उप कृषि निदेशक ने कहा कि विभाग से सम्बन्धित कोई भी जानकारी लेनी हो तो आर.टी.आई. के माध्यम से लें
यहाँ के पत्रकारों और लोगों को फोन पर बात करने की तमीज ही नहीं
कृषि विभाग में आने से पूर्व मैं कई अखबारों का सम्पादक रह चुका हूँ: विनोद कुमार
जिले के समस्त पत्रकारो को लिया आड़े हाथों कहा न डिग्री न डिप्लोमा जिसे देखो वही पत्रकार
अम्बेडकरनगर। कृषि विभाग सम्बन्धी कोई भी जानकारी आप आर.टी.आई. के जरिए लें, मैं जानकारी के अभाव में विभाग के बारे में ज्यादा कुछ नहीं बता सकता। उक्त बातें अम्बेडकरनगर जिला मुख्यालय अकबरपुर कृषि भवन में स्थित अपने चैम्बर में बैठकर उप कृषि निदेशक ने रेनबोन्यूज से कहा।
रेनबोन्यूज ने इतना ही पूछा था कि कृषि भवन के मुख्य द्वार के दायें-बायें किसानों की जानकारी के लिए लगाये गये बोर्ड जो आधे से ज्यादा गायब हो चुके हैं और शेष नालियों में गिरे-पड़े सड़ रहे हैं, उनकी ऐसी दशा क्यों? इस पर वे तमतमा उठे और बोले यह सब विस्तृत रूप से जनसूचना अधिकार के माध्यम से ही जाना जा सकता है। कितनी लागत, कितना भुगतान और किस मद से उन बोर्ड/होर्डिंग्स का निर्माण हुआ था के उत्तर में उपकृषि निदेशक अम्बेडकरनगर ने कहा कि जो पहले से पुराने बोर्ड थे उन्हीं की मरम्मत व पेन्ट करवाकर गड़वा दिया गया था।
इन बोर्डों को बनवाने के लिए कोई बजट नहीं आया था। इसे मैंने स्वेच्छा से किसानों की जानकारी के लिए बनवाकर लगवा दिया था। सिर्फ पेन्टिंग का पैसा मिला था, बाकी आज तक पेमेन्ट नहीं हो सका है। अब वे सड़ रहे हैं तो मैं क्या करूँ? कहाँ से उसे ठीक कराऊँ? उपकृषि निदेशक से रेनबोन्यूज द्वारा यह पूछे जाने पर कि आपने कितने बार्डों की मरम्मत कराया था और उसकी मरम्मत में क्या खर्च आया था तो उन्होंने साफ कहा कि अब मुझे इतना याद नहीं रहता हैं जो भी जानकारी चाहिए हो आर.टी.आई के माध्यम से ले लो। उन्होंने पत्रकारों को नसीहत देते हुए यह भी कहा कि आज कल के पत्रकारों को बात करने की भी तमीज नहीं है, मैं भी पत्रकारिता कर चुका हूँ। अपने जीवन की शुरूआत मैंने पत्रकारिता से ही किया था, शुरूआती दौर में मैं कई ब्राण्डेड अखबारों में सम्पादक रह चुका हूँ। उनकी इस वार्ता के दौरान उनके चैम्बर में हाँ में हाँ मिलाने वाले कुछ लोग पहले से ही बैठे थे और चाय की चुस्कियाँ ले रहे थे, रेनबो नेटवर्क से जुड़े हुए दो प्रतिनिधि जब उनके चैम्बर मे ंपहुँचे तो उन्होंने घण्टी बजाकर आवभगत के लिए दो कप चाय मंगवाया।
रेनबोन्यूज नेटवर्क के पत्रकारद्वय उनके चैम्बर में यही जानने के लिए पहुँचे थे कि हजारों रूपये की लागत से बने लोहे के दो दर्जन से अधिक बोर्ड विलुप्त क्यों हो गये और शेष बचे हुए दुर्दशाग्रस्त क्यों हैं? चूँकि इस बावत रेनबोन्यूज से सम्बद्ध वरिष्ठ पत्रकार भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी ने उपनिदेशक कृषि से दूरभाषीय वार्ता किया था तो विनोद कुमार ने इसे नागवार मानते हुए फोन काट दिया था। फिर किसी दूसरे नम्बर से कॉल करके पूछा कि आपकी क्या पीड़ा है बताइए उसका निराकरण मैं अवश्य ही करूँगा। जिले के जीवित बचे वरिष्ठ पत्रकारों में शुमार गर्गवंशी को उनकी बात सुनकर चक्कर आ गया और उन्होंने उपनिदेशक कृषि से फोन पर कहा कि कृपा कर अब आप फोन काट दें। क्योंकि मेरी व्यक्तिगत कोई ऐसी पीड़ा नहीं है जो आपके स्तर पर दूर की जा सके। भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी को बड़ा आश्चर्य हुआ कि जिले का उपकृषि निदेशक अब मीडिया परसन्स के प्रश्नों का सीधा जवाब न देकर उसे पत्रकारों की पीड़ा कहकर दूर करने की बात करते हैं।
उनके इस तरह की बात करने के लहजे से पत्रकार गर्गवंशी को आभास हुआ कि ये किसी सर्वोच्च प्रशासनिक अधिकारी की तरह जनता दर्शन में बैठे फरियादियोें की फरियाद सुन रहे हैं, और पत्रकार को भी फरियादी ही समझ रहे हैं। आश्चर्य घोर आश्चर्य अपने को पूर्व सम्पादक कहने वाला पढ़ा लिखा व्यक्ति जब मीडिया से इस तरह पेश आ रहा है तो साधारण किसानों के साथ कैसा व्यवहार करता होगा? यह आलेख इस लिए नहीं प्रस्तुत किया जा रहा है कि उपनिदेशक कृषि अम्बेडकरनगर ने ऐसा जघन्य कृत्य किया है जो दण्डनीय अपराध की श्रेणी में आता हो और उन्हें उसका दण्ड मिलना चाहिए। इस आलेख में अक्षरशः वहीं लिखा गया है जैसा डॉ. विनोद कुमार शर्मा उपकृषि निदेशक द्वारा रेनबोन्यूज के पत्रकारों से वार्ता की गई। उम्मीद की जा सकती है कि इस आलेख के प्रकाशन उपरान्त डॉ. विनोद कुमार शर्मा उप कृषि निदेशक अम्बेडकरनगर को अपनी गलती का एहसास हो और भविष्य में वे मीडिया परसन ही नहीं जिले के किसानों और हर आम-खास से उनका ऐटीट्यूट बदल जाए। यह आलेख न काहू से दोस्ती न काहू से बैर और बिना किसी पूर्वाग्रह के पाठकों और सर्वसाधारण के सम्मुख प्रस्तुत किया जा रहा है।
रेनबोन्यूज ने इतना ही पूछा था कि कृषि भवन के मुख्य द्वार के दायें-बायें किसानों की जानकारी के लिए लगाये गये बोर्ड जो आधे से ज्यादा गायब हो चुके हैं और शेष नालियों में गिरे-पड़े सड़ रहे हैं, उनकी ऐसी दशा क्यों? इस पर वे तमतमा उठे और बोले यह सब विस्तृत रूप से जनसूचना अधिकार के माध्यम से ही जाना जा सकता है। कितनी लागत, कितना भुगतान और किस मद से उन बोर्ड/होर्डिंग्स का निर्माण हुआ था के उत्तर में उपकृषि निदेशक अम्बेडकरनगर ने कहा कि जो पहले से पुराने बोर्ड थे उन्हीं की मरम्मत व पेन्ट करवाकर गड़वा दिया गया था।
इन बोर्डों को बनवाने के लिए कोई बजट नहीं आया था। इसे मैंने स्वेच्छा से किसानों की जानकारी के लिए बनवाकर लगवा दिया था। सिर्फ पेन्टिंग का पैसा मिला था, बाकी आज तक पेमेन्ट नहीं हो सका है। अब वे सड़ रहे हैं तो मैं क्या करूँ? कहाँ से उसे ठीक कराऊँ? उपकृषि निदेशक से रेनबोन्यूज द्वारा यह पूछे जाने पर कि आपने कितने बार्डों की मरम्मत कराया था और उसकी मरम्मत में क्या खर्च आया था तो उन्होंने साफ कहा कि अब मुझे इतना याद नहीं रहता हैं जो भी जानकारी चाहिए हो आर.टी.आई के माध्यम से ले लो। उन्होंने पत्रकारों को नसीहत देते हुए यह भी कहा कि आज कल के पत्रकारों को बात करने की भी तमीज नहीं है, मैं भी पत्रकारिता कर चुका हूँ। अपने जीवन की शुरूआत मैंने पत्रकारिता से ही किया था, शुरूआती दौर में मैं कई ब्राण्डेड अखबारों में सम्पादक रह चुका हूँ। उनकी इस वार्ता के दौरान उनके चैम्बर में हाँ में हाँ मिलाने वाले कुछ लोग पहले से ही बैठे थे और चाय की चुस्कियाँ ले रहे थे, रेनबो नेटवर्क से जुड़े हुए दो प्रतिनिधि जब उनके चैम्बर मे ंपहुँचे तो उन्होंने घण्टी बजाकर आवभगत के लिए दो कप चाय मंगवाया।
रेनबोन्यूज नेटवर्क के पत्रकारद्वय उनके चैम्बर में यही जानने के लिए पहुँचे थे कि हजारों रूपये की लागत से बने लोहे के दो दर्जन से अधिक बोर्ड विलुप्त क्यों हो गये और शेष बचे हुए दुर्दशाग्रस्त क्यों हैं? चूँकि इस बावत रेनबोन्यूज से सम्बद्ध वरिष्ठ पत्रकार भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी ने उपनिदेशक कृषि से दूरभाषीय वार्ता किया था तो विनोद कुमार ने इसे नागवार मानते हुए फोन काट दिया था। फिर किसी दूसरे नम्बर से कॉल करके पूछा कि आपकी क्या पीड़ा है बताइए उसका निराकरण मैं अवश्य ही करूँगा। जिले के जीवित बचे वरिष्ठ पत्रकारों में शुमार गर्गवंशी को उनकी बात सुनकर चक्कर आ गया और उन्होंने उपनिदेशक कृषि से फोन पर कहा कि कृपा कर अब आप फोन काट दें। क्योंकि मेरी व्यक्तिगत कोई ऐसी पीड़ा नहीं है जो आपके स्तर पर दूर की जा सके। भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी को बड़ा आश्चर्य हुआ कि जिले का उपकृषि निदेशक अब मीडिया परसन्स के प्रश्नों का सीधा जवाब न देकर उसे पत्रकारों की पीड़ा कहकर दूर करने की बात करते हैं।
उनके इस तरह की बात करने के लहजे से पत्रकार गर्गवंशी को आभास हुआ कि ये किसी सर्वोच्च प्रशासनिक अधिकारी की तरह जनता दर्शन में बैठे फरियादियोें की फरियाद सुन रहे हैं, और पत्रकार को भी फरियादी ही समझ रहे हैं। आश्चर्य घोर आश्चर्य अपने को पूर्व सम्पादक कहने वाला पढ़ा लिखा व्यक्ति जब मीडिया से इस तरह पेश आ रहा है तो साधारण किसानों के साथ कैसा व्यवहार करता होगा? यह आलेख इस लिए नहीं प्रस्तुत किया जा रहा है कि उपनिदेशक कृषि अम्बेडकरनगर ने ऐसा जघन्य कृत्य किया है जो दण्डनीय अपराध की श्रेणी में आता हो और उन्हें उसका दण्ड मिलना चाहिए। इस आलेख में अक्षरशः वहीं लिखा गया है जैसा डॉ. विनोद कुमार शर्मा उपकृषि निदेशक द्वारा रेनबोन्यूज के पत्रकारों से वार्ता की गई। उम्मीद की जा सकती है कि इस आलेख के प्रकाशन उपरान्त डॉ. विनोद कुमार शर्मा उप कृषि निदेशक अम्बेडकरनगर को अपनी गलती का एहसास हो और भविष्य में वे मीडिया परसन ही नहीं जिले के किसानों और हर आम-खास से उनका ऐटीट्यूट बदल जाए। यह आलेख न काहू से दोस्ती न काहू से बैर और बिना किसी पूर्वाग्रह के पाठकों और सर्वसाधारण के सम्मुख प्रस्तुत किया जा रहा है।
-Rainbow News Network
अम्बेडकरनगर के पत्रकारों और अन्य लोगों को फोन पर बात करने की तमीज ही नहीं : उप कृषि निदेशक
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