चोर-पुलिस से एक साथ दोस्ती निभाने की कला


सत्य को परिभाषित करना बेहद कठिन होता है और उससे भी ज्यादा कठिन होता है उसकी व्यवहारिक व्याख्या। जीवन को घुन लगाने वाले पदार्थों को जानने के बाद भी उन्हें उपलब्ध कराना, लोगों को आत्म हत्या के लिए प्रेरित करने जैसा है। मदिरा, तम्बाकू, बीडी, सिगरेट, गुटका, भांग सहित अनगिनत मादक उत्पादनों के निर्माण और बिक्री के लिए वैधानिक अनुमति देने वाला तंत्र जानबूझकर जीवन के साथ खिलवाड करने में जुटा है। इन उत्पादनों के सेवन से होने वाले जानलेवा प्रभावों को वैज्ञानिक अनुसंधानों ने रेखांकित किया। देश-दुनिया में हायतोबा मची। अनेक संस्थाओं और जागरूक नागरिकों द्वारा न केवल तंत्र की आलोचना की गई बल्कि सशक्त विरोध भी दर्ज कराया गया। चोर-पुलिस से एक साथ दोस्ती निभाने की कला में माहिर तंत्र ने तेज होते आन्दोलन को अपने ढंग से ठंडा करने का प्रयास किया। उत्पादनों पर वैधानिक चेतावनी प्रकाशित कराने की अनिवार्यता लागू कर दी गई। लोगों को जागरूक करने के नाम पर एक बडा वजट जारी किया गया। समझाइश शिविरों, चेतना यात्राओं, मद्-निषेद कार्यक्रमों, पत्र-पत्रिकाओं और टीवी पर विज्ञापनों, गोष्ठियों, सेमिनारों, विचार मंथन जैसे कथित आयोजनों के माध्यम से जहरीले पदार्थों का इस्तेमाल न करने की सलाह देकर जहां दिखावे की सरकारी चिन्ता की पूर्णाहुति की जाने लगी वहीं प्राप्त धनराशि के उपयोग की कागजी खानापूर्ति को भी मूर्त रूप दिया जाने लगा। देश को अनुशासन, व्यवस्था और सुरक्षा प्रदान करने वाले ठेकेदारों की इस मानसिकता पर घोर आश्चर्य होता है कि वे इन घातक पदार्थों के निर्माण और बिक्री से होने वाली सरकारी आय से कई गुना अधिक जागरूकता के नाम पर तो खर्च कर रहे हैं किन्तु इन जहर परोसने वाली इकाइयों को प्रतिबंधित करना उचित नहीं मानते। रोग रहना चाहिये तभी तो इलाज के नाम पर पौ-बारह करने का मौका मिलेगा। अगर मर्ज ही खत्म हो गया तो मरीज बनने का क्रम ही रुक जायेगा और फिर अवरुद्ध हो जायेगा लाभ का यह रास्ता। इकाइयां बंद होते ही उत्पादन बंद हो जायेगा। उत्पादन नहीं होगा तो बिक्री भी नहीं होगी और फिर आदी हो चुके लोग चाह कर भी इनका इस्तेमाल नहीं कर सकेंगे। पूर्ति बंद होते ही धीरे-धीरे मांग भी समाप्त हो जाती है, प्रतियोगी परीक्षाओं में कीर्तिमान गढने वाली अफसरशाही से लेकर जनमानस को सीधा प्रभावित करने वाली नेताशाही तक को अच्छी तरह मालूम है यह सिद्धान्त वाक्य परन्तु किन्हीं खास कारणों से उनका अनुपालन सुनिश्चित नहीं किया जा रहा है। व्यक्तिगत से लेकर दलगत हितों तक को साधने के लिए स्वास्थ की कीमत पर किये जाने वाले समझौते कालीदास की डाल बनकर रह गये हैं। फिलहाल इतना ही, नवप्रभात पर रेखाकिंत किये जाने योग्य एक नये मुद्दे के साथ फिर मिलेंगे। तब तक के लिए अनुमति दीजिये।
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