विपरीत आंकडों के दौनों पडलों को उठाने की बाजीगरी

-रवीन्द्र अरजरिया/ देश की व्यवस्था के उत्तरदायी तंत्र का मकडजाल आम आवाम की समझ से बाहर होता जा रहा है। विपरीत परिणामों वाले विभागीय आंकडे स्वयं ही अपनी उपलब्धियों के आधार पर न केवल उपहास के पात्र बन रहे हैं बल्कि प्रमाणिकता की कसौटी पर शंकाओं के गर्म होते बाजार में चौराहे पर खडे होकर ठहाके लगाने लगे हैं। गरीबी हटाओ अभियान के तहत लम्बे समय से भारी-भरकम धनराशि को ठिकाने लगा दिया गया। परिणामों के नाम पर धरातली समीक्षा से कोसों दूर मात्र कागजी दस्तावेजों की संख्या में बढोत्तरी हुई है। अभियान के लिए अलग से स्थापित की गई क्रियान्वित इकाई ने गरीबों की संख्या में आशातीत कमी की बात कहकर स्वयं ही अपनी पीठ थपथपाई है जब कि गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वालों की संख्या में भारी इजाफा होने की तस्वीर राशन कार्ड, श्रम कार्ड और अनुदान प्राप्ति के आवेदनों के आइने में साफ दिखाई देती है। तंत्र के दो अलग-अलग विभाग एक दूसरे की कार्य पद्धति से लक्ष्य प्राप्ति की आख्याओं तक पर प्रश्न चिन्ह अंकित कर रहे हैं। आश्चर्य तो तब होता है जब सरकारी सम्मान की सूची में दौनों विभागों को कीर्तिमान गढने के लिए दर्ज किया जाता है। विपरीत कार्य सम्पादित करने वालों में किसी एक के बढने पर दूसरे में कमी आने की स्वाभाविक वास्तविकता को झुठलाकर अपनी पीठ स्वयं थपथपाने का अन्तहीन क्रम चल रहा है। विवेक की तराजू पर दौनों पडलों का एक साथ ऊपर उठना असम्भव है। यह सत्य बच्चों तक को पता है परन्तु वातानुकूलित आलीशान कमरों में गद्दीदार आसन पर विराजे तंत्र के नीति निर्धारकों से लेकर समीक्षकों तक को धरती पर जीवित इस सच्चाई की चीख सुनाई नहीं दे रही है या फिर उसे सुनकर किन्हीं खास कारणों से अनसुना किया जा रहा है। विपरीत आंकडों के दौनों पडलों को एक साथ उठाने की बाजीगरी चरम सीमा की ओर बढने लगी है। ऐसे में विभागों के आपसी आरोपों उजागर करने वाली आख्याओं को अस्तित्वहीन करने के प्रयास तेज होने लगे हैं जिन्हें समय रहते रोकना होगा अन्यथा आम आवाम से टैक्स के नाम पर वसूली गयी मेहनत की कमाई के दुरुपयोग पर पूर्णविराम लगना असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य है। फिलहाल इतना ही, नवप्रभात पर रेखाकिंत किये जाने योग्य एक नये मुद्दे के साथ फिर मिलेंगे। तब तक के लिए अनुमति दीजिये।
-रवीन्द्र अरजरिया
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