-विवेक सक्सेना/ अगले साल उत्तरप्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव के पहले फिर मंदिर विवाद गरमाने लगा है। देश के प्रमुख पुरातत्वेत्ता के के मोहम्मद ने गत दिनों अपनी आत्मकथा मैं हिंदुस्तानी में यह महत्वपूर्ण रहस्योदघाटन किया था कि अयोध्या में राम जन्मभूमि के समीप भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा जो खुदाई की गई थी उससे इस बात की पुष्टि हुई थी कि बाबरी मस्जिद का निर्माण राम मंदिर को ध्वस्त करने के बाद ही हुआ था। विवादित स्थल पर पुराने मंदिर के अनेक अवशेष पाए गए थे जिनसे इस बात की पुष्टि होती थी। मगर वाम विचारधारा के इतिहासकारों रोमिला थापर, इरफान हबीब, डी एन झा, विपिन चन्द्रा आदि के दबाव पर इन तथ्यों को दबा दिया गया। क्योंकि ये इतिहासकार यह नहीं चाहते थे कि राम मंदिर के संबंध में हिन्दू और मुसलमान में कोई समझौता हो सके। इन इतिहासकारों के दबाव पर सरकारी रिपोर्ट में जानबूझकर इस तथ्य को छिपाया गया।
के के मोहम्मद के इस रहस्योदघाटन के बाद उर्दू समाचारपत्रों में उनके खिलाफ विधिवत अभियान छेड़ दिया है। अखबार मशरिक में खुर्शीद आलम नामक लेखक ने लंबा लेख लिखा। उसका ब्यौरा कुछ यों है:
लेखक ने दावा किया कि बाबरी मस्जिद बनाम राम जन्मभूमि की समस्या सिर्फ मस्जिद को ध्वस्त करने या मंदिर के निर्माण तक सीमित नहीं है। बल्कि इसकी विस्तृत सांस्कृतिक पृष्ठभूमि है। हालांकि विवेकानंद, अरविंद घोष, महात्मा गांधी और इससे पूर्व स्वामी दयानंद सरस्वती ने बहुसंख्यक समाज को विचारक दृष्टि से सुसंगठित बनाने का प्रयास किया था मगर वह सफल नहीं रहा। इसलिए अब संघ परिवार बहुत गंभीरता से इस लक्ष्य को प्राप्त करने में लगा हुआ है।
लेखक के अनुसार राम मंदिर के आंदोलन को गांव- गांव में ले जाया गया है। गो- रक्षा और घर वापसी की आड़ में हिन्दुओं को संगठित किया जा रहा है। आरएसएस तीन सूत्रों पर काम कर रहा है। पहला तो राजनीतिक है जिसमें भाजपा को आगे बढ़ाया गया है। दूसरा सांस्कृतिक है जिसके लिए विश्व हिंदू परिषद को आगे बढ़ाया जा रहा है। तीसरा लेखन का कार्य है जिसके द्वारा शिक्षित और बुद्धिजीवियों को संघ की विचारधारा से जोड़ने का प्रयास हो रहा है। राम जन्मभूमि को लेकर गोष्ठियों का आयोजन किया जा रहा है। सुरुचि और सूर्य प्रकाशन से साहित्य का प्रकाशन हो रहा है। इसमें संघ को भारी सफलता मिल रही है।
पिछले दिनों लालू यादव ने घोषणा की थी कि संघ का मुकाबला करने के लिए उसी के माडल पर एक संगठन बनाया जाएगा। सोनिया गांधी, राहुल गांधी और दूसरे कांग्रेसी नेताओं ने भी जब अंबेडकर और सरदार पटेल को नरेंद्र मोदी ने संघ से जोड़ने का काम किया था तो उसका सामना करने के लिए भी बड़े- लंबे- चौड़े ऐलान किए थे। मगर कुछ हुआ नहीं। पुस्तकों और मीडिया द्वारा आरएसएस लोगों की मानसिकता बनाने का जो काम कर रहा है उसका अनुमान मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड और किसी भी मुस्लिम संगठन को नहीं है। हमारे यहां उसी वक्त बयान जारी होते हैं जब जलसे- जुलसू निकाले जाते हैं, सम्मेलन होते हैं, जब मामला हाथ से निकल जाता है।
इसी पृष्ठभूमि में अब एक नई रणनीति सामने आई है। वह है पुरातत्व विभाग के केके मोहम्मद की पुस्तक। रोचक तथ्य है कि इस पुस्तक से पूरी तरह से राम जन्मभूमि आंदोलन और संघ की पृष्ठभूमि व संघ की विचारधारा की पुष्टि होती है। इसमें कहा है कि बाबरी मस्जिद राम मंदिर के अवशेषों पर बनाई गई थी। उनका यह भी दावा है कि वाम पक्ष के इतिहासकारों ने देश को गुमराह किया। जबकि मैंने जो जाना और कहा है वह एतिहासिक तथ्य है। उनका दावा है कि विवादित स्थान से 14 स्तंभ मिले थे और ये स्तंभ 1712 वीं शताब्दी में पाए जाने वाले स्तंभ थे। इससे साफ हो गया था कि मस्जिद एक मलबे पर खड़ी हैं। उन्होंने दावा किया कि वाम विचारधारा के इतिहासकारों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट को भी गुमराह करने का प्रयास किया था।
उनके अनुसार तत्कालीन निदेशक बी बी लाल के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने इस खुदाई का निरीक्षण किया था और इसमें मोहम्मद भी शामिल थे। रोमिला थापर, विपिन चंद्र और एस गोपाल जैसे इतिहासकारों ने तब तर्क दिया था कि 19 वीं शताब्दी से पहले मंदिर के ध्वस्त किए जाने और अयोध्या में बौद्ध या जैन तीर्थ स्थल होने का कोई उल्लेख नहीं है। उनकी इस धारणा का इरफान हबीब, आरएस शर्मा, डीएन झा और अख्तर अली ने समर्थन किया था और इन्होंने मुसलमानों से मिलकर इन विवादों के समाधानों को मिट्टी में मिला दिया।
इन लोगों ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का खुलकर समर्थन किया। मालूम हो कि भारतीय पुरातत्व विभाग ने प्रो. बीबी लाल की अध्यक्षता में 1976- 77 में विवादित स्थान का निरीक्षण किया था और बाद में हाईकोर्ट के निर्देश पर इस जगह की खुदाई की गई। खुदाई करने वाली टीम में कई अधिकारी व मजदूर भी शामिल थे। उन्होंने कहा कि इस खुदाई में एक ऐसा पत्थर मिला जो मंदिर में क्लश के नीचे लगाया जाता है। इसके अतिरिक्त गंगाजल चढ़ाने के बाद उसे बाहर निकालने के लिए हिन्दू पद्धति की व्यवस्था भी मिली। मूर्ति की गई छोटी- मोटी मूर्तियां भी प्राप्त हुई।
उन्होंने यह भी दावा किया है कि वहां पर एक शिलालेख मिला था जिसमें राम को 10 सिरों वाले रावण की हत्या करने वाले भगवान के रुप में संबोधित किया गया था। इस शिलालेख को कई विद्वानों ने पढ़ा था। इस रिपोर्ट के अनुसार खुदाई राम जन्मभूमि ठीकरी और हनुमान गढ़ी के समीप की गई थी। इससे यही प्रकट हुआ था कि इस जगह पर आज से 2700 साल पहले आबादी थी। इस आधार पर अब्दुल रहीम कुरैशी ने लिखा है कि अयोध्या अधिक से अधिक 2700 साल पुरानी है। इससे पहले यहां कोई आबादी नहीं थी। इसलिए यह राम जन्मस्थान नहीं है। अयोध्या फिर उस वक्त बसना शुरु हुआ जब उत्तरी भारत में मुसलमानों का शासन था।
इन खुदाईयों से जो प्राचीन वस्तुएं प्राप्त हुई वे मोहरे, सिक्के व मिट्टी की मूर्तियां थीं। उससे इस बात की पुष्टि नहीं होती कि यहां कभी कोई मंदिर हुआ करता था। इससे साफ है कि इस जगह पर कोई मंदिर नहीं था। 1976- 77 की रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया कि अयोध्या में मंदिर नहीं थे। इन खुदाईयों में तोलने के बट्टे पाए गए और इसके बाद इस योजना को खत्म कर दिया गया क्योंकि श्रीराम के काल के कोई अवशेष प्राप्त नहीं हुए थे।
यही स्थिति बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय द्वारा की गई खुदाइयों की भी थी। ऐसा प्रतीत होता है कि बाद में बीबी लाल पर आरएसएस का प्रभाव पड़ा। जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के एक प्राध्यापक ने यह दावा किया कि लाल का बयान सरकारी रिपोर्टों से भिन्न है। इस रिपोर्ट में कहीं भी स्तंभों का उल्लेख नहीं है।इस लेख में यह दावा किया गया है कि बाबरी मस्जिद के अवशेषों से इस बात की पुष्टि होती है कि यह एक मंदिर नहीं बल्कि मस्जिद थी। बाबरी मस्जिद पर दिसंबर, 1949 से लेकर दिसंबर 1992 तक हिंदुओं का कब्जा रहा। ऐसा प्रतीत होता है कि यह कथित शिलालेख, टूटी मूर्तियां जानबूझकर यहां रखी गई थी। जो भी हो अयोध्या का तंदूर गरम किया जा रहा है और अगले साल हर दल इसमें अपनी रोटियां सेंकने की पूरी कोशिश करेगा।
के के मोहम्मद के इस रहस्योदघाटन के बाद उर्दू समाचारपत्रों में उनके खिलाफ विधिवत अभियान छेड़ दिया है। अखबार मशरिक में खुर्शीद आलम नामक लेखक ने लंबा लेख लिखा। उसका ब्यौरा कुछ यों है:
लेखक ने दावा किया कि बाबरी मस्जिद बनाम राम जन्मभूमि की समस्या सिर्फ मस्जिद को ध्वस्त करने या मंदिर के निर्माण तक सीमित नहीं है। बल्कि इसकी विस्तृत सांस्कृतिक पृष्ठभूमि है। हालांकि विवेकानंद, अरविंद घोष, महात्मा गांधी और इससे पूर्व स्वामी दयानंद सरस्वती ने बहुसंख्यक समाज को विचारक दृष्टि से सुसंगठित बनाने का प्रयास किया था मगर वह सफल नहीं रहा। इसलिए अब संघ परिवार बहुत गंभीरता से इस लक्ष्य को प्राप्त करने में लगा हुआ है।
लेखक के अनुसार राम मंदिर के आंदोलन को गांव- गांव में ले जाया गया है। गो- रक्षा और घर वापसी की आड़ में हिन्दुओं को संगठित किया जा रहा है। आरएसएस तीन सूत्रों पर काम कर रहा है। पहला तो राजनीतिक है जिसमें भाजपा को आगे बढ़ाया गया है। दूसरा सांस्कृतिक है जिसके लिए विश्व हिंदू परिषद को आगे बढ़ाया जा रहा है। तीसरा लेखन का कार्य है जिसके द्वारा शिक्षित और बुद्धिजीवियों को संघ की विचारधारा से जोड़ने का प्रयास हो रहा है। राम जन्मभूमि को लेकर गोष्ठियों का आयोजन किया जा रहा है। सुरुचि और सूर्य प्रकाशन से साहित्य का प्रकाशन हो रहा है। इसमें संघ को भारी सफलता मिल रही है।
पिछले दिनों लालू यादव ने घोषणा की थी कि संघ का मुकाबला करने के लिए उसी के माडल पर एक संगठन बनाया जाएगा। सोनिया गांधी, राहुल गांधी और दूसरे कांग्रेसी नेताओं ने भी जब अंबेडकर और सरदार पटेल को नरेंद्र मोदी ने संघ से जोड़ने का काम किया था तो उसका सामना करने के लिए भी बड़े- लंबे- चौड़े ऐलान किए थे। मगर कुछ हुआ नहीं। पुस्तकों और मीडिया द्वारा आरएसएस लोगों की मानसिकता बनाने का जो काम कर रहा है उसका अनुमान मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड और किसी भी मुस्लिम संगठन को नहीं है। हमारे यहां उसी वक्त बयान जारी होते हैं जब जलसे- जुलसू निकाले जाते हैं, सम्मेलन होते हैं, जब मामला हाथ से निकल जाता है।
इसी पृष्ठभूमि में अब एक नई रणनीति सामने आई है। वह है पुरातत्व विभाग के केके मोहम्मद की पुस्तक। रोचक तथ्य है कि इस पुस्तक से पूरी तरह से राम जन्मभूमि आंदोलन और संघ की पृष्ठभूमि व संघ की विचारधारा की पुष्टि होती है। इसमें कहा है कि बाबरी मस्जिद राम मंदिर के अवशेषों पर बनाई गई थी। उनका यह भी दावा है कि वाम पक्ष के इतिहासकारों ने देश को गुमराह किया। जबकि मैंने जो जाना और कहा है वह एतिहासिक तथ्य है। उनका दावा है कि विवादित स्थान से 14 स्तंभ मिले थे और ये स्तंभ 1712 वीं शताब्दी में पाए जाने वाले स्तंभ थे। इससे साफ हो गया था कि मस्जिद एक मलबे पर खड़ी हैं। उन्होंने दावा किया कि वाम विचारधारा के इतिहासकारों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट को भी गुमराह करने का प्रयास किया था।
उनके अनुसार तत्कालीन निदेशक बी बी लाल के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने इस खुदाई का निरीक्षण किया था और इसमें मोहम्मद भी शामिल थे। रोमिला थापर, विपिन चंद्र और एस गोपाल जैसे इतिहासकारों ने तब तर्क दिया था कि 19 वीं शताब्दी से पहले मंदिर के ध्वस्त किए जाने और अयोध्या में बौद्ध या जैन तीर्थ स्थल होने का कोई उल्लेख नहीं है। उनकी इस धारणा का इरफान हबीब, आरएस शर्मा, डीएन झा और अख्तर अली ने समर्थन किया था और इन्होंने मुसलमानों से मिलकर इन विवादों के समाधानों को मिट्टी में मिला दिया।
इन लोगों ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का खुलकर समर्थन किया। मालूम हो कि भारतीय पुरातत्व विभाग ने प्रो. बीबी लाल की अध्यक्षता में 1976- 77 में विवादित स्थान का निरीक्षण किया था और बाद में हाईकोर्ट के निर्देश पर इस जगह की खुदाई की गई। खुदाई करने वाली टीम में कई अधिकारी व मजदूर भी शामिल थे। उन्होंने कहा कि इस खुदाई में एक ऐसा पत्थर मिला जो मंदिर में क्लश के नीचे लगाया जाता है। इसके अतिरिक्त गंगाजल चढ़ाने के बाद उसे बाहर निकालने के लिए हिन्दू पद्धति की व्यवस्था भी मिली। मूर्ति की गई छोटी- मोटी मूर्तियां भी प्राप्त हुई।
उन्होंने यह भी दावा किया है कि वहां पर एक शिलालेख मिला था जिसमें राम को 10 सिरों वाले रावण की हत्या करने वाले भगवान के रुप में संबोधित किया गया था। इस शिलालेख को कई विद्वानों ने पढ़ा था। इस रिपोर्ट के अनुसार खुदाई राम जन्मभूमि ठीकरी और हनुमान गढ़ी के समीप की गई थी। इससे यही प्रकट हुआ था कि इस जगह पर आज से 2700 साल पहले आबादी थी। इस आधार पर अब्दुल रहीम कुरैशी ने लिखा है कि अयोध्या अधिक से अधिक 2700 साल पुरानी है। इससे पहले यहां कोई आबादी नहीं थी। इसलिए यह राम जन्मस्थान नहीं है। अयोध्या फिर उस वक्त बसना शुरु हुआ जब उत्तरी भारत में मुसलमानों का शासन था।
इन खुदाईयों से जो प्राचीन वस्तुएं प्राप्त हुई वे मोहरे, सिक्के व मिट्टी की मूर्तियां थीं। उससे इस बात की पुष्टि नहीं होती कि यहां कभी कोई मंदिर हुआ करता था। इससे साफ है कि इस जगह पर कोई मंदिर नहीं था। 1976- 77 की रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया कि अयोध्या में मंदिर नहीं थे। इन खुदाईयों में तोलने के बट्टे पाए गए और इसके बाद इस योजना को खत्म कर दिया गया क्योंकि श्रीराम के काल के कोई अवशेष प्राप्त नहीं हुए थे।
यही स्थिति बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय द्वारा की गई खुदाइयों की भी थी। ऐसा प्रतीत होता है कि बाद में बीबी लाल पर आरएसएस का प्रभाव पड़ा। जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के एक प्राध्यापक ने यह दावा किया कि लाल का बयान सरकारी रिपोर्टों से भिन्न है। इस रिपोर्ट में कहीं भी स्तंभों का उल्लेख नहीं है।इस लेख में यह दावा किया गया है कि बाबरी मस्जिद के अवशेषों से इस बात की पुष्टि होती है कि यह एक मंदिर नहीं बल्कि मस्जिद थी। बाबरी मस्जिद पर दिसंबर, 1949 से लेकर दिसंबर 1992 तक हिंदुओं का कब्जा रहा। ऐसा प्रतीत होता है कि यह कथित शिलालेख, टूटी मूर्तियां जानबूझकर यहां रखी गई थी। जो भी हो अयोध्या का तंदूर गरम किया जा रहा है और अगले साल हर दल इसमें अपनी रोटियां सेंकने की पूरी कोशिश करेगा।
-विवेक सक्सेना
फिर गरमाने लगा मंदिर विवाद
Reviewed by rainbownewsexpress
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3:06:00 pm
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