उत्तराखंड संस्कृत विष्वविद्यालय में बदलाव की वही बयार

उत्तराखंड संस्कृत विष्वविद्यालय में सालों से पडा सूखा अब नये कुलपति के आने के बाद भविष्य की हरियाली की ओर संकेत कर रही है। वर्ष 2005 में विष्वविद्यालय की स्थापना के बाद से पिछले दस सालों में इस विद्यालय की स्थिति में सुधार नहीं हो पाया। नियुक्तियों में धांधली के अलावा बेहतर षैक्षणिक वातावरण नहीं बन पाया। इस दिषा में ईमानदार प्रयास भी नहीं किया गया। जिसके चलते विष्वविद्यालय में राजनीति हावी हो गई। क्षेत्रवाद व गुटों में षिक्षक बंट गये। यहां नियुक्त कुलपति भी इस सबको बढावा देने में ज्यादा दिलचस्पी लेते रहे। नतीजा यह हुआ कि न तो विष्वविद्यालय की अवधारणा धरातल पर साकार हो पाई और नहीं इस दिषा में ठोस प्रयास हो पाये। अब कुलाधिपति कार्यालय की ओर से लाल बहादुर षास्त्री विष्वविद्यालय के दर्षन षास्त्र विभाग के प्रोफेसर पीयूसकांत दीक्षित को कुलपति नियुक्त किया गया है। अच्छे टैªक रिकार्ड व अनुषासन पंसद प्रो दीक्षित ने अपनी कार्यषैली से विष्वविद्यालय में अच्छे दिनों का अहसास करा दिया है। हालांकि विष्वविद्यालय में कुछ ऐसे तत्व भी मौजूद हैं जिन्हें नव नियुक्ति कुलपति का रवैया पंसद नहीं आ रहा है। 

अपने कार्यकाल की षुरूआत के पहले ही दिन प्रो दीक्षित ने सभी एसिस्टेंट प्रोफेसरों को ईषारों में ही अपने काम करने के ढंग से रूबरू करा दिया। दूसरे दिन उन्होंने एक कार्यालय आदेष जारी कर यह संदेष दिया है कि कोई भी षिक्षक व कर्मचारी उनसे मिलने के लिए पहले समय निर्धारित कर ले। असल में संस्कृत विवि में अब तक कोई भी षिक्षक , अधिकारी व कर्मचारी जब चाहे कुलपति कक्ष में धमक जाता था, लेकिन नये फरमान के बाद लगता है स्थिति में सुधार होगा।

कुलपति ने संस्कृत विष्वविद्यालय की अवधारणा को धरातल पर उतारने की दिषा में कदम भी बढाये हैं। खुद पहल करते हुए वो अपने सभी आदेष व टिप्पणियां संस्कृत में ही लिख रहे हैं। इससे जहां संस्कृत के परम्रागत लोगों में खुषी है वहीं संस्कृत के नाम पर सालों से रोटी तोड रहे लोगों में खासी बैचैनी भी है। प्रो पीयूसकांत दीक्षित के कार्यभार ग्रहण करने के बाद पिछले एक सप्ताह में विष्वविद्यालय में षैक्षणिक परिवेष में बदलाव भी साफ दिखाई दे रहा है। ग्यारह बजे विष्वविद्यालय में आमद करने व दो बजे घडी देखकर भागने वाले षिक्षक अब पढाने के लिए छात्रों को ढूढ रहे हैं। विष्वविद्यालय परिसर में धूमने वाले छात्रों को अब कुलपति सीधे कक्षा कक्ष में भेज रहे हैं। इतना ही नहीं किसी षिक्षक की गैरमौजूदगी में कुलपति स्वयं छात्रों को पढा रहे हैं। षनिवार को षिक्षा षास्त्र विभाग के एक षिक्षक के अवकाष पर रहने के पर छात्रों को परिसर में धूमते देख कुलपति ने उनसे कारण पूछा, षिक्षक के न होने का कारण जान वो छात्रों को लेकर कक्षा कक्ष में पढाने चल दिये। षायद उत्तराखंड विष्वविद्यालय की स्थापना के पिछले दस सालों के इतिहास में यह पहली घटना होगी जब विष्वविद्यालय के कुलपति ने स्वयं पहल कर छात्रों को पढने के लिए प्रेरित किया। 

केवल इतना ही नहीं कुलपति ने सरकारी संसाधनों के गैरजरूरी प्रयोग पर भी पांवदी लगाने की कवायद षुरू कर दी है। उन्होंने सरकारी वाहन का उपयोग केवल विष्वविद्यालय से संबधित कार्यों के लिए ही करने की बात कही है। व्यक्तिगत कार्यों के लिए अपने निजी वाहन का प्रयोग खुद डाइव करते हुए करेंगे। जाहिर है इससे विष्वविद्यलय का लाखों रूप्या बचेगा जो केवल पैटाªल पर उडाया जाता था। इससे पूर्व के कुलपतियों ने षायद ऐसी नजीर पेष की होती तो षायद यहां की तस्वीर बदली होती। कुलपति प्रो दीक्षित का कहना है कि वो उत्तराख्ंाड संस्कृत विष्वविद्यालय को उच्च षिक्षा का आर्दष केन्द्र बनाना चाहते हैं। इसके लिए वो पंडित महामना मदन मोहन मालवीय को अपना आर्दष मानते हुए कहते हैं कि संस्कृत विष्वविद्यालय अपनी स्थापना के उददेष्यों पर खरा उतरेगा।

दस सालों के लम्बे अतंराल के बाद जगी इस उम्मीद को कुलपति कितना आगे पहुंचा पाते हैं, यह तो समय बतायेगा लेकिन इतना अवष्य है कि राजनीति, क्षेत्रवाद व गुटों में बटे विष्वविद्यालय में आने वाले समय में कुछ नया परिवर्तन देखने को जरूर मिलेगा। 


बृजेष सती,
वरिष्ठ पत्रकार,
देहरादून।
चलभाष - 9412032437
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