कैसे मजबूत हो बैंकों की बुनियाद

-अमितेश कुमार ओझा/ कुछ साल पहले मेरे शहर में दिन – दहाड़े बैंक की 20 लाख रुपए की रकम लूट ली गई। वाकया दिन को हुआ था, लिहाजा पुलिस ने आनन–फानन कुछ लोगों को गिरफ्तार कर लिया। लेकिन असली समस्या तब आई जब लूट का शिकार बने बैंक के कर्मचारियों ने शिनाख्त परेड के दौरान अपराधियों को पहचानने से साफ इन्कार कर दिया। उनका कहना था कि लूट सरकारी रकम की हुई है वे अपनी जान मुसीबत में क्यों डालें। यदि यह वाकया एक शहर का है तो पूरे देश में इस प्रकार की कितनी वारदातें होती होंगी और कितनों का यही अंजाम होता होगा, कहना मुश्किल है। प्रत्येक वर्ष बैंकों में कितने करोड़ की रकम लूट  व डकैती की भेंट चढ़ती है। निश्चय ही इस विषय पर न तो हम कभी सोचते हैं और न सरकार के पास ही इसका कोई आंकड़ा रहता होगा। जबकि एक साल के भीतर लूटी गई रकम का  कुछ हिस्सा खर्च करके ही हम बैंकों की सुरक्षा चाक – चौबंद कर सकते हैं। जब भी किसी कार्य से मैं बैंक जाता हूं, वहां मौजूद रहने वाले अधेड़ उम्र के सुरक्षा जवान को देख कर सोच में पड़ जाता हूं कि यदि कभी कोई वारदात हो गई तो यह बेचारा अकेला क्या कर लेगा। अक्सर कई प्रकार की समस्याएं उत्पन्न भी होती रहती है। मसलन हाल में एक वाकया सामने आया जब बैंक में सक्रिय रहने वाले कुछ दलालों ने एक लोन मैनेजर को अगवा कर उसे  बुरी तरह से इसलिए पीट दिया क्योंकि उसने कुछ कड़ाई बरतने की कोशिश की थी। इस तरह के वाकयों से बचने के लिए मेरे मन में ख्याल आया कि क्यों न बैंकों की सुरक्षा इतनी चाक – चौबंद हो कि कोई बैंकों की ओर बुरी नजर उठा कर देखने का भी साहस नहीं कर सके, जहां जनता की गाढ़ी कमाई रखी जाती है।  निश्चय ही इससे बैंकों पर खर्च का बोझ बढ़ेगा , लेकिन यदि इससे बैंकों में रखी रकम  और कर्मचारियों की सुरक्षा सुनिश्चित होगी तो यह खर्च ज्यादा नहीं पड़ेगा। बैंकों के साथ एटीएम की सुरक्षा भी नितांत जरूरी है। कई एटीएम बगैर सुरक्षा गार्ड के देखे जाते हैं। क्योंकि बैंक यह अतिरिक्त खर्च नहीं उठाना चाहते। लेकिन एटीएम में गार्ड रहने के अनेक फायदे हैं। निश्चय ही एक गार्ड किसी को पुख्ता सुरक्षा नहीं दे सकता। लेकिन इसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव तो एटीएम आने वाले ग्राहकों पर पड़ता ही है कि वहां सुरक्षा गार्ड मौजूद है तो निश्चय ही इसमें मेरी सुरक्षा है। गार्ड से मशीन की भी सुरक्षा रहती है। क्योंकि अनजान ग्राहक गलत बटन दबा कर मशीन को खासा नुकसान पहुंचाते हैं। भ्रम की स्थिति में गार्ड बेहतर गाइड की भूमिका निभाते हैं। यह मेरा प्रत्यक्ष खुद का अनुभव है। इसलिए हर एटीएम के सामने सुरक्षा गार्ड अवश्य ही तैनात किए जाने चाहिए। वहीं बैंकों की सुरक्षा व्यवस्था को  आदम जमाने से निकाल कर आधुनिक बनाया जाना चाहिए। क्योंकि सर्वोच्च प्राथमिकता जनता की गाढ़ी कमाई के धन की सुरक्षा को देनी चाहिए। यही नहीं बैंकों में अनपढ़ और कम पढ़े – लिखे लोगों की सहायता के लिए अलग से काउंटर और कर्मचारी की व्यवस्था बेहद जरूरी है। जो पेशेवर तरीके से ग्राहकों का मार्गदर्शन कर सकें। क्योंकि इसके अभाव में ऐसे ग्राहकों का शोषण दलाल करते हैं। आज के जमाने में यह बिल्कुल अच्छा नहीं लगता कि कोई बैंक का फार्म भरने के लिए इधर – उधर चिरौरी करता फिरे। व्यस्तता के दौर में यह भी संभव नहीं कि आम आदमी हर किसी की मदद करे। लिहाजा यह दायित्व बैंकों को ही उठाना चाहिए।  हम बैंकों में ऐसी व्यवस्था बना सकते हैं जहां ग्राहकों को बेहतर परिसेवा दी जा सके। इन कदमों से हम आधुनिक बैंकों की बुनियाद मजूबत कर सकते हैं। 
लेखक अमितेश कुमार ओझा बी.काम प्रथम वर्ष के छात्र  हैं।
पता- अमितेश कुमार ओझा, भगवानपुर, जनता विद्यालय के पास वार्ड नंबर-09 (नया), खड़गपुर (पश्चिम बंगाल) पिन- 721301 जिला पश्चिम मेदिनीपुर संपर्क- 08906908995, Email- kamitesh87@gmail.com

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