बलूचिस्तान के बहाने गुटनिरपेक्षता पर भारत

-संजय कुमार आजाद/ भारत के प्रधानमन्त्री ने भारत के ७० वे स्वतन्त्रता दिवस के मौके पर लालकिले के प्राचीर से जहां भारत के विदेश नीति को नेहरूवियन ढाँचे से निकालने का संकेत दिया है. वही गिलगित-बलूचिस्तान और POK पर अपने मनसूबे को ज़ाहिर कर पाकिस्तान को भी कडा सन्देश देने का सफल कुटनीतिक प्रयास किया है.शिया बाहुल्य बलूच भूभाग का अब धीरे-धीरे सुन्नी बाहुल्य होना, उस पर पंजाबी मुसलमानों का वर्चस्व होना, बलूच जनता की दुर्दशा को ब्यान करती है है .एक पडोसी के नाते बलूचिस्तान के लोगो पर हो रहे अत्याचारों को भारत कबतक मूक बनकर देखता रहेगा? भारत किसी भी देश के अंदरूनी मामलो में ना दखल दिया और ना कभी दखल देगा. किन्तु जब उसके आजू बाजू में पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) जैसा नरसंहार हो तो वैसे पाशविक शासक या देश के प्रति एक मानवीय संवेदनशील पड़ोसी होने के कारण कल भारत ने पूर्वी पाकिस्तान के लोगों को नैतिक सहायता किया था और आज वही नैतिक सहायता भारत बलूचिस्तान गिलगिट या POK में देने को प्रतिबद्ध है.
बलूचिस्तान पाकिस्तान के क्षेत्रफल का आधा और कुल आवादी का ३.६ फीसदी ही है.प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर रहने पर भी यह भूभाग अपने नागरिको के लिए मुलभुत सुविधा भी नही दे पाई क्योंकि यहाँ के संसाधनों का उपभोग पाकिस्तान के सेना और पंजाबी सुन्नी मुस्लिम लोग करते रहे है.बलूचिस्तान की गिनती दुनिया के सबसे गरीब भूभाग में चिन्हित की जाती है क्योंकि पाकिस्तानी हुक्मरान और सेना यहाँ के सारे संसाधन को जोंक की तरह चुस्ती रही है.
अगर बलूचिस्तान के इतिहास पर ध्यान दें तो यह चार रियासतों से बनती है. इन चारों के नाम है –कलात, लसबेला, खारन और मकरान .इन चारों में खारान,लसबेला पर कलात का शाशन था.ध्यान देने की बात है की कलात के शासक कभी भी पाकिस्तान के साथ विलय की संधि पर हस्ताक्षर नही किया था. तभी तो मुहम्मद अली जिन्ना ने फरबरी १९४८ में कलात के शासक को एक पात्र लिखा और कहा कि-“मै आपको सलाह देता हूँ की अब बिना देर किये कलात का पाक में विलय कर दीजिये.”किन्तु जिन्ना के इस आग्रह को कलात के शासक ने सिरे से खारिज कर दिया था.२६ मार्च १९४८ को पाकिस्तानी सेना बलात रूप से बलूचिस्तान पर कब्जा कर जिस तरह से वहाँ के नागरिको पर अमानुषिक अत्याचार का सिलसिला जारी किया वह आज भी बदस्तूर जारी है .बलूचिस्तान की संसद पाकिस्तान के इस जबरदस्ती विलय को आज भी नही मानती है.
बलूचिस्तान में पाकिस्तानी सेना अपने सरकार के साथ मिलकर जिस तरह से बलूच लोगो का अपहरण कर रही वह संख्या हज़ारों में है .अच्छे नेता वकील या अन्य बलूच जो अपनी आजादी के दीवाने है उन्हें वहाँ की फौज उनके परिवार के साथ मौत का घाट उतार जिस दहशत का माहौल बना रखी है वह मनवता के लिए कलंक है.हाल ही में वहाँ वकीलों के एक पूरी पौध को आत्घाती हमले में खत्म कर दिया.अपने जन्म से ही पाकिस्तान नरसंहार में विश्वास करती रही है और वह आज भी उसी क्रूर रास्ते पर अपने को आगे बढ़ाती रही है. ऐसे नरपिशाच शासको से चाहे वह कोई भी देश हो वहाँ के आम नागरिको के रक्षा के लिए, उनके मानवीय अधिकारों के लिए, उनके जीने की गारंटी के लिए यदि कोई प्रयास करता है तो वह हर दृष्टिकोण से जायज है.और इस तरह के राहत कार्य किसी देश के आंतरिक मामले का उलंघन नहीं है.
जिस तरह के नरसंहार पाकिस्तनी सेना वहाँ करती है वह आज के जमाने में मानवता को शर्मसार करती है बलूचिस्तान के लोकप्रिय नेताओं में से एक सरदार अकबर बुगती को २००६ में पाकिस्तानी सेना ने हत्या कर दी.यहाँ तक बलूचिस्तान में वह वायुसेना की मदद से बलूच नागरिको पर बमवारी करवाती है .हजारो महिलाओं बच्चो के नरसंहार अब तक पाकिस्तानी सेना कर चुकी है.बलूचिस्तान की घटनाओं को ध्यान से देखें तो जिस तरह १९७२ से पहले पाकिस्तान अपने पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली मुसलमानों पर किया था बलूचिस्तान में उससे भी ज्यदा भयावह  स्थिति आज बनी हुई है. ऐसे नरसंहारी पाकिस्तानी कब्जे से त्रस्त बलूच लोगो को जब भारत के प्रधानमन्त्री के दो मीठे बोल मिले तो उनमे भी अच्छे दिन दिखने लगे.इसी अच्छे दिन की आशा में बलूचिस्तान रिपब्लिकन पार्टी के नेता बरहम दाग ने भारत के प्रधानमन्त्री की तारीफ़ की की उन्होंने कहा की –“एक जिम्मेदार पडोसी और दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के तौर पर भारत को बलूचिस्तान में दखल देना चाहिए”.यूएनओ में बलूच प्रतिनिधि अब्दुल नवाज़ बुगती ने भी कहा की-“भारत को यह मुद्दा बहुत पहले उठाना चाहिए”. इसके अलावे शाह ज़माल बुगती और नैयला कादरी जैसे नेताओं ने भी भारत के प्रधानमन्त्री के इस कदम पर धन्यवाद दिया है.
बलूचिस्तान पर प्रधानमंत्री के इस वयान से भारत के कुछ नेताओं को भी मिर्ची पाकिस्तान की ही तरह लगा. इस बयान से कांग्रेस के सलमान खुर्शीद और अब्दुल्लाह खानदान के उमर अब्दुला की तिलमिलाहट उनके चाल और चरित्र पर हमे सोचने को मजबूर करती है.वही मिडिया में राजदीप और पूण्य प्रसून जैसो की बोली तो मानो ऐसा हो की ये आतंकी हाफ़िज़ सैयिद का प्रवक्ता हो.हालंकि कांग्रेस तुरंत खुर्शीद के इस घटिया विचार से अपने को अलग कर बलूचिस्तान पर प्रधानमन्त्री के इस नीति का समर्थन किया.
भारत का वह वर्ग जिसके घृणित प्रयासों से आज भी जम्मू कश्मीर का मुदा ज़िंदा है और कश्मीर रूपी ओक्सिजन सिलेंडर के सहारे जीने वाला पाकिस्तान इन दोनों वर्गों को प्रधानमंत्री ने बलूचिस्तान का मुद्दा उठाकर आईसीयू में डाल दिया है? भारत के उन मानवाधिकारों के झंडे ढ़ोने वाले गिरोह भी आज सदमे में है जो कल तक भारत में अफज़ल पर स्यापा करते नहीं थकते ?क्या इन गिरोहों के नज़र में गिलगिट बालिस्तान या बलूचिस्तान या POK के लोगो का कोई मानवीय अधिकार नही है?भारत के प्रधानमन्त्री के बलूचिस्तान पर दिए बयान के बाद बलूचिस्तान सहित विश्व में फैले बलूची मूल के लोगों ने जिस तरह का प्रसन्नता व्यक्त किया उससे उनके पाकिस्तानीओ द्वारा दिए जा रहे दर्द को समझा जा सकता है.१९४८ से अबतक बलूचिस्तान के महान नागरिक पाकिस्तान के क्रूर पंजो से आजादी के लिए भयंकर जुल्म झेल रहे है.शिया बाहुल्य गिलगिट,बालिस्तान हो या बलूचिस्तान यहाँ के आम लोगों ने भारत के प्रधान मंत्री के प्रति अपना आभार दर्शाया की उन्होंने हमारे मानवीय अधिकारों की बात की है.अब भारत अपने विदेश नीति की पटकथा नए सिरे से तय कर रही है.पाकिस्तान पर भारत सरकार का लिया गया निर्णय उसी परिपेक्ष्य में देखना होगा.नेहरु नीति ने जहां भारत को रक्षात्मक मुद्रा की सिख डी तो अब मोदी नीति रक्षात्मक नीति के स्थान पर आक्रमक नीति यानी जैसे को तैसा की भाषा में जबाब देने की दिशा में कदम बढ़ा रही है .इसी परिप्रेक्ष्य में भारत की वर्तमान सरकार गुट निरपेक्ष आन्दोलन को भी लिया है ऐसेर संकेत तो मिल ही रहे है.
वेनेजुएला के मार्गरीटा द्वीप पर १७-१८ सितम्बर २०१६ को गुट निरपेक्ष आन्दोलन का १७ वा सम्मलेन होने जा रहा है . वर्तमान सरकार के कार्यकाल में इसकी ये पहली बैठक है.अब तक की परम्पराओं में भारत के प्रधानमन्त्री इस सम्मेलन में भाग लेते रहे है सिर्फ १९७९ में तत्कालीन कार्यवाहक प्रधानमन्त्री चौधरी चरण सिंह ने हवाना में हुई बैठक में भाग नही लिए थे .इस आन्दोलन की शुरुयात १९६१ बेलग्रेड में हुई थी.नेहरु की विदेश निति का यह आधार स्तम्भ रहा है.यहाँ तक की केंद्र में जब वाजपई जी की सरकार थी तब इस आन्दोलन के दोनों बैठक में उन्होंने भाग लिया था.५५ साल के लम्बे समय में इस आन्दोलन पर भारत की मजबूत पकड रही किन्तु सफल विदेश निति के पैमाने पर यह भारत के लिए खरा नही उतर सका.यदि इस बार वेनेजुएला की बैठक में प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी शामिल नही होते है तो भारत की विदेश निति नेहरूवियन चौखट से बाहर कदम रख रही है ऐसा प्रतीत होगा.इस निर्णय के भारतीय विदेश नीति के दूरगामी प्रभाव देखने को मिल सकते है.
भारत के वर्तमान सरकार यदि गुट निरपेक्ष आन्दोलन को उस सजगता से नही लेती है तो इसके प्रबल सम्भावना है की इसके गर्भ से निकली विदेश नीति भारत को एक सशक्त राष्ट्र बनाने की दिशा में स्पस्ट नीति होगी.पाकिस्तन और गुटनिरपेक्षता पर भारत के वर्तमान सरकार की नीति के जो संकेत उभर कर आ रहे है वह देश के तथाकथित बौधिक ज़मातों के लिए कष्टकर ही होंगे.भारत में पाक परस्त लोगो को अब सोचना ही होगा की सरकार के इस नीति से उनके अच्छे दिन गये.भारत की संप्रभुता और विकास पर आघात करने बाले गिरोहों के लिए वर्तमान सरकार की गुटनिरपेक्षता पर लिए जाने बाले निर्णय और पाकिस्तान पर सरकार की नीति बहुत कुछ कह रही है.
-संजय कुमार आजाद
रांची 834002
इमेल- azad4sk@gmail.com
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