प्रिण्ट मीडिया पर भारी पड़ रहा सोशल मीडिया : संतोष गंगेले

-संतोष गंगेले/ पत्रकारिता लोक तंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाने वाला शब्द प्रेस, जो भारतीय प्रजातंत्र का  सजग प्रहरी प्रेस है जो प्रजातंत्र की रक्षा करता आ रहा है। लोकतंत्र का शाब्दिक अर्थ लोगों का शासन, जनता का तंत्र ,, इसकी परिभाषा  के अनुसार यह जनता व्दारा जनता के लिए  जनता का शासन है । लेकिन अलग अलग देशकाल और परिस्थितियों में अलग अलग धारणाओं के प्रयोग से इककी अवधारण कुछ जटि हो गयी है ।
प्राचीन काल से ही लेाक तंत्र के संदर्भ में कई प्रस्ताव रखे गये है । वर्तमान प्रजातंत्र को चार भागों में विभाजित किया जा सकता है जिसमें पहला न्यायपालिका, विधायिका कार्यपालिका, प्रेस, पत्रकारिता, । उन्नीसवी सदी में देश को आजादी दिलाने में प्रिंट  मीडिया की अहम भूमिका रही इसी कारण उसकी आजादी का संबिधान में उच्च स्थान दिया गया है । लेकिन प्रिंट  मीडिया का प्रभाव 1984 तक प्रभावषाली रहा इसी बीच इलेक्ट्रानिक उपकरणों का भारत में प्रवेश  हो जाने के कारण प्रिंट मीडिया के समक्ष अनेक चुनौतियां शुरू हो गई। प्रिंट मीडिया में जो कठिनाईयां  छापा मशीनों के समय थी वह कम जरूर हुई हैं लेकिन प्रिंट मीडिया के लिए  इलैक्ट्रानिकल मीडिया, सोशल मीडिया कम्प्यूटर, इंटरनेट, मोबाईल, फेशबुक, टियुटर, व्हाटसएप, आदि को भी विकासगति में जुड़ जाने के कारण प्रिंट  मीडिया प्रेस (छापा मशीनों) का स्तर कम हो गया ।
प्रिंट मीडिया में जहां  एक अखबार की छपाई के लिए दस व्यक्तियों की आवश्यकता  होती थी आज वह दो व्यक्तियों से अखबार की छपाई व बंडल बांधने  का कार्य हो गया जिससे बेरोजगारी बड़ी तथा रोजगार के अवसर कम हुये । प्रिंट मीडिया का जो व्यापार था वह बर्तमान समय में बहुत की कम रह गया । आम व्यक्ति अपना व्यापार का प्रचार प्रसार, उसकी क्वालटी की जानकारी कम दामों में कम समय में इलेक्ट्रानिकल चैनल, टी व्ही, फेसबुक, व्हाट्यअप आदि के माध्यम से अपनी बात रख एवं कर लेते है जिससे प्रिंट मीडिया का हानि उठानी पड़ रही है ।
प्रिंट मीडिया  में बर्तमान चुनौतिया इस प्रकार से बढ़ती चली जा रही है कि प्रिंट मीडिया से प्रकाशित समाचार पत्रों को प्रतियोगिता की दौड़ में समाचार पत्र, पत्रिकायें, में भौतिकवादी युग की छाया के साथ कार्य करना आवश्यक हो गया है । वर्तमान समय में प्रिंट मीडिया के लिए जो प्रिंटर या छापा मशीने बाजार में आ रही है उनकी लागत पूंजी  दस लाख से दो से तीन करोड़ तक पहुंची  रही है । ऐसे समय में प्रिंट मीडिया से जुड़े संपादक, प्रकाशक मुद्रॅक के सामने आर्थिक संकट आना ही है । इस कारण उद्योग पति या पूँजीपतियों के हाथ में प्रिंट मीडिया का कारोवार सिमट  कर रह गया है ।  प्रिंट मीडिया से प्रकाशित समाचार पत्रों के लिए सुबह से मध्य रात्रि 12 बजे तक की घटनाओं एंव समाचारों के लिए अपने सूत्र विश्वनीयता के साथ खोजना होते है चॅूकि बर्तमान समय में इलेक्ट्रानिक मीडिया इंटरनेट, सोषल मीडिया, व्हाटसअप, टयूटर, यूटयूब  जैसे सूचना संदेश में पल पल की खबरें आम जन तक पहुँच  जाती है ।  वर्तमान  में  व्हाटसअप के माध्यम से पल-पल की खबरों का आदान- प्रदान हो रहा है । लेकिन व्हाटसअप की अधिकांश खबरें काॅपी , पेस्ट होती है जिनमें गलत खबरें या पुरानी पोस्ट की खबरों का संदेश बनाते है ।  उसके बाद भी भी प्रिंट मीडिया को अपनी विश्वनीयता बनाये रखने के लिए समाचारों की तह तक जाने के लिए किसी भी समाचार के पाँच  सूत्र कब, क्यों, कैसे, कौन व कहां प्रश्नवाचक शब्दों  को समाहित करने के बाद ही समाचार का प्रकाशन किया जाता है कम शब्दों में सम्र्पूण सार प्रदान करने के लिए कठिन मेहनत करना होती है ।
समाचार पत्र प्रकाशन के साथ ही पाठ तक समाचार पत्र भेजने के लिए ऐजेन्ट या अपने प्रतिनिधिओं, संवाददाताओं के बीच तालमेल बनाकर सुबह की किरणें निकलने के पूर्व पाठक के हाथ में समाचार पत्र भेजने की व्यवस्था पत्र संपादक या प्रसार व्यवस्थापक को व्यवस्थित करना होती है । समाचार पत्र की अग्रिम राशि  ऐजेन्ट से लेने के बाद ग्राहक से एक माह या दो माह की राशि  बसूली करेन में अनेक कठिनाईयों  होती है ।  समाचार पत्र में प्रकाशित समाचारों में इस बात का भी पूर्ण ध्यान रखना होता है कि जो समाचार प्रकाशित  किया गया है उसकी पूर्ण सत्यता हो । संपादक/ पत्रकार को किसी भी छवि खराब करने का अधिकार नही दिया गया है ।
क्योकि भारतीय प्रेस परिषद के नियम व कानून के साथ समाचार पत्र में किसी भी समाचार की सत्यता न होने पर अपराध की श्रेणी में आकर प्रकाशक, संपादक मुद्रॅक एवं वितरक को दण्ड का भागीदार भी बनाया जा सकता है । भारतीय दंड संहित की धारा 499, 500, 501, 502 के पत्रकार संपादक को सजा का प्रावधान रखा गया है । यदि कोई भी पत्रकार/संपादक/ब्यूरो चीफ ब्लैकमेल की कोशिश  कर जबरन विज्ञापन या राशि मांग  करता है तो उसके विरूध्द अवैद्य बसूली अपराध धारा 384 ता0हि0 का प्रकरण  दर्ज हो सकेगा। सोशल मीडिया पर भी भारत सरकार को अंकुष लगाना चाहिए । भारतीय संसद में इस प्रकार का अध्यादेश  लाना चाहिए जिससे की सोशल मीडिया के व्दारा भ्रामक या साम्प्रदायिकता से भरे संदेशों  का आदान प्रदान करने वालों पर कार्यावाही हो सके।
पत्रकारिता के क्षेत्र में  3 मई विश्व प्रेस दिवस के रूप में पूरे विश्व में पहचाना जाता है। लेख के अनुसार  वर्ष 1993 से  विश्व  प्रेस दिवस मानाया जाने लगा है। भारत की आजादी के बाद 1948 में संविधान के अनच्ुधेंद 19 में मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा में प्रेस की आजादी की अभिव्यक्ति दी गई है । हमें अपने मूल विषय  प्रिंट मीडिया के समक्ष बर्तमान चुनौतिया पर आकर यह बताना होगा कि प्रिंट मीडिया का उदय 17 वी शताब्दी में शुरू  हुआ था उस समय समाचार आदान प्रदान के लिए शासन तंत्र संचालित करने वाले गाँव  आवादी के अंदर डुगडुगी  पिटवाकर या ढोल नकाड़ों के साथ अपनी खबर या संदेश लोगों तक भिवाने का कार्य किया करते थें, 18 वीं षताव्दी में षिला लेख, लेखन व छापा खाना(प्रिंटिंग प्रेस ) का अविष्कार हो चुका था । भारतीय इतिहास के अनुसार भारत में अंग्रेजो के शासन काल में पहिला अखवार 29 जनवरी 1780 को एक अंग्रेज जेम्स आगस्टस हिकी ने निकाला था यह समाचार पत्र साप्ताहिक बंगाल गजट के रूप में प्रकाशित किया था। वर्ष 1849 में गिरीष चन्द्र घोष ने पहला बगला रिकाडर नाम से ऐसा पहला अखवार निकाला जिसका स्वामित्व भारतीय हाथों में था। 1853 में इनका नामा बदल कर हिन्दू पैट्रियट हो गया। सन् 1861 में बम्बई के तीन अखवारों का विलय करके टाइम्स आफ इण्डिया की स्थाना अंग्रेजी हुकुमत के हितों की रक्षा के लिए की गई थी। अंग्रेजी हुकुम के विरूध्द सन् 1857 के आवाज पर सम्पूर्ण भारत में गूंजने लगी तो समाचार पत्रों को सहारा लिया जाने लगा था धीरे धीरे भारत में क्रांति की आवाज उठने लगी जिस कारण अंगेजों ने 1878 में परनाकुलर प्रेस एक्ट बनाया था। ब्रिटिश प्रशासन ने 1924 में मद्रांस में एक शौखिया किया रेडिया क्लब बनाने की अनुमति दी। तीन साल बाद निजी क्षेत्र में ब्राडकास्ट कम्पनी ने मुंबई और कलकत्ता  में नियति रेडियों प्रसारण शुरू किया। बहारदाल औपनिवेशिक सरकार ने 1930 में ब्राडकास्टिंग को अपने हाथ में ले लिया और 1936 में उनका नाम करण-आल इण्डिया रेडिया या आकाशवाणी कर दिया। सबसे पहिले हैदरावाद, त्रावणकोर, मैसूर बड़ोदरा, त्रिवेंद्रम और औरंगावाद जैसी देसी रियासतों में भी प्र्रसार चालू हेा गया।
मेरी नजर में देश को आजाद कराने बाले पत्रकारों के पास आर्थिक धन का आभाव हुआ करता था तथा साधनहीन हुआ करते थें तथा पत्रकार की पहचान पूर्ण रूप से देष एवं समाजसेवा होती थी। देष आजाद होने के बाद सन् 1975 तक के पत्रकारो को मैने देखा कि वह स्वदेशी कपड़ों  के साथ सूती बस्त्र धारण करते थें एक जाकिट हुआ करती थी तथागांधी  छाप छोला एक कापी  या डायरी एक पेन होता था पैदल चलते थें तथा यदि कोई पत्रकार सामर्थ है, तो उसके पास साईकिल हुआ करती थी समाचार भेजने केलिए डाक तार विभाग का ही सहारा हुआ करता था। समाचार भेजने का एक मात्र साधन डाक विभाग हुआ करता था, इसलिए क्षेत्रीय खबरे सप्ताह या हर महीने पढ़ने का मिला करती थी। लेकिन सही सत्य व विश्वास पात्र समाचार हुआ करते थे। कर्मयोगी एवं समाज सुधारक व्यक्ति ही पत्रकारिता के क्षेत्र में अपना जीवन न्यौछावर किया करते है। आजादी के पूर्व एवं वर्तमान पत्रकारिता में जो परिवर्तन हुआ है उसमें भौतिकवादी युग का भी प्रभाव है।  
भारतीय राजनीति में उथल पुथल होने के बाद सन् 1980 से पत्रकारिता में उफान आना शुरू हुआ तथा समाचार पत्रों के प्रकाषन की संख्या में तूफान की तरह विकास हुआ कि देश में सैकड़ों नहीं हजारों समाचार पत्रों का पंजीयन हुआ, प्रत्येक राज्य में सैकड़ों पत्र पत्रिकायें पुस्तके समाचार पत्रों की संख्या में वृद्धि  हुई। प्रत्येक समाचार पत्र के संपादक एवं पत्रकार ने देश प्रेम एवं देश  सेवा का त्याग कर किसी न किसी रूप में धन संग्रह कर अपना वैभव, सम्मान, प्रतिष्ठा पाने केलिए राजनेताओं अधिकारियों कर्मचारियो के सामने कलम को गहने रखने का प्रयास किया जिससे देश में अन्याय अत्याचार, भृष्टाचार बढ़ता गया, सरकारों ने अपनी बात रखने केलिए सूचना तंत्र के नियम व कानून बनाये साथ ही पत्रकारों को अपने पक्ष में रखने केलिए विज्ञापन नीतिओं का निर्धारण किया। जिस कारण समाचार आम जनता के सामने निष्पक्ष व सुलझे नही पहुंच सके।
जो पूंजीपति व राजनीति में दखल रखते थे उन्होने अपने किसी न किसी रूप में समाचार पत्रों पर अधिकार प्राप्त कर लिये तथा अपनी बाप कहने केलिए अपने ही समाचार पत्रों का प्रकाशन कराया। आज देश की पत्रकारिता पूरी तरह पूंजीपतिओं, राजनेताओं के इशारे पर नच रही है ।प्रजातंत्र का चैथा स्तंम्भ कहा जाने वाली पत्रकारिता पूरी तरह से कैद हो चुकी है, विज्ञानिक खोज, भौतिक साधनो के बाद जो स्वस्थ्य एवं निष्पक्ष पत्रकारिता देश के आजाद होने तक होती तो आज देश में इतने बड़े घोटाले न होते, अन्याय व अत्याचार  आंतक न होता, भृष्टाचार की जड़े इतनी मजबूत न होती लेकिन समाचार पत्र का चलाना भी कठिन हो गया है किसी भी लघू समाचार पत्र देनिक हो या साप्ताहिक, पाक्षिक या त्रैमासिक पत्रिका हो सभी को आर्थिक सहयोग की आवश्यकता होती है यदि वह नेताओ सरकार पूंजीपतिओं की चाटूकारिता नहीं  करेगा तो उसका प्रकाशन संभव नही है जो समाचार पत्र दैनिक है और उनके पास करोड़ों रू0 की आय आज विज्ञापन  से ही हो रही है वह किसी भी मुख्यमंत्री या कैबिनेट मंत्री की तरह ही अपना जीवन व्यतीत कर रहे है।
देश व प्रदेश के पत्रकारों में भारत सरकार एंव प्रदेश  सरकारों को विभाजन कर अधिमान्यता का नियम बना दिया है । जिस कारण सरकार व्दारा प्रदान परिचय पत्र के आधार पर ही आप पत्रकार माने जाने लगे है, जो वास्तवितक पत्रकार ग्रामीण कस्बा क्षेत्र के है उन्हे ऐजेन्ट या हाकर  शब्द से ही सम्बोधित किया जाने लगा है, जबकि वास्तविकता से खबर का सूत्रधार ही सही पत्रकार है लेकिन कानून का सम्मान करने वाले भारतीय नागरिक अपनी आवाज को नहीं  उठा पा रहे है । मध्य प्रदेश  के अंदर गणेश शंकर  विद्यार्थी पे्रस क्लब अपनी अलग पहचान बनाकर मानव समाज की सेवा, भारतीय संस्कृति की रक्षा, बच्चों को प्रोत्साहित कर सम्मान पाने वाले व्यक्तियों को मंच पर सम्मान प्रदान कर अपने कर्तव्य या मिशन को पूरा करने में लगा है ।
वर्तमान समय जो भी समाचार पत्रों के संपादक है उन्हे समाचार पत्र चलाने केलिए ऐजेन्सी  देते है ऐजेसी का कार्ड दिया जावें न की उन्हे पत्रकारिता का कार्ड दिया जावे। समाचार पत्रों एवं चैनल के समाचार संवाद एजेंसियों को चाहिये कि वह किसी भी व्यक्ति को संवाददाता या व्यूरो चीफ  नियुक्ति करते समय उसकी भौतिक सत्यापन करना चाहिये तथा नियुक्त के पूर्व सार्वजनिक सूचना प्रसारित की जावें जिससे उसकी चरित्रावली की जानकारी संपादक तक पहुँच  सकती है।
पत्रकारिता एक मिशन है तो संपादक एवं पत्रकारों को भी पत्रकारिता को व्यवसाय न बनाकर उसे समाजसेवा कर्तव्य निष्ठा एवं देश प्रेम की भावना से कार्य करना चाहिए अन्यथा पत्रकारिता को कंलकित करने केलिए पत्रकारिता के क्षेत्र में नही आना चाहिए ।  भारतीय संस्कृति एवं संस्कारों के इतिहास का ज्ञान रखने बाले ही पत्रकारिता को अपना धर्म एवं कर्म समझ कर कार्य करें तो  इस भारत देश  में राम राज्य की कल्पना की जा सकती है अन्यथा कागज का घोड़ा कागजो तक ही सीमित बना रहेगा । भारत  सरकार एवं राज्य सरकारों व्दारा मिलने वाली सुविधाये कुछ ही पत्रकारों को प्राप्त हो जाती है ग्रामीण एवं कस्बाई पत्रकारों की लगातार उपेक्षा होती आ रही है और आज भी हो रही है। जबकि समाचार की नींच कस्बाई पत्रकार ही होते है उनही उपेक्षा नही होनी चाहिये ।  सरकारों को अपनी नीतिओं में परितर्वन करना चाहिये। साथ ही पत्रकारो को कानून का ज्ञान एवं अपने अधिकारों व कर्तव्यों के प्रति भी सचेत होना होगा। आज आजाद भारत के इस गण्तंत्र दिवस पर हम शपथ लेकर संकल्प ले की हम यदि पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्य करेगें तो देश प्रेम देश भक्ति केलिए करेगें, सत्य को उजाकर करेगें। भारत सरकार व्दारा राष्ट्रीय स्तर पर देश महान पत्रकारों के नाम से सम्मान समारोह व पुरस्कार  प्रदान करती आ रही है इसी प्रकार  प्रदेश  सरकारें अपने अपने राज्यों के उन पत्रकारों के नाम से पुरस्कार एंव सम्मान प्रदान करती है जिन्होने देश की आजादी दिलाने में अपने कर्तव्य निष्ठा एवं ईमानदारी से कमल से माध्यम से देश  की जनता को जागरूकता से पत्रकारिता की थी। हमें यह नही भूलना चाहिए कि यदि हम पत्रकार है तो पहिले देश  के नागरिक है। हम आप देश प्रेम से साथ पत्रकारिता करें।
यह लेख 3 मई प्रेस दिवस के अवसर के लिए लिखा गया है इसके लेखक भारत के हिन्दी पत्रकारिता जगत के जुझारू/वरिष्ठ पत्रकार संतोष गंगेले हैं। श्री गंगेले मध्यप्रदेश के छतरपुर जनपद के नवगाँव तहसील के निवासी और गणेश शंकर विद्यार्थ प्रेस क्लब (मध्यप्रदेश के) के अध्यक्ष हैं। इनसे इनके मोबाइल नम्बर- 09893196874 पर सम्पर्क किया जा सकता है।
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1 टिप्पणी:

santoshgangele ने कहा…

सम्मानित संपादक जी सादर नमस्कार , आपने इस लेख को प्रकाशित कर मुझे सम्मान दिया। आपका आभारी हूँ। साथी ही आपकी टीम को धन्यवाद

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