विस्थापित कश्मीरी पंडित-समुदाय पिछले लगभग २५ वर्षों से अपने लिए एक अलग होमलैंड की मांग कर रहा है जिसके लिए प्रायः हर सरकार इस समुदाय की मांग को सिरे से खारिज तो नहीं करती मगर इनके सपनों को पूरा भी नहीं करती।अडचनें कई तरह की हैं।जैसे ही सरकार इस दिशा में कोई कारगर योजना बनाने की पहल करती है तो कश्मीर के अलगाववादी धड़ों के कान खड़े हो जाते हैं और वे पंडितों के अलग “होमलैंड” वाली बात का विरोध करने के लिए सडकों पर उतर आते हैं।दूसरी अडचन यह है कि कोई भी आन्दोलन जब बहुत लम्बा खिंचता है तो आन्दोलन को चलाने वाले नेताओं में भी मतैक्य नहीं रहता और कटुताएं और स्पर्द्धाएं उभरने लगती हैं।
पंडितों का एक वर्ग कश्मीर लौटने के पक्ष में है तो दूसरा विपक्ष में।दूसरे पक्ष का कहना यह है कि हमसे अगर घर-वापसी की बात की जा रही है तो फिर हमें मार-पीट कर भगाया ही क्यों गया?क्या गारंटी है कि हमारे साथ दुबारा वह न घटे जिसको हम ने आज से २५ साल पहले झेला है।रही बात अलग से ‘होमलैंड’ का निर्माण करने की और वहां पर पंडितों को बसाने की। कहने को यह बात सरल लगती है मगर इसको अमल में लाना मुश्किल है।वादी में पंडितों को अलग से बसाने के लिए एक वृहत भूमि-खंड अगर सरकार ने आवंटित कर भी दिया तो इस होमलैंड में आवास,शिक्षा,रोज़गार,यातायात,चिकित्सा आदि से जुड़े संसाधनों को विकसित करने में कितना समय और धन लगेगा, यह एक विचारणीय बिंदु है। उत्तराखंड,झारखंड,छत्तीसगढ़,तेलंगाना आदि राज्यों की बात दूसरी है।ये राज्य अपनी ही भौगोलिक सीमाओं के भीतर अलग हुए।इन राज्यों में लोग इधर से उधर नहीं हुए और न ही बेघर हुए।कश्मीर का मामला दूसरा है।
कश्मीर के‘होमलैंड’ में लोग बाहर से आकर बसेंगे।उन्हें पूरी सुरक्षा के साथ-साथ वे सारी सुविधाएँ देनी होंगी जिनका उल्लेख ऊपर किया जा चुका है। १९६६ की एक घटना याद आ रही है। मेरी नई-नई नौकरी लगी थी।शहर मेरे लिए नया था और लोग भी नए।स्टाफ रूम में अक्सर कश्मीर को लेकर बातें होतीं।"नेहरू ने गलती की,धारा 370 हटा देनी चाहिए,यहां के लोगों को वहां बसाया जाना चाहिए,क्या खूबसूरत जगह है! आदि आदि।" बहुत दिनों तक मैं यह सब सुनता रहा।आखिर एक दिन मैं ने कह ही दिया:'भई,जो-जो वहां पर बसना चाहता है वह-वह मुझे अपने नाम लिखाओ।सभी बगले झाँकने लगे।किसी ने भी नाम नहीं लिखवाया।सभी का कहना था कि हम यहाँ मज़े में हैं,वहां क्यों जाएँ भला?यहाँ हमारे पास भगवान की दया से अच्छा रोज़गार है,घर बार है,रिश्तेदारियां हैं आदि।न बाबा न।हम तो नहींजाएंगे।'
यही हाल विस्थापित पंडितों का है।25 सालों की दरबदरी के बाद अब ये और इनकी जवान पीढ़ियां अपनी मेहनत,लगन और सब कुछ गंवाने के बाद जहाँ पर भी हैं,एक तरह से सेटल हो गए हैं।अब ये कहीं नहीं जाने वाले चाहे तो हाथ खड़े करवा लो या नाम लिखवा लो।घूमने फिरने जाएँ तो बात अलग है।
डॉ0शिबन कृष्ण रैणा
Senior Fellow(Hindi),Ministry of Culture
(Govt.of India)
2/537(HIG)Aravali Vihar,
Alwar(Rajasthan)
301001
Contact:09810265348 and 01442360124
कश्मीरी पण्डित समुदाय और होमलैंड
Reviewed by rainbownewsexpress
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1:53:00 pm
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