गरीबों की आह भी सुनिए मोदीजी और अखिलेश बाबू

अब समझ में आया कि विजय माल्या सरीखे लोग किस तरीके से बैंकों के भ्रष्ट अफसरों की मदद से देश का अकूत धन गलत तरीके से बटोर लेते हैं और विदेश निकल जाते हैं। बाद में ‘मैं नहीं माखन खायो’ की सफाई संसद से सड़क तक शोरशराबे में बदलने के कुछ दिनों बाद दम तोड़ देती है। साफ शब्दों में कहा जाए तो बैंकों का भ्रष्टाचार ही तमाम विजय माल्याओं को पैदा करता है। बैंकों की चोरकटई देखने के लिए इलाहाबाद जिले में नवाबगंज स्थित बैंक ऑफ बड़ौदा एकदम मुफीद रहेगा। यहां तो वास्तव में जंगलराज है। मुट्ठीभर कर्मचारी सरकार की योजनाओं की रोजाना ‘शवयात्रा’ निकाल रहे हैं। इनकी करतूत शर्मनाक है और दंडित करने लायक भी। 

  शासन, प्रशासन और विभागीय अफसरों के बेहतर बैंकिंग और उपभोक्ताओं की सहूलियत के सारे दावे यहां आकर दम तोड़ दे रहे हैं। धनजन योजना हो या बैंक मुद्रा ऋण, फसल बीमा से लेकर तमाम योजनाओं की जमीनी हकीकत कारगर जांच के बाद उजागर हो सकती है। विधवा पेंशन, विकलांग पेंशन, मृतक आश्रित पेंशन पाने को सैकड़ों लोग यहां तरस रहे हैं। ग्राहकों के खाते का ही धन उनको नहीं मिल पाता। भागदौड़ से आजिज लोग बैंक आना तक बंद कर दिए है। इतना ही नहीं, स्कूली बच्चों के वजीफे तक में घोटालों का बड़ा पहाड़ है। उपभोक्ताओं से अभद्रता यहां आम बात है। न किसी जांच का डर न किसी दंड का भय। हालत यह है कि इस बैंक में जमा अपना ही धन निकालने के लिए सुबह दस बजे आइए या दोपहर एक बजे। चार पांच घंटे लगातार लंबी लाइन में खड़े रहने के बाद ही धन की निकासी हो पाती है। 

लाइन में इतनी देर तक खड़ा रहना आसान नहीं। खासकर, महिलाओं और बुजुर्गों के लिए तो ये किसी सजा से कम नहीं होता। तकरीबन चार-पांच साल से ऐसा हर कार्य दिवस पर देखने को मिलता है। यहां सीसी कैमरा खराब पड़ा है। सीसीटीवी पर टाइम भी सही नहीं है। काम काज के नकारापन का ताजा उदारण है नवाबगंज बैंक के ठीक बगल रहने वाला विकलांग युवक दिनेश केसरवानी। गरीबी से जूझता ठेले पर चाट बेंचकर गुजारा करता है दिनेश। गुरबत की जिंदगी घिसटकर जीने वाली दिनेश की मॉं डेढ़ महीने पहले इलाज के अभाव में गुजर गई। दाने दाने को मोहताज दिनेश का जीवन कैसे गुजर रहा होगा, इसका अंदाज सहज ही लगाया जा सकता है। 

 तल्ख
सच्चाई है कि तथाकथित सरकारों की बहने वाली विकास की तमाम ‘नदियां’ दिनेश के मोहल्ले तक पहुंचने के पहले ही सूख जाती हैं। लिहाजा, मोदीजी की ‘मेक इन इंडिया’ हो या अखिलेश बाबू का ‘बन रहा है आज संवर रहा है कल’ सरीखे नारों की चिल्ल-पों... दिनेश केसरवानी जैसे इलाके के सैकड़ों लोगों की डेहरी तक पहुंचने के पहले ही ये नारे दम तोड़ देते हैं। ये लोग अफसरशाही के शोषण के शिकार खुलेआम हो रहे हैं। कोई देखने सुनने वाला नहीं। अखिलेश बाबू देते रहिए लखनऊ की बैठकों में अफसरों को नसीहतें पर अफसर सुनने को खाली नहीं। काहे से इनकी खाल काफी मोटी है। सो, हल्का डोज असर ही नहीं करता। डेढ़ महीने से ज्यादा हो गया है दिनेश का बैंक में जमा धन नवाबगंज का बैंक ऑफ बड़ौदा वापस ही नहीं कर रहा है। बैंक से महज पचास कदम की दूरी पर रहने वाला दिनेश डेढ़ महीने से रोजाना बैंक का चक्कर काटकर थक गया है। उसे जानबूझ कर बैंक कर्मचारी परेशान कर रहे हैं। बैंक की फील्ड अफसर एक मोहतरमा हैं, वे पचास कदम दूर रहने वाले दिनेश के आवास पहुंचकर मौका मुआयना तक नहीं कर सकी हैं। दिनेश की शिकायत है कि स्थलीय निरीक्षण के बहाने फील्ड अफसर डेढ़ महीने से रोजाना टरका रही हैं। अस्सी फीसदी से ज्यादा उपभोक्ता इनकी बत्तमीजी के चलते बैंक से असंतुष्ट हैं। अब सवाल उठता है कि इनके खिलाफ कार्रवाई कौन करेगा?  

 दुबारा सत्ता में रिपीट होने का ‘मुंगेरी’ सपना देखने वाले मोदीजी और यूपी के सीएम अखिलेश बाबू, हो सके तो दिनेश केसरवानी सरीखे सैकड़ों परिवार की बद्दुवाओं को पहले रोकने की सार्थक कोशिश करिए। सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं की वाट लगाने वाले इन नकारा अफसरों की जनहित में उच्च स्तरीय जांच करा के कड़ा दंड भी दीजिए। इतना तय है कि जब इन परेशानहाल लोगों का कल संवरेगा तभी इनकी बद्दुवाएं राहत पाने के बाद दुवाओं में बदलेगी। ऐसे में हो सकता है कि भाजपा और सपा का भी कल संवर जाए। वर्ना, आप तो जानते ही हैं कि गरीब की आह में कितनी ताकत होती है। बड़े-बड़ों का ‘इंद्रासन’ हिलते देर नहीं लगती।  

इलाहाबाद से शिवाशंकर पांडेय
मोबाइल नंबर 9565694757
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