आधुनिक तकनीक के माध्यम से आम आवाम तक जानकारियां पहुंचाने की इन्द्रधनुषीय कल्पना तार-तार होने लगी है। बेव साइट के माध्यमों से प्रमाणित और त्वरित सूचनायें पहुंचाने के नाम पर लगे भारी भरकम अमले की मनमानियां नित नये आकार ले रहीं है। सरकारी तंत्र से लेकर निजी इकाइयों तक ने साइबर क्रांति में भागीदारी दर्ज करके सामयिक प्रतिस्पर्धा में स्थान सुनिश्चित तो कर लिया परन्तु उसे निरंतर अपडेट न करने से भ्रामक स्थिति भी निर्मित कर दी है। अधिकांश बेव साइट अपडेट के अभाव में पुरानी एवं अप्रासांगिक हो चुकी सूचनायें ही प्रदर्शित कर रहीं हैं। जहां रेलवे की साइट में ‘सुविधा’ ट्रेनों के किराये पर क्लिक करने पर सामान्य एक्सप्रेस गाडी का किराया दिखाया जाता है जबकि बुकिंग के दौरान उससे कहीं अधिक वसूला जाता है।
इसी तरह आधी-अधूरी जानकारियां प्रस्तुत करना एक नया फैशन बनता जा रहा है। नागरिकों को सम्पूर्ण स्थिति से अवगत करने के लिए पारदर्शी व्यवस्था को धनात्मक मानसिकता से लागू करना होगा। मात्र औपचारिकताओं की पूर्ति के लिए हो रहे इस कार्य में तंत्र की एक बडी धनराशि स्वाहा की जा रही है। प्रत्येक कमी, गलती और अनियमितता को ‘तकनीकी खराबी’ नामक कवच से आच्छादित कर दिया जाता है। त्रुटियों को पैचीदगी भरी तकनीकी भाषा में परिभाषित करके मनमानियों पर पर्दा डालकर मौज मनाने का दौर दिन दुगुना, रात चौगुना की कहावत को चरितार्थ करने में लगा है। जन साधारण के लिए तकनीकी भाषा अनपढ की चिट्ठी से अधिक महात्व नहीं रखती।
इसे यूं भी समझा जा सकता हैं कि जब स्वाधीनता ने दस्तक दी तो उसे अंग्रेजी में संविधान लिखकर कैद कर दिया गया ताकि आम नागरिक की पहुंच से दूर रहकर चन्द अंग्रेजी ज्ञाताओं का परचम फहराता रहे। तब और अब में अगर बदला है तो केवल अनियमितताओं, अवैध कृत्यों और मनमानियों को छुपाने का ढंग। पहले रिकार्ड रूम में आग लग जाती थी या बरसात का पानी भर जाता था और अब साफ्टवेयर करेप्ट हो जाता है या साइट को हैक कर लिया जाता है। आम आवाम को व्यवस्था से जुडी योजनाओं, स्थितियों और परिणामों से दूर रखने की अप्रत्यक्ष मंशा को पूरा करने के लिए सकारात्मक प्रत्यक्ष उद्देश्यों को ढिंढोरा पीटा जाता है।
दुनिया के साथ चलने के नाम पर भेड चाल को आदर्श बनाना कदापि उचित नहीं है। जब तक बहानों को दरकिनार करके अप्रत्यक्ष मंशा का विलय प्रत्यक्ष उद्देश्य में नहीं जाता तब तक अंग्रेजों की गुलामी का हस्तांतरण होकर नये शासकों को मिले साम्राज्य का परिवर्तन वास्तविक लोकतांत्रिक इकाई में होना सम्भव नहीं दिखता। फिलहाल इतना ही, नवप्रभात पर रेखाकिंत किये जाने योग्य एक नये मुद्दे के साथ फिर मिलेंगे। तब तक के लिए अनुमति दीजिये।
-रवीन्द्र अरजरिया
साइबर युग में अनियमितताओं के बदलते कवच
Reviewed by rainbownewsexpress
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12:47:00 pm
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