ठाकरे की ठकुरई

विकास कुमार गुप्ता/ महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) के प्रमुख राज ठाकरे ने अपने कार्यकर्ताओं से बुधवार को कहा है कि राज्य में जो नए पंजीकृत रिक्शा ग़ैर मराठी चला रहे हैं उन्हें जला दें. ठाकरे के इस बयान पर सभी पार्टियों की तीखी प्रतिक्रिया सामने आई है. गैर-मराठियों को ऑटो रिक्शा के परमिट मिलने से जुडी राज ठाकरे की टिप्पणियों की आलोचना करते हुए विपक्षी कांग्रेस और राकांपा ने आज उनपर 'घृणा की राजनीति' करने का आरोप लगाया. दिग्विजय सिंह ने बाल ठाकरे के पिता केशवराव ठाकरे की ओर से लिखी गई किताब को आधार बनाकर जो खुलासा किया था उससे ठाकरे परिवार की बोलती कबकी बंद हो जानी चाहिए थी । इस किताब में लिखा गया है कि “उनके पूर्वज मूलत मगध बिहार, से आए हैं। केशव राव ठाकरे ने अपनी आत्मकथा माझी जीवनगाथा प्रबोधंकर के नाम से लिखी थी। यह 1995 में प्रकाशित हुई थी। 
मराठी भाषा की इस पुस्तक में प्रबोधंकर ने लिखा है कि ठाकरे कुल मगध के राजा से त्रस्त होकर पहले भोपाल आया, फिर वहा से काम की तलाश में पुणे में आकर बसा। इसके बाद एक परिवार मुंबई आ गया।” दिग्विजय के इस बयान से ठाकरे परिवार तिलमिला गया था। उद्धव ठाकरे ने तो दिग्विजय को पागल तक कहा था और सिनियर ठाकरे ने इससे आगे जाते हुए दिग्विजय को मुफ्त में नाचने वाले नर्तक भी कहा था। इसपर दिग्विजय ने पलटवार करते हुए कहा था कि मै जब भी सच बोलता हूं और सामने वाले के पास जवाब नहीं होता तब वो ऐसे ही बोलता है। इस विवाद ने एक नये और गंभीर मामलें को जन्म ही नहीं दिया बल्कि ठाकरे परिवार की सोंच पर करारा तमाचा भी जड़ा, जिसपर इन्हें गभीरता से सोंचना चाहिए था। क्यांेकि मुम्बई चाहे जिसकी हो अगर ठाकरे परिवार बिहार से सम्बन्ध रखता है तो उसे अपने ही मुल को धिक्कारने से हजार बार सोचना चाहिए था। 
दिग्विजय ने यह भी साफ किया था कि मुम्बई में पहले सिर्फ मछुआरे रहते थे वर्तमान का मुम्बई बाद का बसा हुआ है और सभी लगभग बाहर कही न कही से आकर ही बसे है। अब जब सच्चाई सामने आ ही गई थी तो ठाकरे परिवार को बेमियादी बयानों से बचते हुए यथार्थ का अनुसरण करना चाहिए था। और यह स्वीकार करना चाहिए था की उनका मुल बिहार का है। इस बयान को न स्वीकारने की स्थिति में प्रश्न उठता है कि क्या बाला साहब ठाकरे के पिता जो लिख गये है वो झूठ है। बिहार और उत्तर भारतीय को लेकर ठाकरे परिवार की दोगली राजनीति नया नहीं है। जब कोई घटना घटित होती है और अगर उत्तर भारतीय के किसी भी व्यक्ति की संलिप्तता उसमें नगण्य परोक्ष, अपरोक्ष रहती है, उसपर ठाकरे परिवार खुलकर बेशर्मी के तोप से गोले बरसाना शुरू कर देता है। 
ठाकरे परिवार हमेशा ही अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक बयानबाजी करते आया है। अगस्‍त, 2015: हिंदी न्यूज चैनलों को भी धमकाते हुए कहा कि मुझे खलनायक की तरह पेश करने वाले इन चैनलों को महाराष्ट्र में बंद करवा दूंगा, ये आग में घी डालने का काम करते हैं और लोगों को बदनाम करते हैं. साथ ही मेरे खिलाफ जो लोग टीवी चैनलों पर बोल रहे हैं उन्हें छोड़ूंगा भी नहीं. जनवरी 2014: स्‍थानीय लोगों से टोल नाके पर टोल न देने की अपील करते हुए कहा था कि अगर कोई जबरदस्ती टोल मांगे तो उसको पीटो. मई, 2013: एलबीटी आंदोलन के दौरान स्थानीय दुकानदारों को मंच से धमकाया और दुकानें खोलने पर मजबूर किया. साथ ही कहा, 'अगर दुकानदार दुकान नहीं खोलते तो मनसे के कार्यकर्ता खुद जा कर दुकान खोल देंगे.' जुलाई 2011: जब तक यूपी, बिहार जैसे राज्‍यों से मुंबई आने वाले लोगों की भीड़ रोकी नहीं जाएगी तब तक बम ब्‍लास्‍ट जैसे हादसे होते रहेंगे. बाहरी लोग सभी तरह की आपराधिक गतिविधियों में शामिल रहते हैं, बलात्‍कार से लेकर मर्डर तक. अगस्‍त, 2010: गणेशोत्सव के पूजा पंडालों में अब सिर्फ मराठी गाने ही बजेंगे.
 अगर ऐसा नहीं हुआ तो अंजाम बेहद बुरा होगा. अगस्‍त 2009: बॉलीवुड केवल हिंसा की भाषा समझता है. फरवरी 2008: शिवाजी पार्क की एक रैली में कहा, 'अगर मुंबई और महाराष्ट्र में गैर मराठियों की दादागिरी जारी रही तो उन्हें महानगर छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया जाएगा.'और मजे की बात ये है कि जैसे अन्य अनेको मामलों जैसे कश्मीर विवाद, घोटाले, काण्ड इत्यादि जिनपर थोड़ी बहुत गहमागहमी अथवा मामला न्यायालय पहुंचने के बाद विराम लग जाता है। वैसे ही ठाकरे परिवार का भी मामला बन चुका है। ये बोलते है और समूचा देश सुनता रहता है। इनके रूआब और दबदबे से कभी-कभी ऐसा प्रतीत होता है कि महाराष्ट्र में इनकी राजशाही हो गयी है। 
विगत कुछ वर्षों से राज ठाकरे, उद्धव ठाकरे किसी भी मामले में कूदकर आग भड़काते और फिर उसकी ज्वाला में पेट्रोल डालने का काम बखूबी करते आ रहे है। कुछ सालों में सवालों-जवाबों का इतना ज्यादा आरोप-प्रत्यारोप हो चुका है कि अगर उनको संकलित किया जाये तो महाभारत से भी बड़ा काव्य बन जायेगा। अभिनेता, नेता, समाजसेवियों से लेकर देशभर के दिग्गजों के बयान इस ठाकरे परिवार के खिलाफ रहा है। यह परिवार राष्ट्रहित में कुछ अच्छे मामले भी उठाता रहा है जिसपर हमारे देश के तथाकथित दिग्गजों के जबान में लकवा मार जाता है लेकिन चाहे जो हो संवैधानिक अधिकारों से इतर किसी राज्य, भाषा और समुदाय विशेष पर अपना जहर उगलना और बेबुनियादी तौर पर उनपर हमले करना निहायत ही शर्मनाक है। खास कर के रिक्शे वाले, टेम्पों वाले अथवा असहाय कमजोर जनता पर।
-लेखक विकास कुमार गुप्ता, पीन्यूजडॉटइन के सम्पादक एवं स्वतंत्र पत्रकार है।
ठाकरे की ठकुरई ठाकरे की ठकुरई Reviewed by rainbownewsexpress on 2:49:00 pm Rating: 5

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