‘‘राजनीति घर-घर घुसी,कर डाला विखराव।
टुकड़ों में आगंन बटा, किए दिलों में घांव।।’’
आप सबसे माफी का तलबगार हू। सोचता हू अपने कटु शब्दों से आपके दिल पर चोट नही पहुंचाए। पर क्या करे, मन-मस्तिष्क में तैर रहे शब्द को रोक नही पाता हू और दिल की भड़ास खुद-ब-खुद कलम के माध्यम से कागज पर उतर जाते है। एक अजीबो-गरीब सच्ची घटना आपसें सेयर करने का दिल चाहता है। शायद आपकों बकवाश लगें। लेकिन यह बकवाश नही है। हो सकता है कि इसें पढ़नें के बाद आप सोचने पर विवश हो जाये। हो सकता है इसें पढ़कर आपका सिर दर्द से बोझिल हो उठे। वों कहते है कि ‘जों चीज बकवाश लगें उस पर उतना ही ज्यादें विचार करना चाहिए, शायद कुछ मिल जाये। यह इत्तेफाक कहिए कि इस घटना का मै चश्मदीद गवाह हू। घटना यह होली के दिन की है काफी देर तक मै घटना पर मंथन करता रहा। आठ वर्ष के बालक की बातों ने मुझे इतना झकझोर दिया कि वह दृश्य मेरे आखों के सामने ऐसे तैरने लगने लगता है जैसें कुछ पल पहले की बात हो।
‘‘नेता खड़ें बजार में माइक पकड़े रेंक।
विरोधी को दुष्ट कहे, किन्तु स्वयं को नेक।।’’
बीते दिनो होली की शाम अपने मित्र के घर पर था। हम दोनों आपस में एक गम्भीर विषय पर चर्चा कर रहे थें तभी मित्र के कुलदीपक आठ वर्षीय शशांक और सात वर्षीय मोहित हाथ में बैट-बाल लेकर मेरे समीप आयें और बड़े अदब से मेरे पांव छूकर बाहर क्रिकेट खेलने चले गये। मैनें दोनों बच्चों के सिर पर हाथ फेरा अभी उनका हाल चाल पूछने ही वाला था कि वह दोनों आगें बढ़ गये। फिर क्या। मै अपने मित्र के साथ फिर बातों में मशगूल हो गया। तभी घर में से चाय आया गया, चाय की चुस्की के साथ हम लोगों की बातों का सिलसिला जारी रहा। अभी चाय आधी ही खत्म हुई थी कि मित्र का छोटा बेटा मोहित रोते हुए हम लोगों के पास आया। मित्र ने मोहित से पूछा-क्या हुआ, क्यों रो रहे हों? मोहित रोते हुए कहा कि ‘भईया’ ने मारा है। शायद मोहित को तेज चोट लगी हुई थी इस लिए वह चुप होने का नाम ही नही ले रहा था। हम दोनों उसे चुप करा ही रहे थे कि इसी दरमियान शशांक भी वहा गया। मैने शंशाक से पूछा-बेटा तुमने अपने भाई क्यों मारा है? वह तुमसे छोटा है न। शशांक ने बेबाक जबाब दिया ‘अंकल इसने मुझे गाली दिया है। फिर मैने पूछा क्या कहा है, शंशाक ने फिर उसी अन्दाज में जबाब दिया कि ‘नेता’ कहा है। मै सोच में पड़ गया। यह बच्चा क्या बोल रहा है। खुद को सम्भालते हुए हमने कहां बेटा इसमें क्या बुराई है,यह तो कोई गाली नही है। शंशाक खामोश रहा। इतनें में मोहित रोते हुए कहा कहेगें नेता,तुम नेता बनते हो । तभी शशाक आग-बबुला हो गया ‘‘ पापा समझा दो इसे गाली मत दे हमको। मित्र ने किसी तरह से समझा-बुझाकर दोनों को शान्त किया। मै इस घटना को लेकर सोच में डूब गया। माथें पर बल डाल रहा था आखिर इस आठ वर्ष के बच्चें को ‘नेता’ शब्द से इतनी घृणा और चिढ़़ क्यों है। मेरी खामोशी को मेरे दोस्त ने तोड़ते हुए कहा किस सोच में डूब गये। मुझसे रहा नही गया। मैने जिज्ञासावश कहा ‘यह क्या यार तुम्हारे बेटें को किसने पढ़या है कि ‘नेता’ गाली है। मित्र ने कहा कि पता नही क्यों वह नेता शब्द से इतना चिड़ता है। खैर उसके बाद हम कुछ देर तक अन्य मुद्दों पर चर्चा करते रहे फिर उससे विदा लेकर अपनी मंजिल की ओर प्रस्थान कर दिये। रास्ते भर शशांक की बातें मेंरें मन-मस्तिष्क में हिलोरे मारती रही। रात भर उस मासूम बच्चे की बातो पर शोध करता रहा लेकिन अपने खुद के नतीजे से मै सन्तुष्ट नही हुआ। दुसरे दिन मै शशाक से मिलने के लिए फिर अपनें मित्र के घर गया,सयोग से मित्र और उसका बड़ा बेटा शंशाक दोनों घर पर मौजूद थे। मित्र से औपचारिक मुलाकात करने के बाद मै शशांक को लेकर बाहर लान में आ गया। कुछ देर तक इधर-उधर और उसकी पढ़ाई की बाते करने के बाद मैने पूछा बेटा ये बताओं तुम्हे नेता शब्द से इतनी चीढ़ क्यों है? अभी मेरी बात खत्म भी नही हुई थी कि शशांक बीच में ही बोल पड़ा। अंकल नेता कहकर गाली मत दीजिए। मैनें कहा किसने तुमसे कहा है कि "नेता " गाली है। जानते है उस बच्चे ने क्या कहा। उसकी बाते सुनकर मै हैरान हो गया,सोचता हू इस बच्चे की सोच तो आज के युवा पीढ़ी में होनी चाहिए। निश्चित तौर पर जब आप शशाकं की बात सुने होते तो आप भी मेरी तरह हैरान हो उठते। शशाक कठोर शब्दों में मुझसे कह रहा था जब देश के नेता ही नेताजी सुभाष चन्द बोस को आतंकबादी मानते है, सत्ता हासिल करने के लिए हमारे देश के नेताओं ने अग्रेजो से मिलकर भारत माॅं को स्वतंत्र कराने वाले क्रान्तिकारियों को आतंकवादी का दर्जा दिये है। इस लिए मुझे नेताओं से घृणा होती उनसे घिन्न आती है। उस बच्चे की वाणी सुनकर मै खुद हस्तप्रस्त रह गया। उस बच्चे ने मुझसे सवाल करते हुए कहा अंकल ये बताये देश को आजाद हुए साठ साल से अधिक समय हो गया क्या आज तक अपने देश के किसी नेता ने सुभाष चन्द बोस एवं अन्य क्रान्तिकारियों के माथे पर लगा आतंकवाद का बदनुमा दाग को मिटाने के लिए कोई पहल किया है। जानते है उस बच्चे ने मुझसे एक ऐसा सवाल किया कि मै निरूउत्तर हो गया, मेरे पास उसके सावाल का कोई जबाब नही था। उस मासूम बच्चे का सवाल मै आपसे और आज के युवा पीढ़ी से पूछता हू। सुभाष चन्द्र बोस और अन्य क्रान्तिकारियों के माथे पर लगा आतकवाद का दाग कब मिटेगा? कब उन्हे विश्वस्तर सच्चा देशभक्त होने का गौरव प्राप्त होगा? अगर आपके पास कोई जबाब हो तो मुझे भी बताये ताकि मै शशांक को जबाब दे सकू। अभी तो गनीमत है कि सिर्फ एक शशांक को जबाब देना है आनें वाले दिनों हम हिन्दवासियों को लाखों,कराड़ों शशांक द्वारा पूछे गये इस सवाल को जबाब देने के लिए तैयार रहना होगा। नही तो शशाकं जैसे तमाम शंशाक के कानों से होकर जब ‘नेता’ शब्द की ध्वनि गुजरेगी तो वह पलट कर कहेगा ‘‘ गाली मत देना।’’
‘‘ सत्ता की भूख ने बेच दिया आदर्श।
सिसक रहा है आजकल अपना भारतवर्ष।।’’
!! जय हिन्द, जय मा भारती !!
टुकड़ों में आगंन बटा, किए दिलों में घांव।।’’
आप सबसे माफी का तलबगार हू। सोचता हू अपने कटु शब्दों से आपके दिल पर चोट नही पहुंचाए। पर क्या करे, मन-मस्तिष्क में तैर रहे शब्द को रोक नही पाता हू और दिल की भड़ास खुद-ब-खुद कलम के माध्यम से कागज पर उतर जाते है। एक अजीबो-गरीब सच्ची घटना आपसें सेयर करने का दिल चाहता है। शायद आपकों बकवाश लगें। लेकिन यह बकवाश नही है। हो सकता है कि इसें पढ़नें के बाद आप सोचने पर विवश हो जाये। हो सकता है इसें पढ़कर आपका सिर दर्द से बोझिल हो उठे। वों कहते है कि ‘जों चीज बकवाश लगें उस पर उतना ही ज्यादें विचार करना चाहिए, शायद कुछ मिल जाये। यह इत्तेफाक कहिए कि इस घटना का मै चश्मदीद गवाह हू। घटना यह होली के दिन की है काफी देर तक मै घटना पर मंथन करता रहा। आठ वर्ष के बालक की बातों ने मुझे इतना झकझोर दिया कि वह दृश्य मेरे आखों के सामने ऐसे तैरने लगने लगता है जैसें कुछ पल पहले की बात हो।
‘‘नेता खड़ें बजार में माइक पकड़े रेंक।
विरोधी को दुष्ट कहे, किन्तु स्वयं को नेक।।’’
बीते दिनो होली की शाम अपने मित्र के घर पर था। हम दोनों आपस में एक गम्भीर विषय पर चर्चा कर रहे थें तभी मित्र के कुलदीपक आठ वर्षीय शशांक और सात वर्षीय मोहित हाथ में बैट-बाल लेकर मेरे समीप आयें और बड़े अदब से मेरे पांव छूकर बाहर क्रिकेट खेलने चले गये। मैनें दोनों बच्चों के सिर पर हाथ फेरा अभी उनका हाल चाल पूछने ही वाला था कि वह दोनों आगें बढ़ गये। फिर क्या। मै अपने मित्र के साथ फिर बातों में मशगूल हो गया। तभी घर में से चाय आया गया, चाय की चुस्की के साथ हम लोगों की बातों का सिलसिला जारी रहा। अभी चाय आधी ही खत्म हुई थी कि मित्र का छोटा बेटा मोहित रोते हुए हम लोगों के पास आया। मित्र ने मोहित से पूछा-क्या हुआ, क्यों रो रहे हों? मोहित रोते हुए कहा कि ‘भईया’ ने मारा है। शायद मोहित को तेज चोट लगी हुई थी इस लिए वह चुप होने का नाम ही नही ले रहा था। हम दोनों उसे चुप करा ही रहे थे कि इसी दरमियान शशांक भी वहा गया। मैने शंशाक से पूछा-बेटा तुमने अपने भाई क्यों मारा है? वह तुमसे छोटा है न। शशांक ने बेबाक जबाब दिया ‘अंकल इसने मुझे गाली दिया है। फिर मैने पूछा क्या कहा है, शंशाक ने फिर उसी अन्दाज में जबाब दिया कि ‘नेता’ कहा है। मै सोच में पड़ गया। यह बच्चा क्या बोल रहा है। खुद को सम्भालते हुए हमने कहां बेटा इसमें क्या बुराई है,यह तो कोई गाली नही है। शंशाक खामोश रहा। इतनें में मोहित रोते हुए कहा कहेगें नेता,तुम नेता बनते हो । तभी शशाक आग-बबुला हो गया ‘‘ पापा समझा दो इसे गाली मत दे हमको। मित्र ने किसी तरह से समझा-बुझाकर दोनों को शान्त किया। मै इस घटना को लेकर सोच में डूब गया। माथें पर बल डाल रहा था आखिर इस आठ वर्ष के बच्चें को ‘नेता’ शब्द से इतनी घृणा और चिढ़़ क्यों है। मेरी खामोशी को मेरे दोस्त ने तोड़ते हुए कहा किस सोच में डूब गये। मुझसे रहा नही गया। मैने जिज्ञासावश कहा ‘यह क्या यार तुम्हारे बेटें को किसने पढ़या है कि ‘नेता’ गाली है। मित्र ने कहा कि पता नही क्यों वह नेता शब्द से इतना चिड़ता है। खैर उसके बाद हम कुछ देर तक अन्य मुद्दों पर चर्चा करते रहे फिर उससे विदा लेकर अपनी मंजिल की ओर प्रस्थान कर दिये। रास्ते भर शशांक की बातें मेंरें मन-मस्तिष्क में हिलोरे मारती रही। रात भर उस मासूम बच्चे की बातो पर शोध करता रहा लेकिन अपने खुद के नतीजे से मै सन्तुष्ट नही हुआ। दुसरे दिन मै शशाक से मिलने के लिए फिर अपनें मित्र के घर गया,सयोग से मित्र और उसका बड़ा बेटा शंशाक दोनों घर पर मौजूद थे। मित्र से औपचारिक मुलाकात करने के बाद मै शशांक को लेकर बाहर लान में आ गया। कुछ देर तक इधर-उधर और उसकी पढ़ाई की बाते करने के बाद मैने पूछा बेटा ये बताओं तुम्हे नेता शब्द से इतनी चीढ़ क्यों है? अभी मेरी बात खत्म भी नही हुई थी कि शशांक बीच में ही बोल पड़ा। अंकल नेता कहकर गाली मत दीजिए। मैनें कहा किसने तुमसे कहा है कि "नेता " गाली है। जानते है उस बच्चे ने क्या कहा। उसकी बाते सुनकर मै हैरान हो गया,सोचता हू इस बच्चे की सोच तो आज के युवा पीढ़ी में होनी चाहिए। निश्चित तौर पर जब आप शशाकं की बात सुने होते तो आप भी मेरी तरह हैरान हो उठते। शशाक कठोर शब्दों में मुझसे कह रहा था जब देश के नेता ही नेताजी सुभाष चन्द बोस को आतंकबादी मानते है, सत्ता हासिल करने के लिए हमारे देश के नेताओं ने अग्रेजो से मिलकर भारत माॅं को स्वतंत्र कराने वाले क्रान्तिकारियों को आतंकवादी का दर्जा दिये है। इस लिए मुझे नेताओं से घृणा होती उनसे घिन्न आती है। उस बच्चे की वाणी सुनकर मै खुद हस्तप्रस्त रह गया। उस बच्चे ने मुझसे सवाल करते हुए कहा अंकल ये बताये देश को आजाद हुए साठ साल से अधिक समय हो गया क्या आज तक अपने देश के किसी नेता ने सुभाष चन्द बोस एवं अन्य क्रान्तिकारियों के माथे पर लगा आतंकवाद का बदनुमा दाग को मिटाने के लिए कोई पहल किया है। जानते है उस बच्चे ने मुझसे एक ऐसा सवाल किया कि मै निरूउत्तर हो गया, मेरे पास उसके सावाल का कोई जबाब नही था। उस मासूम बच्चे का सवाल मै आपसे और आज के युवा पीढ़ी से पूछता हू। सुभाष चन्द्र बोस और अन्य क्रान्तिकारियों के माथे पर लगा आतकवाद का दाग कब मिटेगा? कब उन्हे विश्वस्तर सच्चा देशभक्त होने का गौरव प्राप्त होगा? अगर आपके पास कोई जबाब हो तो मुझे भी बताये ताकि मै शशांक को जबाब दे सकू। अभी तो गनीमत है कि सिर्फ एक शशांक को जबाब देना है आनें वाले दिनों हम हिन्दवासियों को लाखों,कराड़ों शशांक द्वारा पूछे गये इस सवाल को जबाब देने के लिए तैयार रहना होगा। नही तो शशाकं जैसे तमाम शंशाक के कानों से होकर जब ‘नेता’ शब्द की ध्वनि गुजरेगी तो वह पलट कर कहेगा ‘‘ गाली मत देना।’’
‘‘ सत्ता की भूख ने बेच दिया आदर्श।
सिसक रहा है आजकल अपना भारतवर्ष।।’’
!! जय हिन्द, जय मा भारती !!
लेखक- संजय चाणक्य
गाली मत देना
Reviewed by rainbownewsexpress
on
9:27:00 pm
Rating:
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें