सही मायनों में महिलाएं होती है सही राजनेता

हमारे देश में आज राजनीति करने वाली महिला राजनेताओं को उंगलियों में गिना जा सकता है। लेकिन इन राजनेताओं की संख्या कम होने के बाद भी ये राजनीति में आने के किसी भी मौके को नही खोने देती। इस देश में महिला राजनेता विवादों में कम फसती है, अगर फसती भी है तो उसका पूरी ताकत से सामना करती है। यह देखने में आया है कि जहां पुरूष राजनीतिज्ञ अक्सर अपने हितों और लाभों को देखते हुए कोई निर्णय करते हैं, वहीं इसके उलट महिला राजनीतिज्ञ अपने मूल्यों पर अधिक दृढ़ रहती हैं। यह भी सच है कि पुरूष सत्तात्मक पार्टियों में महिला राजनेता को औजार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है और फिर उसका योगदान भुला कर उसे किनारे कर दिया जाता है। लेकिन फिर भी महिला राजनीतिज्ञ लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचने में सफल हैं और पसंद की जाती हैं। सवाल है कि महिलाएं बेहतर राजनीतिज्ञ क्यों होती हैं? महिलाएं बेहतर मैनेजर होती हैं, उन्हें घर चलाने का तजुर्बा होता है। वे एक साथ कई काम पूरी दक्षता के साथ कर सकती हैं। उन पर पूरा ध्यान रख सकती हैं। उनको इसकी आदत होती है। वे चीजों को मैनेज करने में लोगों की मदद करती हैं। यदि जरूरत हो, तो वे पूरा ध्यान एक काम में लगा सकती हैं। फोकसिंग की योग्यता महिलाओं में होती है। इसलिए जब महिलाएं राजनीति में उतरती हैं, तो अपनी इन सभी योग्यताओं के बल पर बार-बार बेहतर सिद्ध होती हैं। वे पुरूषों जितनी भ्रष्ट नहीं होती हैं। वे मन से जिम्मेदारी को महसूस करती हैं और विश्वास करती हैं कि चीजें सही दिशा में निर्धारित होनी चाहिए। इसलिए वे काम उसी हिसाब से करती हैं, जैसा नजरिया उसके प्रति रखती हैं। वे ये कभी नहीं सोचतीं कि इसमें मेरा क्या फायदा है। वे जो काम लेती हैं, पूरे मनोयोग से करती हैं। वे पूरी तरह सोच-समझ कर निर्णय लेती हैं कि जो काम वे करेंगी उसका नतीजा क्या होगा? क्योंकि वे जानती हैं कि लोग उनके कामों में दोष निकालने, उनके पैरों के नीचे से जमीन खींचने के लिए तैयार बैठे हैं। वे असफल होना नहीं चाहतीं, इसलिए जो भी काम करती हैं, उसके परिणामों के बारे में बारीकी से सोच-समझ लेती हैं। उनकी कोशिश होती है कि उनके काम में कोई दोष ना निकाल सके। उदाहरण के लिए सोनिया गांधी राजनीतिज्ञ नहीं थीं, लेकिन बाद में उन्होंने राजनीति सीखी। पहले तो वे इस क्षेत्र में आने को राजी नहीं थीं। उन्होंने वक्त पडऩे पर बड़ी दूरदर्शिता का परिचय दिया। वे जानती थीं कि यदि वे प्रधानमंत्री पद के लिए हां करेंगी, तो उनका बहुत विरोध होगा, पार्टी को नुकसान पहुंचेगा और जनता उन्हें पद लोलुप समझेगी। उनकी जान का खतरा भी बना रहेगा। यदि वे पद का त्याग करेंगी, तो इससे उनकी छवि निखरेगी। हर नतीजा सोच कर उन्होंने कदम उठाया और आज उनकी वाह-वाह हो रही है। महिलाएं बेहतर राजनीतिज्ञ हो सकती हैं, लेकिन उन्हें प्राय: राजनीति से दूर रखा जाता है। उनके मन में यह डर बिठा दिया जाता है कि राजनीति उनके बस की बात नहीं है, जो गलत है। महिलाएं पुरूषों से ज्यादा संवेदनशील होती हैं। बच्चों के प्रति उनमें लगाव होता है। देश में बच्चों की तमाम समस्याएं हैं, जिन्हें महिला राजनीतिज्ञ सुलझा सकती हैं। इसके अलावा समाज के दुख-दर्द दूर करने में भी उनकी भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है। उनमें राजनीति के प्रति रूझान व आत्मविश्वास पैदा करने के लिए आरक्षण जरूरी है। जब राजनीति उनके लिए सहज रूप से उपलब्ध हो जाएगी, तो वे शोषण से खुद को सुरक्षित रख पाएंगी। आरक्षण उनका हक होगा, तो वे पीछे नहीं हटेंगी। राजनीति के जरिए महिलाएं समाज को बहुत समृद्ध कर सकती हैं। बेहतर राजनीतिज्ञ होना स्त्री-पुरूष की अपनी काबलियत पर निर्भर करता है। पुरूष भी बेहतर राजनीतिज्ञ हो सकता है और स्त्री भी। निर्भर करता है कि वे जनता के दुख-दर्द के प्रति कितने संवेदनशील होते हैं। वहीं राजनीति में कुछ महिलाओं की हर तरह की जहनियत उभर कर सामने आती है। शहरी महिला राजनीतिज्ञों की तुलना में गांव-कस्बों की राजनीति में आने वाली महिलाओं की डगर ज्यादा मुश्किल होती है। उनको ज्यादा बलिदान करना होता है। उन्हें घर-परिवार, सास-ससुर की पूरी फिक्र रखनी होती है। समाज-पंचायत सबका ख्याल करना है। कार्यक्षेत्र में देर हो जाए, तो देर कहां रूकें, इस दिक्कत का सामना करना पड़ता है। इसके बावजूद वे बहुत संवेदनशील, कर्मठ और फैसले लेने वाली साबित हो रही हैं।
-मनीष तोमर
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