकारें भी अपने स्तर पर विभिन्न खेलों के प्रशिक्षण तथा आयोजन व प्रतियोगिता एवं खिलाडिय़ों के चयन का अपनी नीति व नीयत के अनुरूप व्यवस्था करती हैं। ज़ाहिर है इन्हीं प्रशिक्षित खिलाडिय़ों में से कोई न कोई खिलाड़ी कभी अभिनव बिंद्रा की तरह तो कभी पीटी ऊषा या फिर अब पीवी सिंधु व साक्षी मलिक की तरह कुछ खिलाड़ी अपनी जीतोड़ मेहनत व तपस्या की बदौलत हमारे देश की नाक बचाने की भूमिका में सामने आ जाते हैं।
आज हमारा देश हज़ारों धर्मगुरुओं,प्रवचनकर्ताओं,धर्म आधारित भड़काऊ भाषण देने वालों,धर्म के नाम पर अथाह संपत्ति इक_ा करने वालों,दुआ-तावीज़ करने वालो, आशीर्वाद देने व लोगों का भविष्य बताने का धंधा करने वालों से भरा पड़ा है। यह शक्तियां हमारे देश के सीधे-सादे व शरी$फ लोगों को बोलवचन देकर उन्हें बहला-$फुसला सकती हैं, दूसरे तरह-तरह के बहाने बनाकर धन ऐंठ सकती हैं परंतु हमारे खिलाडिय़ों को ओलंपिक में गोल्ड मेडल नहीं दिला सकतीं। खेल के मैदान में विजयी वही खिलाड़ी होता है, पदक उसकी के हिस्से में आता है जिसने अपने खेल में भरपूर व आसामान्य प्रशिक्षण हासिल किया हो। न तो किसी का आशीर्वाद उसे जिता सकता है न ही घर बैठकर टीवी के सामने लोगों का दुआएं करना किसी खिलाड़ी के काम आता है। न ही हमारे देश के मंत्रियों,नेताओं व अधिकारियों द्वारा बड़े-बड़े प्रतिनिधिमंडल के साथ सरकारी $खर्च पर ओलंपिक में भाग लेने के बहाने देश का करोड़ों रुपये बरबाद करना पदक लाने में सहायक होता है। बजाए इसके इस बार तो केंद्रीय खेल मंत्री विजय गोयल को तो उनके द्वारा रियो में किए गए कथित दुव्र्यवहार के कारण उन्हें आयोजन समिति द्वारा चेतावनी भी दी गई। यह भारत के लिए अपमानजनक घड़ी थी।
बहरहाल, जहां हम अपनी नाकामियों की चर्चा करते हैं वहीं चीन को ओलंपिक में हर बार मिलने वाली अभूतपूर्व सफलता पर भी नज़र रखते हैं। इन दोनों देशों की तुलना करने के लिए यह देखना भी ज़रूरी है कि हमारी और उनकी प्राथमिकताओं में आ$िखर कितना अंतर है। जब भी चीन का जि़क्र आता है तो हम उन्हें यही कहकर कोसने लगते हैं कि चीनी चूहा-बिल्ली या कुत्ता खाने वाले लोग हैं। वे नास्तिक हैं। और क युनिस्ट हैं। और हम अपने आपको विश्वगुरु व विश्व का सबसे बड़ा अध्यात्मवादी व धर्मपरायण देश समझकर अपनी पीठ स्वयं थपथपाने लगते हैं। हम यह नहीं देखते कि आज जो एथलीट,जिमनास्ट अथवा खिलाड़ी चीन के लिए सवर्ण,रजत अथवा कांस्य पदक जीतकर ला रहा उसके प्रशिक्षण की शुरुआत कहां से हुई है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि चीन में किसी बच्चे के पैदा होते ही उसकी परवरिश व प्रशिक्षण इस बात को लक्ष्य बनाकर करना शुरु कर दिया जाता है कि यह बच्चा समय आने पर देश के लिए पदक विजेता बनेगा। उस बच्चे का पूरा जीवन केवल उसके प्रशिक्षण की भेंट चढ़ा दिया जाता है। चीन में रिहाईशी क्षेत्रों के पार्को में जिम संबंधी अनेक उपकरण सार्वजनिक रूप से स्थापित किए गए हैं। जिसमें कोई भी व्यक्ति जब चाहे वहां जाकर अ यास कर सकता है। चीन के साधारण लोग भी $खाली समय में उछलते-कूदते और शारीरिक अ यास करते दिखाई देते हैं। गोया अपने शरीर को स्वस्थ रखना उनकी प्राथमिकताओं में शामिल है और यह लगभग प्रत्येक आम चीनी नागरिक का स्वभाव बन चुका है। इसका परिणाम पूरी दुनिया प्रत्येक अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में देखती रहती है। वहां के लोग पदक लिए न तो मन्नतें मांगते हें, न ही दुआएं। न तो एक-दूसरे की थाली में झांकते है न ही एक-दूसरे को नीचा दिखाने या एक-दूसरे धर्म व समुदाय के लोगों को अपमानित करने में अपना समय गंवाते हें। ज़ाहिर है जैसी जिसकी प्राथमिकताएं होंगी वह समय आने पर वैसा ही प्रदर्शन करेगा और उसी के अनुरूप उसके परिणाम भी सामने आएंगे।
तनवीर जाफरी,
1618, महावीर नगर,
1618, महावीर नगर,
मो: 098962-19228
जैसी प्राथमिकताएं वैसा प्रदर्शन और परिणाम
Reviewed by rainbownewsexpress
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2:03:00 pm
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