-अवनीश सिंह भदौरिया/ क्या कभी रुकेगी निर्भया कांड जैसी खौफनाक वारदातें? आज भी हामरे देश में इंसानियत को तारतार करती वारदातें वदश्तूर जारी हैं। ऐसे में हम अपनी सुरक्षा की बात करतें हैं तो यह गलत है और यह कहना गलत नहीं होगा। ऐसे वारादातें इंसानियत को झकझोड़ करखने वाली हैं। आज भी हामरे देश मैं ऐसी वारदातें कम होने का नाम नहीं ले रहीं और देखा जाए तो दिन प्रति दिन बढ़ती ही जा रहीं हैं। इसका मु य कारण है कानून। आज कल के लोग कानून को कुछ नहीं समझ रहे हैं। और यही वजह है कि देश आज इन घिनौने अपराधों के तले दवा जा रहा है। आज हैवानियत इतनी बढ़ गई है कि बाप अपनी बेटी से रेप करता है तो भाई अपनी बहन से तो चाचा अपनी भतीजी से और मामा अपनी भांजी से ऐसे माहौल में सुरक्षा पर सवालिया निशान उठना आम बात है। वहीं निर्भया कांड जैसी खौफनाक वारदात सामने आई है उसकी हत्या ने दिसम्बर 2012 में दिल्ली में फिजियोथैरेपी की स्टूडैंट के साथ हुए गैंगरेप की भयानक याद ताजा कर दी है। इस वारदात ने भी पूरे देश को हिलाके रख दिया है। ऐसी वढ़ती वारदातों को सुनकर रूह कांप जाती है। जब किसी की मां या बहन घर से बाहर जाती हैं तो एक डी डर लगा रहता है कि कहीं उनके साथ कुछ गलत ना हो जाए। ऐसी वारदातें हमारे सीने में पर सुई की नौक की तरह चुभती रहेगीं। वहीं एक और दिह देहला देने वाला मामला प्रकास में आया है केरल में लॉ छात्रा से निर्भया जैसी दरिंदगी की वारदात हुई। आज गैंगरेप के बाद मर्डर कर दिया और इतनी हैवानियत से हत्या की कि किसी की भी रूह कांप उठेगी वहीं छात्रा की शरीर पर रेप करने के बाद उसके शरीर पर मिले 30 ज म किये जो कि हैवानियत का जीगता जागता सबूत है। ऐसी वारदातें हमें मानवीयता के दामन पर एक काले धब्बे की तरह हमें मुंह चिढ़ाती रहेगी। इतनी हैवानियत से गैगरेप किया है कि उसकी आंत बाहर निकली मिली इससे यह साफ हो चुका है कि हमारे समाज में आज ऐसे कानून की जरूरत है जो ऐसी वारदात करने वाले हैवानों को १०००, बार नहीं १०००० बार सोचे। ऐसे हैवानों को इस दुनिया में रहना का कोई हक नहीं है। जा इस देश में मुंबई हाई कोर्ट के फैसले का पालन करना चाहिए । वहीं सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई हाई कोर्ट का फैंसला को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था लेकिन आज उसी फैंसले को लागू करने की जरूरत है। वहीं आप को याद हो कि मुंबई हाई कोर्ट ने कहा था कि जो लोग रेप जैसे घिनौने पराध करते हैं उन्हें नपुन्सक बना देना चाहिए, सायद आज हमारे देश में इसी कानून की जरूरत है और इसे सुप्रीम कोर्ट को लागू करना चाहिए। एसी रातें कभी कभी नहीं भुलाई जा सकती है, न कभी उसका कलंक मद्धम पड़ सकता है। उसका बस मातम मनाया जा सकता है। मातम उस व्यवस्था का भी जो उस जुर्म का गवाह बना और जिसके सामने कितनी निर्भयाओं के नसीब में ज़लालत का दर्द लिखा गया। उनकी जि़न्दगी या तो लील ली गई या फिर.. जहन्नुम बना दी गई। निर्भया कांड की हर बरसी पर हम और आप खुद से एक ही सवाल करते हैं कि तब से अब तक बदला क्या? क्या औरतों की सुरक्षा को लेकर वो डर कम हुआ। जिसमें हमें से कइयों को सडक़ों पर उतरने पर मजबूर कर दिया था? क्या उन आशंकाओं में कुछ कमी हुई जो शाम ढ़लते ही उन मां-बाप को घेर लेती हैं जिनकी बेटियां घरों से बाहर निकलती हैं, पढ़ती हैं, काम करती हैं। जवाब है नहीं, बिल्कुल नहीं। न माहौल बदला और न आंकड़े। जस्टिस कमेटी रिपोर्ट राजधानी दिल्ली में 2012 के मुकाबले आगे के सालों में रेप के मामले बढ़े हैं। एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक साल 2012 में जहां बलात्कार के 585 मामले दर्ज किए गए थे, वहीं 2013 में ये सं या बढक़र 1441 हो गई और तो और साल 2014 में ये आंकड़ा 1813 पर जा पहुंचा। इसी साल यानि 2015 में नाबालिग बच्चियों के साथ बलात्कार के मसले ने खूब तूल पकड़ा। केन्द्र सरकार के बीच संवेदना व्यक्त करने और जि़ मेदारियों से पल्ला झाडऩे की होड़ भी दिखी। लेकिन इन सबके बीच सच्चाई ये है कि सरकारें अपने-अपने स्तर पर नाकाम हैं और यही इनकी फितरत है क्योंकि निर्भया कांड बाद भी हालात जस के तस हैं। ताज़ा मामला है केरल में लॉ छात्रा से निर्भया जैसी दरिंदगी की वारदात हुई। ३० साल की छात्रा के साथ हैवानियत की गई और असहनीय पीड़ा के बीच जि़न्दगी की जंग हार गई। चूंकि एक बार फिर से वही सवाल आखें दिखा रहा है। जिसका जवाब निर्भया कांड से अभी तक ढूंड नहीं सके। हमचाहते हैं कि पीडि़त को इंसाफ़ मिले और दूसरा ये कि इस सज़ा से सबक लेकर आगे से कोई और श स उसी अपराध को अंजाम देने से पहले १०००० बार सोचे। यही वजह है कि भारत में बढ़ते बलात्कार के मामलों को हम अक्सर लचर कानून और सज़ा में सुस्ती से जोडक़र देखते हैं। इसलिए ये सवाल डराता है कि अगर निर्भया जैसे चौतरफ़ा चर्चित मामले में भी इंसाफ का इंतज़ार लंबा होता जाए तो उन असं य दूसरे मसलों में त्वरित न्याय की उ मीद कैसे की जा सकती है जो न टीवी-अखबारों में जगह बना पाते हैं, और न जिनकी हमें भनक लगती है। जुवेनाइल जस्टिस बिल पारित होने के वावजूद जा भी हमारे देश में अपराध पर अपराध बढ़ते ही जा रहे हैं। इन पर लगाम कसना और भी मुस्किल होता जा रहा है। कहीं ऐसा ना हो कि अपराध के मामलों में हमारे देश का नाम विख्यात हो जाए और एक समय कहीं ऐसा भी न आए कि लोगों को देश छोडक़र कहीं वाहर रहने जाना पड़े। जहां कुत्सित मानसिकता फलती-फूलती है। व्यवस्था की होगी जहां डर अपराधियों के नहीं बल्कि आम लोगों के ज़हन में है। इसलिए इस जब निर्भया को श्रद्धांजली देने का ख्याल मन में आए तो सोचिएगा ज़रूर कि बेहतर देश और बेहतर दुनिया के निर्माण में योगदान देने के जो रास्ते आपके सामने हैं क्या उसमें से एक रास्ता भी आपने अख्तियार किया है? अगर नहीं तो शुरूआत करिए, यही निर्भयाओं को असली श्रद्धांजली होगी। आज देश इन घिनौनी घटनाओं से ऐसेे दलदल में धसता जा रहा है जहां से निकला नामुम्किन हो जाएगा। हर जगह आज एसी कई निर्भयाओं के लिए इंसाफ मांगते लोग इंसाफ को तरस्ते नजर आ रहे हैं। क्या इन होनहार ३० साल की दलित लॉ स्टूडेंट को भी इंसाफ का दरवाजा खटकाना पड़े या फिर जल्द इंसाफ मिलेगा। उसे अगर जल्द इंसाफ मिले तो यह सभी निर्भओं की जीत होगी अगर नही मिला तो सभी निर्भओं की हार ही नहीं यह हमारे देश के कानून की भी हार होगी।
-अवनीश सिंह भदौरिया
इंसानियत को तारतार करती हैवानियत
Reviewed by rainbownewsexpress
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11:34:00 am
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