भारत मां के लाल तुझे सलाम

-प्रभुनाथ शुक्ल/ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वाधीनता दिवस पर जब लालकिले की प्राचीर से पाक अधिकृत कश्मीर यानी पीओके पर मन की बात कह रहे थे और बलोच एंव गिलगित के निवासियों को दिल से लगा रहे थे, उसी समय कश्मीर में हमारे जवान मातृभूमि की रक्षा में शहीद हो रहे थे। कितनी विबड़ंबना की बात है हमारे लिए। कश्मीर से जुड़ी दो घटनाओं ने आम भारतीयों को सोचने पर मजबूर कर दिया। दुःख भी हुआ और गर्व भी हुआ। आजादी के जश्न का उत्साह कई गुना और बढ़ जाता अगर आतंकियों और सेना के बीच हुई मुठभेंड में हमारे जांजाब कमांडेंट प्रामोद हमारे बीच होते, दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हुआ। आतंकी मुठभेंड में उनकी जान चली गयी। यह हमारे लिए बेहद दुःखद रहा। अहम सवाल है कि स्वाधीनत भारत में भी अलगववादी नीतियों का शिकार हमारे निर्दोष जवान शहीद हो रहे हैं। भारतीय सेना को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है। सैन्य और राष्ट की यह अपूरणीय क्षति है। लेकिन इस शहादत के बीच एक शकून भरी खबर भी आयी जिससे भारतवासियों का सीना गर्व से चौड़ा हो गया। जब आतंकी बुरहानबानी के घर त्राल में हमारे जाबांज जवान ने 80 फीट उंचे टावर से पाकिस्तानी नापाक इरादों की निशानी यानी पाकिस्तनी झंडे को उखाड़ फेंका और भारतीय तिरंगा लहरा दिया। यह घटना किसी भी तरह से सामान्य नहीं कहीं जा सकती है। आजादी की पीड़ा और देशभक्ति क्या होती यह हमारे सैनिकों के अलावा कोई इतनी संवेदना से नहीं पहचान सकता है। मंचीय भाषणों से देशभक्ति का पैमाना नहीं नाप सकते। अगर हमें देशभक्ति देखनी है तो सियाचीन और पाकिस्तानी सीमा के साथ कश्मीर जाना चाहिए। पाकिस्तानी आजादी दिवस 14 अगस्त को जिस जगह पाकिस्तानी झंडा लहराया गया था वह इलाका आतंक का गढ़ है लेकिन उस जाबांज जवान ने अपनी जान की परवाह किए बगैर तिरंगा लहराया। इससे बड़ी देश भक्ति की कोई और मिशाल नहीं हो सकती। कश्मीर घाटीं में लोग आतंक के साए में जी रहे हैं न चाहते हुए भी आम कश्मीरियों को आतंकवादियों को साथ मजबूर होकर देना पड़ रहा है। जिस कश्मीर में आतंकी बुरहान को शहीद बताया गया। जिसकी शवयात्रा में दो लाख लोग शामिल हुए वहां पाकिस्तानी झंडे को उतरना और आजादी की सालगिरह पर तिरंगा लहराना आसान काम नहीं था लेकिन हमें अपनी सेना और जवानों पर गर्व है जिनके लिए काम चुटकीयों का है। यहां देश भक्ति दिमाग और दिमाग से नहीं भावना से की जाती है। जहां भावना और आस्था होती है वहां जान की कीमत का कोई मूल्य नहीं होता है। हमें गर्भ है शहीद कमाडेंट प्रमोद और जाबांज जवान पर। इस बहादुरी भरे कारनामे को अंजाम देते समय कभी भी जवान की जान जा सकती थी। किसी भी तरफ से गोली या हैंडग्रेनेड से हमला हो सकता था। लेकिन हम सलाम करते हैं इस जाबांज सपूत को जिसने आतंकी तागतो को उनकी औकता बतायी। सेना और सरकार को इस जवान को सम्मानित किया जाना चाहिए। कश्मीर भारत का अभिभाज्य अंग हैं। लेकिन अलगवादवाद की आत्मा पाकिस्तान में बसती है। दशकों से कश्मीर पर खूनी पटकथा लिखी जा रही है। भारत को परास्त और पश्त करने के लिए अलगावावाद और आतंकी साजिशें पूरजोर कोशिश में लगी हैं लेकिन अपने मंसूबे में कामयाब नहीं हो रही हैं। क्या अलगाववाद अपने मकशद में कामयाब हुआ ? पूरा हिंदुस्तान जब आजादी का जश्न मना रहा था तो कश्मीर में पाकिस्तान के समर्थन में भारत विरोधी नारे लगाए जा रहे थे और तिरंगे के जगह पाकिस्तानी झंडा फहराए जा रहे थे। यह कितने बड़े शर्म की बात है। कश्मीर भारत से अलग होकर क्या जम्हूरित कायम कर पाएगा। क्या वहां लोकतंत्र जिंदा रहेगा। आम कश्मीरियों का क्या हकहूकूक सलामत रहेगा। कश्मीरियों और वहां के युवाओं को बलूचिस्तान की पीड़ा समझ में नहीं आ रही है। उनका दर्द नहीं दिख रहा है किस तरह वे भारत के साथ खड़े हैं पाकिस्तान की मक्कारी की कहानी बयां कर रहे हैं। थोड़ी पल के लिए कश्मीर को अगर अलग मान लिया जाय तो वहां इस्लामिक चरमपंथ की सरकार होगी या फिर महबूबा या उमर की। क्या वहां की जनता शकून से रह पाएगी। वहां क्या लोकतांत्रित अधिकार कायम रहेंगे। भारत और पाकिस्तान एक दूसरे से अलग हो कर क्या समस्याओं से मुक्त हो गए। बंग्लादेश में अब क्या कोई समस्या नहीं है। उत्तर और दक्षिण कोरिया क्या शांत हैं। क्या अमेरिका जैसा देश आतंकवाद से तस्त्र नहीं है। पाकिस्तान और बंग्लादेश आतंकवाद से नहीं जूझ रहे हैं। अगर यह सब है तो आतंकवाद की हिमायत क्यों की जा रही है। आतंक का महिमा मंडन क्यों किया जा रहा है। पाकिस्तान क्यों भारत को बर्बाद करने का सपाना देख रहा है। घाटी में आतंकी आग जला कर आम कश्मीरियों की आजादी क्यों छिनी जारही है। सौ फीसदी खरी बात है। जश्न-ए-आजादी के मौके पर राज्य की आम जनता को संबोधित करते हुए राज्य की मुख्यमंत्री महबूबा ने जो पीड़ा बयां की वह राजनीति नहीं दिल से निकली बात हो सकती है। यह बात सच है कि वहां के युवा पैलेटगनक का शिकार बन रहे हैं उनकी जिंदगी में जिंदगी भर के लिए अंधेरा भर गया। वहां के आईआईटी और पालिटेक्निक कालेजों बेमतलब साबित हो रहे हैं। उनके हाथ में आज पत्थर हैं और सेना निशाने पर है। लेकिन इसकी वजह कौन है। क्यों युवाओं को पैलेटगन का शिकार होना पड़ा। आम कश्मीरी यह बात क्यों नहीं समझता है। पाकिस्तान के खिलाफ लोग क्यों खड़े हैं। किसके बच्चे हाथों में पत्थर उठा रहे हैं। वह मीरवाइज के हैं या आम लोगों के बेटे ? अलगाववादी ताकतों की संताने क्यों नहीं पैलेटगन का शिकार बन रही हैं उनके बच्चों के हाथ में बुलेट और बंदूक क्यों नहीं है। सेना पर पत्थर डालने के बजाय आतंकवादियों के खिलाफ क्यों नहीं मुखर होते हैं। आतंकियों को मस्जिदों और घरों में क्यों शरण दी जाती है। कश्मीरी युवा आतंकवाद के समर्थन में अपनी ही देश की सेना और सरकार के खिलाफ क्यों खड़े दिखते हैं। सेना और सरकार को दोष देने के बजाय हमें अपनी नीयति की भी समीक्षा करनी चाहिए। जब तक आम कश्मीरी इस बात को नहीं समझेगा तक तक अलगावादी और पाकिस्तान फूटडालों और आतंक का खेल खेलते रहेंगे। जब वक्त आ गया है जब कश्मीर पाकिस्तान और आईएसआई के झंडों नारों की जगह वहां तिरंग का लहराना चाहिए और भारत जिंदाबाद के नारे जगने चाहिए।

-प्रभुनाथ शुक्ल

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं

परिचय : प्रभुनाथ शुक्ल बरिष्ठ स्तम्भकार हैं। समसामयिक विषयों के साथ राजनीति पर उनकी अच्छी पकड़ है। महिला, पर्यलेावरण और समाजिक समस्याएँ उनके लेखन का विषय हैं। शुक्ल हिन्दुस्तान, स्वतंत्र भारत और जनसंदेश टाइम्स के लिए बतौर भदोही ब्यूरो काम किया है। कई अखबारों के लिए वे नियमित साप्ताहिक कालम लिखते हैं। देश के चर्चित पोर्टल्स पर उनके लेख प्रकाशित होते रहते हैं। Mo-8924005444/7052124090, E-mail- pnshukla6@gmail.com
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