नियमों के मुंह पर तमाचे जड रहीं है अवैध उत्खनन में लगी मशीनें

-रवीन्द्र अरजरिया/ देश के अधिकांश भागों में सूखे का प्रकोप चरम सीमा पर दिखने लगा है। भूगर्भीय जल स्तर को बचाये रखने के लिए नये नलकूपों के उत्खनन से लेकर पानी की अनावश्यक खपत पर प्रतिबंध लगा दिया है जिसका उलंघन करने वालों के विरूद्ध दण्डात्मक कार्रवाही का प्राविधान भी किया गया है। अत्याधिक आवश्यकता पडने पर विशेष अनुमति लेने की व्यवस्था भी सुनिश्चित की गयी है ताकि विकराल होती परिस्थितियों से निपटा जा सके। सारा ताना-बाना कागजों पर बुना गया और उसे कल्पना में चरितार्थ भी किया जाने लगा। वास्तविक बिलकुल विपरीत है। दक्षिण भारत से नलकूप खनन की भारी भरकम मशीनें मगवाकर सूखाग्रस्त क्षेत्रों में मनमाने दामों पर बोरिंग का धंधा खूब फलफूल रहा है। अवैध उत्खनन में लगी बोरिंग मशीनों की कानफोडू आवाजें, नियमों के मुंह पर तमाचे जड रहीं हैं और शासन-प्रशासन की कुंभकरणी नींद टूटने का नाम ही नहीं ले रही। किन्ही ‘खास कारणों’ से गंधारी बना तंत्र सब कुछ अपनी आंखों के सामने घटित होता देखने के लिए बाध्य है। यह ‘खास कारण’ राजनैतिक दबाव, व्यक्तिगत स्वार्थ या निजी संबंधों जैसे तथ्यों के मध्य परिभाषित होते देखा जा सकते हैं। जनहित से लेकर व्यवस्था के अनुशासन तक के मायने कहीं खो से गये हैं। लोक-लुभावन योजनाओं के प्रमाणित अनुपालन की दम धरातल पर आकर टूट जाती है, बचते हैं तो केवल कागजी खानापूर्ति के जीवित दस्तावेज। परिणामों के आइने में स्वर्णिम आभा से युक्त मृगमारीचिका के दिग्दर्शन करने वाले हवा में सुखद वर्तमान से लेकर सुखमय भविष्य तक के कीर्तिमान गढने में खासे माहिर हैं। जलापूर्ति के लातूर प्रकरण पर तो श्रेय लेने के लिए राजनैतिक दलों से लेकर समाज सेवियों तक में अघोषित प्रतिस्पर्धा होने लगी थी। सूखे पर जहां राजनैतिक दंगल हांकने वाले बदन पर सुविधाओं के दिखावटी तेल पोते घूम रहे हैं वहीं उन्हें चुनौती देने वाले नये-नये हथकण्डे आजमाने की फिराक में है। सूखे से प्रभावित लोगों के हितों पर पहरेदारी करने के स्थान पर सभी को अपने पौ-बारह करने की पडी है। फिलहाल इतना ही, नवप्रभात पर रेखाकिंत किये जाने योग्य एक नये मुद्दे के साथ फिर मिलेंगे। तब तक के लिए अनुमति दीजिये। 
-रवीन्द्र अरजरिया
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